ऋग्वेद के एक सूक्त में यह उल्लेख मिलता है कि किस प्रकार पुत्रिका की जाने वाली को अपना पुत्री बनाया जाता है अथवा उसे इस आशय में गर्भित किया जाता है। ऋग्वेद की 'न ऋचा में पुत्री को उत्तराधिकार देने का निषेध किया गया है। ऋषि ने यह कहा है कि पुत्री से छोटा पुत्र ज्येष्ठ भ्रता के होता है।
एक समय की बात है जब सुदास द्वारा महायज्ञ किया जा रहा था, उस
महायज्ञ में शक्ति ने गाधिन पुत्र को घायल करके चेतना रहित कर दिया था। जब
वह अपने पुत्र को अचेतन अवस्था में देखकर वह अत्यन्त दुःखी हुआ। उसे दुःखी देखकर जमदग्नियों ने सूर्य के आवास पर पहुँचाया। वहाँ पर ब्रह्म अथवा सूर्य की पुत्री ने उसे ससर्परी नाम वाच् प्रदान की। तत्पश्चात् वाच् ने विश्वामित्र की अचेतन अवस्था को दूर कर दिया।