रामचरितमानस की विशिष्ट चौपाइयों का विश्लेषण
छिति जल पावक गगन समीरा! पंच रचित यह अधम शरीरा ।।

छिति जल पावक गगन समीरा! पंच रचित यह अधम शरीरा ।।

छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित यह अधम शरीरा ।। अर्थात्, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, इन पांचों तत्वों से मिलकर बना…

By -
Read Now
जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥

जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥

जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ "जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ काल  …

By -
Read Now
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।   रामहि   ते  सपनेहुँ  न सोहाहीं॥

सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥

सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि   ते  सपनेहुँ  न सोहाहीं॥   सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।  रामहि   ते  सपनेहुँ  न स…

By -
Read Now
जौं  सपनें   सिर   काटै   कोई। बिनु   जागें   न   दूरि   दु:ख होई॥

जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दु:ख होई॥

जौं  सपनें   सिर   काटै   कोई।  बिनु   जागें   न   दूरि   दु:ख होई॥ एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दु:ख अ…

By -
Read Now
सुखी  मीन  जे  नीर  अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा।।

सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा।।

सुखी  मीन  जे  नीर  अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा।। अर्थात् , जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि क…

By -
Read Now
गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों  बिरंचि  संकर  सम  होई।।

गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।।

गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों  बिरंचि  संकर  सम  होई।। संत शिरोमणि तुलसी दास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि –  भले …

By -
Read Now
भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥

भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥

भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥ संसार रूपी सागर का पार पाना चाहते हो तो उसके लिए तो श्री राम जी की कथ…

By -
Read Now
सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें॥

सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें॥

सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें॥ स्वयं श्री रामचंद्रजी भी भले ही मुझे कुटिल समझें और लोग मुझे गुरुद्र…

By -
Read Now
सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ।  जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥

सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥

सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥ सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ।   जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥ जोगु कुजोगु ग्यान…

By -
Read Now
उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥

उमा कहउँ मैं अनुभव अपना। सत हरि भजनु जगत सब सपना॥

यह अत्यंत भावपूर्ण, ज्ञानमयी एवं प्रेरणास्पद प्रस्तुति है। इसे एक प्रवचनात्मक शैली में, शीर्षकों के अंतर्गत सुव्यवस्थित…

By -
Read Now
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती।  रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥

जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता।  आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ जासु बिरहँ सो…

By -
Read Now
"सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू" — एक भावपूर्ण व्याख्या

"सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू" — एक भावपूर्ण व्याख्या

गोस्वामी तुलसीदासजी की इस एक चौपाई — "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू" — में भक्तवत्सल प्रभु श्रीराम के प्रति भक्त …

By -
Read Now
Load More No results found

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!