Niti aur Aniti Ki Kamai Ka Antar – नीति और अनीति की कमाई का अंतर | प्रेरणादायी कहानी
"नीति और अनीति की कमाई का अंतर" एक प्रेरणादायी कथा है जो बताती है कि दान की सार्थकता धन की मात्रा में नहीं, बल्कि उसके स्रोत और भावना में है। जानिए क्यों परिश्रम से कमाया गया छोटा सा पैसा भी बड़ा पुण्य देता है।
🌳 नीति और अनीति की कमाई का अंतर 🌳
✨ प्रस्तावना
मानव जीवन में धन का महत्व अत्यधिक है। परंतु यह केवल धन की मात्रा नहीं, बल्कि उसकी प्राप्ति की पवित्रता और उपयोग की सद्बुद्धि ही उसे सार्थक बनाती है। धर्मशास्त्र भी कहते हैं –
“धनं मूलं धर्मस्य” अर्थात् धर्म के पालन में धन का बड़ा महत्व है, परंतु अनुचित साधनों से अर्जित धन कभी धर्म में सहायक नहीं हो सकता।
इसी सत्य को स्पष्ट करने वाली एक प्रेरणादायी कथा प्राचीन काल से प्रचलित है।
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Niti aur Aniti Ki Kamai Ka Antar – नीति और अनीति की कमाई का अंतर | प्रेरणादायी कहानी |
📖 कथा विस्तार
🧘♂️ संत का जीवन
एक नगर में एक संत रहते थे। वे जनता को सत्संग और धार्मिक उपदेश दिया करते थे।
उन्होंने शास्त्रों में पढ़ा था –
"ज्ञानदान बिना किसी प्रतिदान की अपेक्षा के ही श्रेष्ठ है, अन्यथा उसकी महत्ता घट जाती है।"
इसलिए वे अपने जीवन-यापन हेतु किसी से दान नहीं लेते थे, बल्कि स्वयं टोपियाँ सींकर बेचते थे।
दैनिक खर्च निकालने के बाद यदि उनके पास एक पैसा भी बचता, तो वे उसे दान कर दिया करते थे।
💰 सेठ जी की प्रेरणा
उसी नगर के एक धनवान सेठ जी संत के प्रवचन नियमित सुनते और उनकी दिनचर्या पर ध्यान दिया करते।
उन्होंने देखा कि संत प्रतिदिन एक पैसा भी बचाकर दान करते हैं।
इससे प्रेरित होकर सेठ जी ने भी यह संकल्प किया कि वे अपने धर्मखाते से प्रतिदिन एक निश्चित राशि निकालकर जमा करेंगे।
समय बीता और धीरे-धीरे पाँच सौ रुपये धर्मखाते में एकत्र हो गए।
🎁 पहला दान
सेठ जी उन पैसों को लेकर संत के पास पहुँचे और विनम्र भाव से कहा –
“गुरुदेव! मैंने पाँच सौ रुपये धर्मखाते में जमा किए हैं। अब इन्हें कहाँ उपयोग करना चाहिए?”
संत ने सरलता से उत्तर दिया –
“वत्स! जिसे तुम दीन-हीन और जरूरतमंद समझते हो, उसे दान कर दो।”
सेठ जी ने देखा कि एक दुर्बल, अंधा और भूख से पीड़ित व्यक्ति मार्ग में जा रहा है।
उन्होंने उसे सौ रुपये दिए और कहा –
“सूरदास जी! इन रुपयों से भोजन, वस्त्र तथा आवश्यक वस्तुएँ ले लेना।”
अंधा व्यक्ति आशीर्वाद देता हुआ वहाँ से चला गया।
परंतु सेठ जी को जिज्ञासा हुई और वे उसके पीछे-पीछे चल दिए।
⚠️ गलत उपयोग
कुछ दूर जाकर उस अंधे ने उन रुपयों से मांस खरीदा, शराब पी और जुए के अड्डे पर जा पहुँचा।
नशे में उसने सारे रुपये जुए में हार दिए।
फिर जुआरियों ने उसे धक्के देकर बाहर निकाल दिया।
यह देखकर सेठ जी बहुत दुखी हुए।
उन्हें लगा कि उनका दान व्यर्थ चला गया। उनके मन में दान और धर्म के प्रति अविश्वास उत्पन्न हो गया।
🌱 संत की सीख – दूसरा प्रयोग
वे पुनः संत के पास लौटे और सारी घटना सुना दी।
संत मुस्कराए और बोले –
“वत्स! आज यह एक पैसा लो। इसे किसी जरूरतमंद को देना और कल मुझे परिणाम बताना।”
सेठ जी ने आगे जाकर एक गरीब व्यक्ति को वह पैसा दिया।
छिपकर उसके पीछे-पीछे देखने लगे।
🌿 नीति की कमाई का फल
वह गरीब व्यक्ति कई दिनों से भूखा था। उसने अपनी झोली से एक चिड़िया निकाली थी कि भूनकर खा लेगा।
लेकिन एक पैसे से उसने चने खरीदे और संतोषपूर्वक खा लिया।
फिर उसने चिड़िया को आज़ाद कर दिया।
सेठ जी ने आश्चर्यचकित होकर पूछा –
“भाई! तुमने ऐसा क्यों किया?”
गरीब बोला –
“मैं भूखा था, इसलिए चिड़िया पकड़ ली थी। परंतु अब जब मुझे अन्न मिल गया, तो जीव की हत्या क्यों करूँ? भगवान ने पेट भरने का साधन भेज दिया, यही संतोष के लिए पर्याप्त है।”
🌺 कथा का निष्कर्ष
सेठ जी ने यह घटना संत को सुनाई और अंतर पूछा।
संत ने समझाया –
“वत्स! दान का मूल्य केवल उसकी मात्रा से नहीं होता, बल्कि धन की स्रोत-पवित्रता और दानकर्ता की भावना से होता है।
- तुम्हारा धन अनुचित मार्ग से, बिना परिश्रम कमाया हुआ था।इसलिए वह जिस व्यक्ति के पास पहुँचा, उसने भी उसे अनुचित कार्यों में खर्च कर दिया।
- परंतु मेरा एक पैसा ईमानदारी और परिश्रम से अर्जित था।इसलिए जिस व्यक्ति के पास गया, उसने उसे सदुपयोग में लगाया।
याद रखो – धन का दान तभी पुण्यकारी है, जब वह नीति, परिश्रम और ईमानदारी से कमाया गया हो।”
सेठ जी की आँखें खुल गईं। उन्होंने उसी दिन से संकल्प लिया कि वे आगे से अपने व्यापार में पूर्ण ईमानदारी और नीति का पालन करेंगे।
✅ शिक्षा
- दान की सार्थकता मात्रा में नहीं, भावना और स्रोत की पवित्रता में है।
- अनीति से कमाया धन सदा अनिष्ट का कारण बनता है।
- परिश्रमपूर्वक और ईमानदारी से कमाया हुआ छोटा सा दान भी समाज में बड़ा परिवर्तन ला सकता है।
- धन के साथ हमारी भावना भी प्राप्तकर्त्ता तक पहुँचती है।
👉 यह कथा हमें सिखाती है कि जीवन में धन कमाने का तरीका ही उसे पुण्यकारी या पापकारी बनाता है।
“सही साधनों से कमाया धन ही धर्म का सच्चा आधार है।”