आत्मा : परमात्मा का अंश (Atma Parmatma Relation) – Sat-Chit-Anand Ka Gyaan
"आत्मा परमात्मा का सनातन अंश है। उपनिषद, गीता और शास्त्रों के अनुसार आत्मा का स्वरूप अविनाशी और आनंदमय है। जानिए Sat-Chit-Anand Brahm, जीवन का रहस्य, आत्मा और प्रकृति का संबंध, तथा गायत्री मंत्र का ‘तत्’ रहस्य।"
🌻☘️ आत्मा : परमात्मा का अंश और आनंदस्वरूप ☘️🌻शास्त्रीय विवेचन एवं संदर्भ सहित
✨ 1. आत्मा का स्वरूप – परमात्मा का अंश
भगवद्गीता (अध्याय 15, श्लोक 7) में श्रीकृष्ण स्पष्ट कहते हैं –
ममैवांशो जीवलोके जीवभूतः सनातनः ।मनःषष्ठानीन्द्रियाणि प्रकृतिस्थानि कर्षति ॥
👉 यहाँ यह स्पष्ट है कि आत्मा परमात्मा से अभिन्न है।
- परमात्मा यदि सत्-चित्-आनंद स्वरूप है,
- तो आत्मा का स्वभाव भी स्वाभाविक रूप से आनंदमय और अविनाशी है।
![]() |
आत्मा : परमात्मा का अंश (Atma Parmatma Relation) – Sat-Chit-Anand Ka Gyaan |
✨ 2. आत्मा और आनंद का संबंध
तैत्तिरीयोपनिषद् (ब्रह्मानंदवल्ली) में आनंद को परम तत्व बताया गया है –
आनन्दो ब्रह्मेति व्यजानात्।आनन्दाद्ध्येव खल्विमानि भूतानि जायन्ते।
👉 इससे स्पष्ट है कि –
- आत्मा परमात्मा का अंश होने के कारण कभी दुःखस्वरूप नहीं हो सकती।
- दुःख केवल अज्ञान (अविद्या) और माया का आवरण है।
✨ 3. जीवन का वास्तविक स्वरूप
जीवन वस्तुतः आत्मा और प्रकृति का पवित्र समन्वय है।
- आत्मा = चेतना, प्रकाश, आनंद।
- प्रकृति = सृष्टि, शरीर और अनुभव का क्षेत्र।
यथाऽऽदर्शे तथाात्मनि तथा परमात्मनि ।दृष्टे रजस्तमोलोभा रागद्वेषादयः क्षयम् ॥
✨ 4. पुनर्जन्म और जीवन का आकर्षण
👉 परन्तु आत्मा जानती है कि —
- जीवन मूलतः आनंद का अनुभव कराने वाला अवसर है।
- दुख केवल अस्थायी भ्रम है।
इसीलिए गीता (9.33) में श्रीकृष्ण कहते हैं –
अनित्यमसुखं लोकमिमं प्राप्य भजस्व माम् ॥
✨ 5. वर्तमान जीवन की विडंबना
आज अधिकांश लोग आनंदमय आत्मा को भूलकर –
- भय, चिंता, असंतोष और निराशा में जी रहे हैं।
- कारण है – माया और अविद्या का जाल।
कठोपनिषद् (1.2.23) चेतावनी देता है –
अविद्यायामन्तरे वर्तमानाः स्वयं धीराः पण्डितं मन्यमानाः ।
✨ 6. गायत्री मंत्र का रहस्य – ‘तत्’
गायत्री मंत्र में ‘तत्’ शब्द गहन दार्शनिक संकेत देता है।
- यह हमें याद दिलाता है कि यह संसार क्षणभंगुर है।
- जीवन और मृत्यु दोनों के रहस्य को समझकर ही सच्चा आनंद पाया जा सकता है।
गीता (2.20) भी कहती है –
न जायते म्रियते वा कदाचित् ।नायं भूत्वा भविता वा न भूयः ।अजो नित्यः शाश्वतोऽयं पुराणोन हन्यते हन्यमाने शरीरे ॥
👉 इसलिए जीवन का आधार भय नहीं, बल्कि आनंद होना चाहिए।
✨ 7. निष्कर्ष
- आत्मा परमात्मा का सनातन अंश है।
- उसका स्वरूप है सत्-चित्-आनंद।
- दुःख केवल अज्ञानजनित है, वास्तविकता में जीवन आनंदमय उत्सव है।
- शास्त्र हमें यही संदेश देते हैं कि —
- आसक्ति और भय से मुक्त होकर जियो।
- परमात्मा का स्मरण और साधना करो।
- आत्मा का असली स्वरूप पहचानो और आनंद में स्थिर हो जाओ।
🌻☘️🌹 जय जय श्री राधे कृष्णा 🌹☘️🌻