Navratri Kanya Pujan: कन्या चयन के नियम और महत्व

Sooraj Krishna Shastri
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Navratri Kanya Pujan: कन्या चयन के नियम और महत्व

१. परिचय

नवरात्रि के अंतिम दिनों में कन्या पूजन (कुमारी पूजन) का विशेष महत्व है। यह पूजा देवी के बालरूप की उपासना है, जिसमें कन्याओं को स्वयं दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में मानकर सम्मानित किया जाता है। शास्त्रों में कन्या को "कन्या रूपिणी भगवती" कहा गया है और उनकी पूजा से नवदुर्गा के सभी रूपों की पूजा का पुण्य प्राप्त होता है।

Navratri Kanya Pujan: कन्या चयन के नियम और महत्व
Navratri Kanya Pujan: कन्या चयन के नियम और महत्व



२. शास्त्रीय आधार

  • देवी भागवत महापुराण (९.४५) में वर्णित है कि—
    "कन्यायाः पूजनं कुर्यात्, सदा सर्वार्थसिद्धये।"
    अर्थात, कन्या की पूजा से सभी कार्य सिद्ध होते हैं।
  • कुमारिका पूजन को "कन्या त्रिलोक पूजिता" भी कहा गया है, जिसका अर्थ है कि कन्या तीनों लोकों में पूज्य है।
  • कालिका पुराण और तंत्रसार में भी नवरात्रि के अंत में कुमारी पूजन को अनिवार्य बताया गया है।

३. पूजा का समय

  • अष्टमी या नवमी तिथि को कुमारी पूजन किया जाता है।
  • कई स्थानों पर महानवमी पर यह अनुष्ठान विशेष रूप से होता है, जिसे कन्या भोज या सिद्धि भोज कहा जाता है।

४. कन्या पूजन की संख्या

  • दो कन्या = स्वास्थ्य और संतान सुख।
  • चार कन्या = धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष की प्राप्ति।
  • सात कन्या = रोगनाश और समृद्धि।
  • नौ कन्या = नवदुर्गा का पूर्ण आशीर्वाद।
  • प्रायः २ से ९ वर्ष की कन्याओं को आमंत्रित कर पूजन किया जाता है, साथ में एक बालक (लंगूर) को भी बैठाया जाता है, जो भैरव स्वरूप माना जाता है।

५. पूजा की विधि

  1. स्थान शुद्धि — पूजा स्थान को गंगाजल से शुद्ध करें।
  2. आमंत्रण — कन्याओं को सम्मानपूर्वक घर बुलाएं।
  3. पद प्रक्षालन — उनके पाँव धोकर आसन पर बिठाएं।
  4. पूजन सामग्री — अक्षत, रोली, हल्दी, कुमकुम, फूल, चावल, दीप, नैवेद्य।
  5. पूजन मंत्र

    "कुमारिकाभ्यः नमः, सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके।
    शरण्ये त्र्यम्बके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते॥"

  6. आरती — दुर्गा माता की आरती के साथ कन्याओं की आरती करें।
  7. भोजन — पूड़ी, चने, हलवा आदि का प्रसाद परोसें।
  8. दक्षिणा और उपहार — वस्त्र, फल, मिठाई, दक्षिणा भेंट करें।
  9. आशीर्वाद — उनके चरण स्पर्श कर आशीर्वाद लें।

६. कन्या पूजन के लाभ

लाभ विवरण
आध्यात्मिक देवी के बालरूप की कृपा से पापों का क्षय और पुण्य की वृद्धि।
सांसारिक सुख-समृद्धि, रोग-निवारण, संतान सुख की प्राप्ति।
आर्थिक दरिद्रता दूर होकर लक्ष्मी का वास।
मानसिक घर में सकारात्मक ऊर्जा और पारिवारिक सौहार्द।
आध्यात्मिक उन्नति नवदुर्गा के सभी रूपों की पूजा का फल।

७. विशेष ध्यान

  • पूजा के समय मन में निर्मल भाव रखें।
  • कन्याओं को देवदूत मानकर व्यवहार करें।
  • भोजन शुद्ध, सात्विक और प्रेम से बनाया जाए।

कन्या पूजन के लिए कन्याओं का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें

नवरात्रि में कन्या पूजन का फल तभी पूर्ण रूप से प्राप्त होता है जब कन्याओं का चयन शास्त्रीय नियमों और शुद्ध भाव से किया जाए।


१. आयु का चयन

  • २ वर्ष से ९ वर्ष की कन्याओं को आमंत्रित करना श्रेष्ठ माना गया है।
  • प्रत्येक आयु देवी के एक रूप से संबंधित है—
आयु देवी का रूप विशेष फल
२ वर्ष कुमारी परिवार में सुख-शांति
३ वर्ष त्रिमूर्ति ऐश्वर्य एवं बल
४ वर्ष कल्याणी शुभकार्य सिद्धि
५ वर्ष रोहिणी सुख और स्वास्थ्य
६ वर्ष कालिका भय नाश
७ वर्ष चण्डिका संकट निवारण
८ वर्ष शांभवी समृद्धि और स्थिरता
९ वर्ष दुर्गा सर्वसिद्धि एवं मोक्ष

