Spiritual Healing through Bhakti: सेठ की बीमारी और मोची का भजन

Sooraj Krishna Shastri
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  यह अत्यंत प्रेरक और शिक्षाप्रद कथा है जो जीवन के मूल्यों, भक्ति, और लालच के प्रभाव को सरल भाषा में उजागर करती है। नीचे इसे  भावपूर्ण शैली में प्रस्तुत किया गया है:


Spiritual Healing through Bhakti: सेठ की बीमारी और मोची का भजन

प्रस्तावना :
हमारा जीवन अक्सर दो राहों पर चलता है – एक तरफ भक्ति, शांति और आत्मिक सुख; दूसरी तरफ भौतिक सुख, धन और लालच। जब हम संतुलन खो देते हैं, तो जीवन भी डगमगाने लगता है। प्रस्तुत कथा इसी भाव का जीवंत चित्रण करती है।
Spiritual Healing through Bhakti: सेठ की बीमारी और मोची का भजन
Spiritual Healing through Bhakti: सेठ की बीमारी और मोची का भजन



सेठ और मोची का परिचय

एक गाँव में एक धनी सेठ रहा करता था। उसका विशाल बँगला था, नौकर-चाकर थे, और व्यापार दिन दूनी रात चौगुनी तरक्की कर रहा था। उसी बँगले के पास एक साधारण सी झोपड़ी में एक गरीब मोची अपनी छोटी सी जूते सिलने की दुकान चलाया करता था।

मोची की खासियत यह थी कि वह जब भी जूते सिलता, तो बड़े भाव से भगवान के भजन गुनगुनाता। उसकी आवाज में कोई विशेष संगीत या प्रशिक्षण नहीं था, पर उसमें सच्ची श्रद्धा, प्रेम और आत्मिक लगाव था।

सेठ को इस भजन से कोई खास मतलब नहीं था। वह अपनी दुनिया में मग्न था, जहाँ धन ही सबकुछ था।


सेठ की बीमारी और भक्ति की पहली झलक

एक दिन व्यापार के सिलसिले में सेठ विदेश गया। वापसी पर उसकी तबियत बहुत बिगड़ गई।
देश-विदेश के डॉक्टर, वैद्य, हकीम सभी बुलाए गए, लेकिन किसी को उसकी बीमारी का सही इलाज नहीं मिला। वह बिस्तर से उठ भी नहीं पाता था। धीरे-धीरे उसका शरीर जवाब देने लगा।

इसी बीच एक दिन, जब वह खिड़की के पास लेटा था, तभी मोची की भक्ति-भरी आवाज उसके कानों में पड़ी। भजन के बोल उसके हृदय को जैसे छू गए हों।
पहली बार सेठ को उन भजनों में कुछ अद्भुत अनुभूति हुई। उसे लगा जैसे कोई दिव्य शक्ति उसके पास आकर बैठ गई हो। धीरे-धीरे वह भजन सुनने का अभ्यस्त हो गया।


स्वास्थ्य में चमत्कारिक सुधार

भजन सुनते-सुनते उसके मन का बोझ कम होने लगा। उसे जैसे भीतर से कोई ऊर्जा मिल रही थी। कुछ ही दिनों में उसके स्वास्थ्य में सुधार होने लगा। अब उसका मन भी शांत रहने लगा। उसने सोचा कि वह मोची को धन्यवाद दे।

एक दिन सेठ ने मोची को अपने घर बुलाया और कहा –
“बड़े-बड़े वैद्य मेरी बीमारी नहीं ठीक कर सके, लेकिन तुम्हारे भजन ने मेरे प्राणों को जैसे नया जीवन दे दिया। ये लो 1000 रुपये इनाम।”
मोची ने पैसे स्वीकार किए, खुशी-खुशी चला गया।


धन का भ्रम और भक्ति की हानि

परन्तु उस रात मोची सो नहीं पाया।
वह सारे पैसे देखकर चिंतित हो गया –
“इतने पैसे कहाँ छुपाऊँ?”
“कौन-कौन सी चीजें खरीदूँ?”
“कहीं कोई चुरा न ले!”

इन विचारों ने उसके मन का चैन छीन लिया।
अब उसका ध्यान भजनों से हट गया। वह चिंतित, बेचैन और अस्थिर हो गया।
धीरे-धीरे उसने काम पर जाना भी बंद कर दिया। उसकी दुकान की स्थिति भी बिगड़ने लगी।

इधर, सेठ की तबियत फिर से खराब होने लगी, क्योंकि अब मोची के भजन की गूंज सुनाई नहीं देती थी। उसे भी अपने भीतर खालीपन महसूस होने लगा।


पुनरागमन : आत्मा की पुकार

एक दिन मोची स्वयं सेठ के पास पहुँचा। उसका चेहरा उदास था।
उसने हाथ जोड़कर कहा –
“सेठ जी, कृपया ये पैसे वापस रख लीजिए। इस धन ने मुझे भगवान से दूर कर दिया। भजन का रस चला गया, मेरा मन अशांत हो गया। मुझे वह आत्मिक सुख नहीं मिल रहा जो मुझे पहले मिलता था। अब मैं फिर से अपने पुराने रास्ते पर लौटना चाहता हूँ।”

सेठ यह सुनकर अवाक् रह गया। मोची ने पैसे लौटाए और फिर अपनी दुकान पर जाकर, पहले की तरह भक्ति में तल्लीन हो गया।


निष्कर्ष :

यह कथा हमें बहुत बड़ी सीख देती है —

  • भक्ति और संतोष ही सच्चे सुख के स्रोत हैं।
  • धन कभी आत्मिक आनंद नहीं दे सकता, बल्कि कभी-कभी वह हमें उस मार्ग से भी भटका देता है जो हमारे जीवन का मूल उद्देश्य होता है।
  • संसारिक लोभ हमें हमारी आत्मा से, हमारी सच्ची पहचान से दूर कर देता है।
  • और कभी-कभी, कोई गरीब मोची, अपनी सच्ची भक्ति से एक राजा के भी जीवन में उजाला ला सकता है।

🌸 शिक्षा :

"धन से शरीर का उपचार हो सकता है, पर आत्मा की शांति केवल भक्ति और प्रेम से ही संभव है।"

"परमात्मा को पाने के लिए मन का निर्मल होना आवश्यक है, न कि जेब का भारी होना।"


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