पुरुवंश का विस्तार: भागवत नवम स्कंध (अध्याय 17-22)

Sooraj Krishna Shastri
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पुरुवंश का विस्तार: भागवत नवम स्कंध (अध्याय 17-22)

पुरुवंश का विस्तार: भागवत नवम स्कंध (अध्याय 17-22)। यह चित्र भागवत पुराण के नौवें स्कंध (अध्याय 17-22) में वर्णित पुरुवंश की मुख्य घटनाओं को भव्य और कलात्मक रूप से दर्शाता है। 




पुरुवंश का विस्तार: भागवत नवम स्कंध (अध्याय 17-22)

श्रीमद्भागवत महापुराण में पुरुवंश का उल्लेख विस्तृत रूप से हुआ है। यह वंश चंद्रवंश से संबंधित है और राजा पुरु से आरंभ होकर भारत के महान शासकों तक विस्तारित होता है। निम्नलिखित अध्यायों में पुरुवंश के प्रमुख राजाओं और उनकी उपलब्धियों का उल्लेख श्लोकों के साथ किया गया है।


अध्याय 17: चंद्रवंश का प्रारंभ और पुरुवंश की स्थापना

  • चंद्रवंश की उत्पत्ति: सोम (चंद्र) की उत्पत्ति प्रजापति अत्रि के तप से हुई।
  • सोम के पुत्र बुध का विवाह इला से हुआ। बुध और इला के पुत्र पुरु हुए।
  • पुरु को चंद्रवंश की गद्दी दी गई, क्योंकि वे गुणों और पराक्रम में श्रेष्ठ थे।

महत्वपूर्ण श्लोक:

सोमस्यापि सुत: सूक्ष्मो बुद्धो धर्मभृतां वर:।  
तस्याप्यभूद् पुरुरसौ राजर्षीणां कुलेश्वर:।।  

(अर्थ: सोम के पुत्र बुध थे, जो धर्म का पालन करने वालों में श्रेष्ठ थे। उनके पुत्र पुरु हुए, जो चंद्रवंश के राजा बने।)

कथा:
पुरु ने अपने गुणों और वीरता से अपने भाइयों से आगे बढ़कर चंद्रवंश को नई दिशा दी। उनके नाम से पुरुवंश प्रसिद्ध हुआ।


अध्याय 18: राजा दुष्यंत और भरत की कथा

  • दुष्यंत और शकुंतला का विवाह:
    राजा दुष्यंत ने ऋषि विश्वामित्र और मेनका की पुत्री शकुंतला से विवाह किया।
  • उनके पुत्र भरत महान चक्रवर्ती सम्राट बने।

महत्वपूर्ण श्लोक:

भरतश्च तत: कृत्वा पृथ्वीं सप्त समुद्रवतीम्।  
स्वयं त्यक्त्वा वनेवासं तप: क्षत्रं समास्थित:।।  

(अर्थ: भरत ने पूरी पृथ्वी को सात समुद्रों तक अपने साम्राज्य में कर लिया और अंत में वनों में तपस्या के लिए चले गए।)

कथा:
भरत के नाम पर हमारे देश का नाम "भारतवर्ष" पड़ा। उन्होंने धर्म और शक्ति का अद्भुत संतुलन स्थापित किया।


अध्याय 19: राजा ययाति और उनके पुत्रों की कथा

  • ययाति नहुष के पुत्र थे। उनकी वीरता और धर्मप्रियता के लिए उनकी प्रशंसा की जाती है।
  • ययाति के पाँच पुत्र हुए: यदु, तुर्वसु, द्रुह्यु, अनु, और पुरु।
  • ययाति ने अपने पुत्र पुरु को युवावस्था का वरदान देकर राज्य का उत्तराधिकारी बनाया।

महत्वपूर्ण श्लोक:

पुरवे चक्रुरीश्वरं धर्मेण दयया च य:।  

(अर्थ: ययाति ने अपने सबसे धर्मप्रिय और योग्य पुत्र पुरु को राजा बनाया।)

कथा:
ययाति ने अपने जीवन में अधर्म का त्याग किया और अपने पुत्र पुरु को राज्य देकर वनों में तपस्या करने चले गए।


अध्याय 20: यदुवंश का प्रारंभ

  • ययाति के बड़े पुत्र यदु ने अपने वंश को आगे बढ़ाया, जिससे यदुवंश की स्थापना हुई।
  • यदुवंश में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ।

महत्वपूर्ण श्लोक:

यदु: शूरो महातेजा भगवान् कृष्ण एव च।  

(अर्थ: यदु वंश में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, जो महाप्रभु और धर्म के पुनः स्थापनकर्ता बने।)

कथा:
यदु के वंश में भगवान कृष्ण का जन्म हुआ, जिन्होंने अधर्म के नाश और धर्म की स्थापना की।


अध्याय 21: पुरुवंश के अन्य राजाओं का वर्णन

  • राजा कुरु इस वंश के सबसे प्रसिद्ध राजा थे। उनके नाम पर कुरुक्षेत्र का नाम पड़ा।
  • कुरु वंश में भीष्म, धृतराष्ट्र, पांडु, और द्रौपदी जैसे महापुरुष उत्पन्न हुए।

महत्वपूर्ण श्लोक:

कुरुर्महीपतिश्चासीद्यशसा लोकविश्रुत:।  

(अर्थ: कुरु एक धर्मप्रिय और न्यायप्रिय राजा थे, जिनकी ख्याति समस्त लोकों में फैली।)

कथा:
कुरु ने कुरुक्षेत्र को एक पवित्र स्थल के रूप में विकसित किया, जो महाभारत के युद्ध का स्थल बना।


अध्याय 22: पुरुवंश की समाप्ति और उसका महत्व

  • पुरुवंश के राजाओं ने अपनी धर्मप्रियता और पराक्रम से पृथ्वी को समृद्ध बनाया।
  • इस वंश के राजा मानव समाज को धर्म, अर्थ, काम, और मोक्ष का संतुलन सिखाते हैं।

महत्वपूर्ण श्लोक:

पाण्डवास्तु महात्मानो धर्मराजो युधिष्ठिर:।  

(अर्थ: पांडव, विशेष रूप से युधिष्ठिर, धर्म और सत्य के प्रतीक थे।)


पुरुवंश का विस्तार: भागवत नवम स्कंध (अध्याय 17-22) सारांश:

  1. चंद्रवंश का प्रारंभ: सोम → बुध → पुरु।
  2. महान राजा: पुरु, दुष्यंत, भरत, ययाति, कुरु।
  3. महान उपलब्धियाँ: चक्रवर्ती साम्राज्य, धर्म की स्थापना।
  4. महान व्यक्तित्व: पांडव, भीष्म, भगवान कृष्ण।

कथा का संदेश:

  • पुरुवंश धर्म, सत्य, और वीरता का प्रतीक है।
  • इस वंश ने समाज को नैतिकता और धर्म का महत्व सिखाया।
  • पुरुवंश के राजाओं ने धर्म के मार्ग पर चलकर समस्त लोकों को प्रेरित किया।

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