नववर्षा भवेद्दुर्गा सुभद्रा दशवार्षिकी ।

क्रूरशत्रुविनाशार्थं तथोग्रकर्मसाधने ।

दुर्गाञ्च पूजयेद्‌भक्त्या परलोकसुखाय च ।।

वाञ्छितार्थस्य सिद्ध्यर्थं सुभद्रां पूजयेत्सदा ।

              देवीभागवत ३/२६/४३,५०,५१

"नवरात्री में कन्यापूजन में नव वर्ष की कन्या 'दुर्गा' कहलाती है, क्रूर शत्रु के विनाश एवं उग्र कर्म की साधना के निमित्त, परलोक में सुख पाने के लिए 'दुर्गा' नामक कन्या की भक्ति पूर्वक आराधना करनी चाहिए । दस वर्ष की कन्या 'सुभद्रा' कहलाती है, मनुष्य को अपने मनोरथ की सिद्धि के लिए सुभद्रा की सदा पूजा करनी चाहिए।"

२. शारीरिक और मानसिक स्थिति

  • कन्या स्वस्थ, प्रसन्नचित्त और सक्रिय हो।
  • पूजा के समय रो रही हो, बीमार हो या चिड़चिड़ी हो, तो उसका चयन न करें, क्योंकि पूजा में उल्लास और मंगलभाव आवश्यक है।

३. पवित्रता एवं आचार

  • कन्या पवित्र और स्वच्छ वस्त्र पहने हो।
  • पूजा से पहले उसके हाथ-पाँव धोएं, यदि संभव हो तो घर में बुलाकर ही पवित्र जल से पद प्रक्षालन करें।
  • माता-पिता और घर का वातावरण सात्विक हो।

४. संख्या

  • एक से नौ कन्याओं का चयन करें, परन्तु यदि पूर्ण फल चाहते हैं तो नौ कन्याओं का पूजन सर्वोत्तम है।
  • साथ में एक बालक (लंगूर) भी बैठाएं, जो भैरव स्वरूप माना जाता है।

५. चयन करते समय वर्जनाएँ

  • रक्त संबंधी नजदीकी रिश्तेदारों की कन्याओं को न चुनें (शास्त्र में "स्वगृह कन्या" का पूजन निषिद्ध बताया गया है)।
  • ऐसी कन्या जो अशुभ संस्कार में (जैसे मृत्यु आदि) सम्मिलित होकर आई हो, तुरंत पूजन के लिए न बुलाएँ।
  • पूजा के दिन किसी प्रकार का नकारात्मक वाणी या अशुद्ध आचार रखने वाली कन्या को न चुनें।

६. भाव एवं सम्मान

  • कन्याओं का चयन देवी रूप मानकर करें, न कि केवल परंपरा निभाने के लिए।
  • उनके साथ स्नेहपूर्ण और सम्मानजनक व्यवहार करें, ताकि वे पूजा के महत्व को महसूस कर सकें।

📜 निष्कर्ष
नवरात्रि में कन्या पूजन केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि स्त्री और बालिका के प्रति आदर, सम्मान और संरक्षण का संदेश है। यह देवी की कृपा प्राप्त करने का सशक्त माध्यम है, जिससे आध्यात्मिक और भौतिक—दोनों प्रकार की सिद्धियाँ प्राप्त होती हैं।

 कन्या पूजन में कन्या का चयन आयु, शुद्धता, स्वास्थ्य, आचार और भाव को ध्यान में रखकर करना चाहिए। सही चयन से यह पूजा देवी के आशीर्वाद को कई गुना बढ़ा देती है।

तेन प्राप्ताऽथ वैदेही कृत्वा सेतुं महार्णवे ।

हत्वा मन्दोदरीनाथं कुम्भकर्णं महाबलम् ।।

मेघनादं सुतं हत्वा कृत्वा भूपं बिभीषणम् ।

पश्चादयोध्यामागत्य प्राप्तं राज्यमकण्टकम् ।।

               देवीभागवत ०३/२७/५१-५२

‘‘नवरात्रि व्रत के प्रभाव से श्रीरामजी ने महासागर पर सेतु की रचना कर महाबली मन्दोदरीपति रावण, कुम्भकर्ण तथा रावणपुत्र मेघनाद का संहार करके सीताजी को प्राप्त किया । विभीषण को लंका का राजा बनाकर पुनः अयोध्या लौटकर उन्होंने निष्कण्टक राज्य प्राप्त किया ।"

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