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भागवत कथा: भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव का युद्ध |
श्रीमद्भागवत पुराण में भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव का युद्ध
(दशम स्कंध, अध्याय 63 का विश्लेषणात्मक विवरण)
प्रस्तावना
श्रीमद्भागवत महापुराण के दशम स्कंध के तिरेसठवें अध्याय में एक विलक्षण एवं दिव्य प्रसंग मिलता है, जहाँ भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव के मध्य युद्ध हुआ। यह प्रसंग केवल एक युद्धकथा नहीं, अपितु देवों की परस्पर लीला और भक्ति, धर्म तथा विनम्रता के गूढ़ संदेश का प्रकाशक है।
1. बाणासुर – शिवभक्त असुर और उसका पराक्रम
बाणासुर, प्राग्ज्योतिषपुर का अधिपति, सहस्त्रभुजाधारी एक महाबली असुर था, जो भगवान शिव का परम भक्त था। उसकी पुत्री उषा ने स्वप्न में भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध को देखा और प्रेमवश सखी चित्रलेखा की सहायता से उन्हें अपने महल में बुला लिया। यह ज्ञात होते ही बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंदी बना लिया।
श्लोक:सोऽनिरुद्धं बबन्धासौ बाणः पाशैर्महाबलः।नित्यं च तं सुभगं दृष्ट्वा उषा स्नेहसारिणी॥(भागवत 10.62.31)अर्थ: बाणासुर ने अनिरुद्ध को बंधन में बाँध दिया, परन्तु उषा का प्रेम प्रतिदिन बढ़ता गया।
2. श्रीकृष्ण का प्राग्ज्योतिषपुर गमन
अनिरुद्ध की कैद की सूचना पाकर भगवान श्रीकृष्ण बलराम, प्रद्युम्न और अन्य यदुवीरों के साथ बाणासुर पर चढ़ाई करते हैं।
श्लोक:स जगाम ततः कृष्णः प्रद्युम्नेन सहान्वितः।बलभद्रादिभिर्भूपैः सुनीथेन च भूतले॥(भागवत 10.63.3)
3. भगवान शिव का युद्ध में प्रवेश
अपने भक्त की सहायता हेतु भगवान शिव, देवी पार्वती, गणों तथा पुत्र कार्तिकेय के साथ युद्धभूमि में प्रकट होते हैं।
श्लोक:आययौ भगवान् रुद्रः सह देव्या गणैः प्रभुः।चण्डांश्च गणपान् मूर्ध्नि धनुषा शूलधारिणः॥(भागवत 10.63.5)
4. शिव और श्रीकृष्ण का महायुद्ध
दोनों देवताओं के मध्य दिव्यास्त्रों का आदान-प्रदान हुआ। शिवजी का त्रिशूल श्रीकृष्ण के सुदर्शन चक्र से नष्ट हो गया।
श्लोक:शूलं यदासृजद्रुद्रः स चक्रेण हरेर्यथा।मोहयामास भगवान् माया योगेश्वरेश्वरः॥(भागवत 10.63.13)
5. शिव का मोह और श्रीकृष्ण की विजय
श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से शिव को मोहित कर लिया। अंततः शिवजी ने श्रीकृष्ण की दिव्यता को पहचान लिया और युद्ध समाप्त कर दिया।
श्लोक:तं ज्ञात्वा भगवान् रुद्रं स्वकीयं भक्तवत्सलम्।स्तुत्वा स्तवं च पापौघं हरिरेणं विविस्मयः॥(भागवत 10.63.15)
6. बाणासुर का पराजय और उद्धार
भगवान श्रीकृष्ण ने बाणासुर की सहस्त्र भुजाओं में से केवल चार भुजाएं शेष रखीं। शिवजी के आग्रह पर उन्होंने बाणासुर को क्षमा कर दिव्यता प्रदान की।
श्लोक:ततो भगवान् रक्षन् शूलपाणेर्यशः शुभम्।चत्वारिंशद्भुजं चक्रे बाणं दिव्यं महामतम्॥(भागवत 10.63.30)
7. अनिरुद्ध और उषा का विवाह
अंत में अनिरुद्ध और उषा का विवाह सम्पन्न हुआ और श्रीकृष्ण यदुवंशियों सहित द्वारका लौटे।
श्लोक:अनिरुद्धाय वै दत्त्वा कन्यां यज्ञेन साधितः।द्वारकां प्रययौ कृष्णः स्वपरिवारसंधितः॥(भागवत 10.63.34)
महत्वपूर्ण संदेश
1. शिव-विष्णु का दिव्य सामंजस्य
यह कथा स्पष्ट करती है कि शिव और विष्णु विरोधी नहीं, अपितु परस्पर पूज्य हैं। उनका युद्ध केवल भक्तों के कल्याणार्थ एक लीला है।
2. अहंकार का पतन और क्षमा की महिमा
बाणासुर के अहंकार का अंत कर श्रीकृष्ण ने दिखाया कि शक्ति से अधिक महत्वपूर्ण विनम्रता और भक्ति है।
3. धर्म की स्थापना
अनिरुद्ध की मुक्ति और विवाह से धर्म की रक्षा और सामाजिक मर्यादा की स्थापना हुई।
4. प्रेम और परिवार का आदर्श
उषा और अनिरुद्ध की प्रेमकथा दर्शाती है कि प्रेम की रक्षा करना भी भगवत्कृपा का अंग है।
निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण और भगवान शिव के बीच का यह युद्ध केवल बाह्य संघर्ष नहीं, अपितु भक्तों के लिए गूढ़ आध्यात्मिक शिक्षाओं का संगम है। यह कथा भक्ति, क्षमा, धर्म और प्रेम का अनुपम संदेश देती है।
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