
छिति जल पावक गगन समीरा! पंच रचित यह अधम शरीरा ।।
छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित यह अधम शरीरा ।। अर्थात्, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, इन पांचों तत्वों से मिलकर बना…
छिति जल पावक गगन समीरा । पंच रचित यह अधम शरीरा ।। अर्थात्, पृथ्वी, जल, वायु, आकाश, अग्नि, इन पांचों तत्वों से मिलकर बना…
जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ "जनम मरन सब दुख सुख भोगा। हानि लाभु प्रिय मिलन बियोगा॥ काल …
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥ सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न स…
जौं सपनें सिर काटै कोई। बिनु जागें न दूरि दु:ख होई॥ एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई। जदपि असत्य देत दु:ख अ…
सुखी मीन जे नीर अगाधा। जिमि हरि सरन न एकऊ बाधा।। अर्थात् , जो मछलियाँ अथाह जल में हैं, वे सुखी हैं, जैसे श्री हरि क…
गुर बिनु भवनिधि तरइ न कोई। जों बिरंचि संकर सम होई।। संत शिरोमणि तुलसी दास जी राम चरित मानस में लिखते हैं कि – भले …
भव सागर चह पार जो पावा। राम कथा ता कहँ दृढ़ नावा॥ संसार रूपी सागर का पार पाना चाहते हो तो उसके लिए तो श्री राम जी की कथ…
सीता राम चरन रति मोरें। अनुदिन बढ़उ अनुग्रह तोरें॥ स्वयं श्री रामचंद्रजी भी भले ही मुझे कुटिल समझें और लोग मुझे गुरुद्र…
सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥ सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ। जहँ न राम पद पंकज भाऊ॥ जोगु कुजोगु ग्यान…
यह अत्यंत भावपूर्ण, ज्ञानमयी एवं प्रेरणास्पद प्रस्तुति है। इसे एक प्रवचनात्मक शैली में, शीर्षकों के अंतर्गत सुव्यवस्थित…
जासु बिरहँ सोचहु दिन राती। रटहु निरंतर गुन गन पाँती॥ रघुकुल तिलक सुजन सुखदाता। आयउ कुसल देव मुनि त्राता॥ जासु बिरहँ सो…
गोस्वामी तुलसीदासजी की इस एक चौपाई — "सुनु सेवक सुरतरु सुरधेनू" — में भक्तवत्सल प्रभु श्रीराम के प्रति भक्त …