क्या आप जानते है कि इस समय हनुमान जी कहाँ रहते है ?

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

gandhmadan
gandhmadan parvat par hanumaan ji


 अश्विन पूर्णिमा के दिन मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने अयोध्या से सटे फैजाबाद शहर के सरयू किनारे जल समाधि लेकर महाप्रयाण किया। श्रीराम ने सभी की उपस्थिति में ब्रह्म मुहूर्त में सरयू नदी की ओर प्रयाण किया।

  जब श्रीराम जल समाधि ले रहे थे तब उनके परिवार के सदस्य भरत, शत्रुघ्न, उर्मिला, मांडवी और श्रुतकीर्ति सहित हनुमान, सुग्रीव आदि कई महान आत्माएं मौजूद थीं।

गरुडपुराण अनुसार

अतो रोचननामासौ मरुदंशः प्रकीर्तितः।

रामावतारे हनुमान्रामकार्यार्थसाधकः।। 

अर्थात ‘जब देवाधिदेव रामचंद्र अवतरित हुए तब उनके प्रतिनिधि मरुत् अर्थात वायुदेव उनकी सेवा और शुश्रुषा के हेतु उनके साथ अवतरित हुए जिन्हें सभी हनुमान इस नाम से जानते हैं।’

रामायण के बालकांड अनुसार

‘विष्णोः सहायान् बलिनः सृजध्वम्।’

अर्थात ‘भगवान विष्णु के सहायता हेतु सभी देवों ने अनेकों वानर, भालू और विविध प्राणियों के रूपमें जन्म लिया।’ अतः जब प्रभु राम स्वयं ही अपने धाम वापस चले गए तब सभी वानरों का इस मृत्युलोक में कार्य समाप्त हो चुका था। ऐसे में सवाल यह उठता है कि तब हनुमानजी कहां चले गए या उनका क्या हुआ ?

 कहते हैं कि श्रीराम के अपने निजधाम प्रस्थान करने के बाद हनुमानजी और अन्य वानर किंपुरुष नामक देश को प्रस्थान कर गए। वे मयासुर द्वारा निर्मित द्विविध नामक विमान में बैठकर किंपुरुष नामक लोक में प्रस्थान कर गए।

  किंपुरुष लोक स्वर्ग लोग के समकक्ष है। यह किन्नर, वानर, यक्ष, यज्ञभुज् आदि जीवों का निवास स्थान है। वहां भूमी के उपर और भूमी के नीचे महाकाय शहरों का निर्माण किया गया है। योधेय, ईश्वास, अर्ष्टिषेण, प्रहर्तू आदि वानरों के साथ हनुमानजी इस लोग में प्रभु रामकी भक्ति, कीर्तन और पूजा में लीन रहते हैं।

शास्त्रीय  प्रमाण

  किम्पुरुषे वर्षे भगवन्तमादिपुरुषं लक्ष्मणाग्रजं सीताभिरामं रामं तच्चरण सन्निकर्षाभिरतः परमभागवतो हनुमान्सह किम्पुरुषैरविरतभक्तिरुपास्ते।।                                - (श्रीमद्भागवतम्)

  अर्थात् श्रीशुकदेव जी ने कहा- हे राजन्, किंपुरुष लोक में भक्तों में श्रेष्ठ हनुमान उस लोक के अन्य निवासियों के साथ प्रभु राम जो लक्ष्मण के बड़े भ्राता और सीता के पति है, उनकी सेवा में हमेशा मग्न रहते हैं।

आर्ष्टिषेणेन सह गन्धर्वैरनुगीयमानां परमकल्याणीं भर्तृभगवत्कथां समुपशृणोति स्वयं चेदं गायति।। (श्रीमद्भागवतम्)

  वहां गंधर्वों के समूह हमेशा रामचंद्र के गुणों का गान करते रहते हैं। वह गान अत्यंत शुभ और मनमोहक होता है। हनुमानजी और आर्ष्ट्रीषेण जो किंपुरुष लोक के प्रमुख है वे उन स्तुतिगानों को हमेशा सुनते रहते हैं।

किम्पौरुषाणाम् वायुपुत्रोऽहं ध्रुवे ध्रुवः मुनिः॥(ब्रह्मवैवर्त पुराण)

  किंपुरुष लोक के निवासियों में तुम मुझे वायुपुत्र हनुमान जान लो तथा ध्रुवलोक में मुझे ध्रुव ऋषि के रूप में देखो।  

किंपुरुष क्षेत्र

  किंपुरुष नेपाल के हिमालय क्षेत्र में आता है। प्राचीनकाल में जम्बूद्वीप के नौ खंडों में से एक किंपुरुष भी था। नेपाल और तिब्बत के बीच कहीं पर किंपुरुष की स्थिति बताई गई है।

  हालांकि पुराणों अनुसार किंपुरुष हिमालय पर्वत के उत्तर भाग का नाम है। यहां किन्नर नामक मानव जाति निवास करती थी। ऐसा भी उल्लेख मिलता है कि इस स्थान पर मानव की आदिम जातियां निवास करती थीं। यहीं पर एक पर्वत है जिसका नाम गंधमादन कहा गया है।

गंधमादन पर्वत

  हनुमानजी कलियुग में गंधमादन पर्वत पर निवास करते हैं, ऐसा श्रीमदभागवत में वर्णन आता है। उल्लेखनीय है कि अपने अज्ञातवास के समय हिमालय पार करके पांडव गंधमादन के पास पहुंचे थे। एक बार भीम सहस्रदल कमल लेने के लिए गंधमादन पर्वत के वन में पहुंच गए थे, जहां उन्होंने हनुमान को लेटे देखा और फिर हनुमान ने भीम का घमंड चूर कर दिया था।

  गंधमादन में ऋषि, सिद्ध, चारण, विद्याधर, देवता, गंधर्व, अप्सराएं और किन्नर निवास करते हैं। वे सब यहां निर्भीक विचरण करते हैं। हिमालय के कैलाश पर्वत के उत्तर में (दक्षिण में केदार पर्वत है) स्थित गंधमादन पर्वत की श्रंखला है। यह पर्वत कुबेर के राज्यक्षेत्र में था। सुमेरू पर्वत की चारों दिशाओं में स्थित गजदंत पर्वतों में से एक को उस काल में गंधमादन पर्वत कहा जाता था। 

आज यह क्षेत्र तिब्बत के इलाके में है। पुराणों के अनुसार जम्बूद्वीप के इलावृत्त खंड और भद्राश्व खंड के बीच में गंधमादन पर्वत कहा गया है, जो अपने सुगंधित वनों के लिए प्रसिद्ध था।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!