यदुवंश की कथा, भागवत नवम स्कंध, अध्याय 23-24

Sooraj Krishna Shastri
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यदुवंश की कथा, भागवत नवम स्कंध, अध्याय 23-24

यह चित्र भागवत पुराण के नवम स्कंध (अध्याय 23-24) में वर्णित यदुवंश की कथा को दर्शाता है। इसमें यदुवंश के प्रमुख घटनाक्रम जैसे राजा यदु का दरबार, भगवान कृष्ण की दिव्य महिमा, मथुरा नगरी का वैभव और यदुवंशियों का द्वारका में प्रवास को भव्यता से चित्रित किया गया है। 


यदुवंश की कथा, भागवत नवम स्कंध, अध्याय 23-24

 यदुवंश की कथा भागवत पुराण के नौवें स्कंध, अध्याय 23 और 24 में वर्णित है। यदुवंश चंद्रवंश की प्रमुख शाखा है, जिसका आरंभ महाराज ययाति के पुत्र यदु से हुआ। इस वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ, जिन्होंने धर्म की स्थापना और अधर्म का नाश किया। यदुवंश अपने वीर और धर्मपरायण राजाओं के लिए प्रसिद्ध है।

यदुवंश का प्रारंभ - यदु का परिचय

  • यदु महाराज ययाति और उनकी पत्नी देवयानी के सबसे बड़े पुत्र थे।
  • यदु ने अपने पिता को अपनी युवावस्था देने से इनकार कर दिया, जिसके कारण ययाति ने उन्हें राज्य से वंचित कर दिया।
  • यदु ने स्वतंत्र रूप से अपना वंश स्थापित किया।

श्लोक:

यदुस्तु सर्वधर्मज्ञः पितुर्वाक्यममर्षयन्।

स्वयमेव स्ववंशाय स्थापितं धर्ममाचरन्।।

(भागवत पुराण 9.23.6)

भावार्थ:

यदु ने अपने पिता की बात न मानकर अपना स्वतंत्र वंश स्थापित किया और धर्म का पालन किया।

यदु के वंशज

  • सहस्त्रजित, क्रोष्टा, और उनके वंश
  • यदु के चार पुत्र थे: सहस्त्रजित, क्रोष्टा, नल, और रिपु।
  • सहस्त्रजित और क्रोष्टा के वंश में कई प्रसिद्ध राजा हुए।

क्रोष्टा के वंशज

शूर और वसुदेव

  • क्रोष्टा के वंश में शूर हुए, जो धर्म और पराक्रम में अद्वितीय थे।
  • शूर के पुत्र वसुदेव थे, जिनका विवाह देवकी से हुआ।

श्लोक:

क्रोष्टोरभूद्वंशकृतः शूरो धर्मपरायणः।

वसुदेवो महातेजा यस्य कृष्णोऽभवत्सुतः।।

(भागवत पुराण 9.24.31)

भावार्थ:

  • क्रोष्टा के वंशज शूर के पुत्र वसुदेव हुए, जिनके पुत्र भगवान श्रीकृष्ण थे।
  • वृष्णि, अंधक, और यादव वंश
  • शूर के वंश में वृष्णि और अंधक ने यादव वंश को संगठित किया।
  • यादव वंश में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।

भगवान श्रीकृष्ण का जन्म

कंस का अत्याचार

  • कंस ने उग्रसेन को कैद कर मथुरा पर अधिकार कर लिया।
  • आकाशवाणी के अनुसार, वसुदेव और देवकी की आठवीं संतान कंस का वध करेगी।
  • कंस ने देवकी और वसुदेव को कैद कर लिया और उनके बच्चों का वध किया।

श्लोक:

कंसः पितृभक्तिं हित्वा तिष्ठन्नत्याधिको भयात्।

वधिष्यत्यात्मजं विष्णुस्तेषां योनावुपस्थितम्।।

(भागवत पुराण 10.1.41)

भावार्थ:

कंस ने आकाशवाणी सुनकर देवकी की संतानों को मारने का प्रयास किया।

श्रीकृष्ण का जन्म और बाल लीला

  • वसुदेव और देवकी के आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।
  • श्रीकृष्ण ने गोकुल में नंद और यशोदा के यहाँ बाल लीला की और कंस के अत्याचार को समाप्त किया।

यदुवंश के अन्य प्रसिद्ध राजा

सत्यक और सात्यकि

  • सत्यक और सात्यकि यदुवंश के महान योद्धा थे, जिन्होंने महाभारत युद्ध में पांडवों का साथ दिया।

उग्रसेन

  • उग्रसेन यादवों के राजा थे। कंस ने उन्हें कैद कर मथुरा पर अधिकार किया।
  • कंस के वध के बाद श्रीकृष्ण ने उग्रसेन को पुनः राजा बनाया।

यदुवंश का विस्तार

श्रीकृष्ण के पुत्र

  • भगवान श्रीकृष्ण के 10 प्रमुख पुत्र थे, जिनमें प्रद्युम्न, सांब, और अनिरुद्ध प्रमुख थे।

श्लोक:

कृष्णस्य दश पुत्राश्च येषां प्रद्युम्न उत्तमः।

सांबश्चानिरुद्धश्च धर्मं स्थापयते भुवि।।

(भागवत पुराण 10.61.8)

भावार्थ:

श्रीकृष्ण के 10 पुत्रों में प्रद्युम्न, सांब, और अनिरुद्ध धर्म की स्थापना में प्रमुख थे।

बलराम और उनके वंशज

  • श्रीकृष्ण के बड़े भाई बलराम ने यादव वंश की प्रतिष्ठा को बढ़ाया।
  • बलराम के वंशज भी धर्म और पराक्रम में अद्वितीय थे।

यदुवंश का विनाश

  • श्रीकृष्ण के जीवन के अंत में यादवों के बीच आपसी संघर्ष हुआ, जिससे यदुवंश का विनाश हो गया।
  • श्रीकृष्ण ने इसे पूर्वनिर्धारित भाग्य बताया और स्वयं अपने धाम लौट गए।

श्लोक:
यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
तदा यदूनां पतनं कृत्वा विष्णुः परं गतः।।
(भागवत पुराण 11.1.20)

भावार्थ:

जब धर्म का ह्रास हुआ, तब श्रीकृष्ण ने यदुवंश का विनाश करके अपना कार्य पूर्ण किया और अपने धाम लौट गए।

कथा का संदेश

1. धर्म की स्थापना:

यदुवंश धर्म, भक्ति, और पराक्रम का प्रतीक है।

2. त्याग और कर्तव्य:

यदु ने अपने पिता की आज्ञा न मानकर स्वतंत्र रूप से धर्म और वंश की स्थापना की।

3. भगवान का अवतार:

श्रीकृष्ण ने यदुवंश में जन्म लेकर धर्म की पुनर्स्थापना की और अधर्म का नाश किया।

4. संघर्ष का अंत:

यदुवंश का विनाश यह सिखाता है कि आपसी संघर्ष विनाश का कारण बनता है।

निष्कर्ष

यदुवंश की कथा, भागवत नवम स्कंध, अध्याय 23-24 के अनुसार धर्म, भक्ति, और भगवान श्रीकृष्ण के अवतार का प्रतीक है। इस वंश में अनेक वीर और धर्मपरायण राजा हुए। यदुवंश ने भारतीय इतिहास और धर्म को अद्वितीय योगदान दिया। यह कथा हमें धर्म और भक्ति के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।


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