Ribhu gan ki katha |
सुधन्वन अंगिरस के पुत्र थे। सुधन्वन के तीन पुत्र ऋभुगण, विम्बन और वाज हुए। तीनों पुत्र त्वष्टा के शिष्य थे। वे कुशल शिल्पी थे।
त्वष्टा ने उन समस्त बातों की शिक्षा तीनों शिष्यो को दी, जिसमे वे स्वयं पारंगत थे।
उनकी कला निर्माण तक ही सीमित नहीं थी। उन्होंने धेनु भी बनायी। वह अमृत तुल्य मधुर दूध देती थी। सत्याशय, सरल और स्नेही ऋभुओं ने जराजीर्ण अशक्त माता-पिता को अपनी कला से युवा बना दिया था ।
त्वष्टा ने चमस पात्र बनाया था। अपने गुरू त्वष्टा से भी वे शिष्य कला में प्रवीण हो गये। उन्होने एक स्थान पर चार चमस पात्र बना दिये । वे अपनी कला, हस्त- कौशल तथा कर्म से स्तुति प्राप्त करने लगे। वे देवताओं के मध्य भी विचरने लगे। वे मानव थे, तथापि उन्हें यज्ञ-भाग भी मिलने लगा ।
ऋभुओं की कार्य-कुशलता से सूर्य प्रसन्न हो गये। मरणधर्मा होने पर भी उन्हे अमरत्व प्रदाने किया ऋभुओं नें निरन्तर परिश्रम तथा शुभ कर्मों द्वारा अमरत्व प्राप्त किया। अग्नि देवताओं के दूत बनकर आये।
अग्नि बोले, "ऋभुगण मैं देवताओं के कार्य से आपके पास आया हूँ।"
"ऋषिवर! आज्ञा ?" ऋभुओं ने नम्रतापूर्वक कहा ।
" त्वष्टा ने एक चमस बनाया है।"
"ज्ञात है महात्मन्! "
" एक चमस को चार भागों में विभक्त कर दीजिये।"
"इससे लाभ? "ऋभुओं ने साश्चर्य कहा ।
"देवताओं के तुल्य आप यज्ञ का भाग प्राप्त करेंगे।"
“ऋभुगण विचार करने लगे।"
"महात्मन् हम चार बना देंगे।" तीसरे ऋभु ने कहा ।
अग्नि प्रसन्न हो गये। बोले, "तुम्हारे गुरू त्वष्टा ने चमस को चार बनाने की योजना को स्वीकार लिया है।"
ऋभुगण हर्षित हो गये। उन्होने चार चमस बनाकर दिये ।
"ऋभुओं " अग्नि ने कहा, "आप हस्तब्यापार कुशल हैं। अमरत्व प्राप्ति के मार्ग पर गमन कीजिए ।"
ऋभुओं को यज्ञ में भाग मिलने लगा । त्वष्टा चमसों को देखकर प्रसन्न हुए । उन्होंने उनको ग्रहण किया ।
ऋभुओं ने अश्विनीकुमारो के लिए तीन आसनों का दिव्य रथ निर्माण किया । इन्द्र के लिए दो अश्वों से चलने वाले शीघ्रगामी रथ को बनाया । गाय तथा अश्व बनाए । देवताओं के निमित्त अभेद्य कवच बनाया। आकाश एवं पृथ्वी को पृथक् किया। वे प्रथम सोमपान करने वाले हुए। वे तीसरे सवन में स्वधा के अधिकारी हुए ।
कनिष्ठ ऋभु वाज देवताओं से, मध्यम ऋभु वरुण से तथा ज्येष्ठ ऋभु इन्द्र से सम्बन्धित हुए । इन्द्र के सखा हुए। इन्द्र के साथ सोमपान करने लगे। वे अरूण तथा मरुद्गण के साथ सोमपान करने लगे ।
ऋभुओं ने अश्विनीकुमारों के लिए तीन पहियों का एक देदीप्यमान रथ बनाया । वह बिना अश्व के अन्तरिक्ष में विचरण करता था ।
अपनी कर्तव्यनिष्ठा के कारण वे देवता हुए। उन्होंने मानव के लिए देवत्व प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त किया। मानव देव हो सकता है, यह आशा मानवों में उत्पन्न की। मानव देवताओ की पूजा करते हैं, परन्तु अपने कर्म से स्वयं पूजित हो सकते हैं।
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