ऋषि मांडव्य द्वारा यमराज को श्राप

Sooraj Krishna Shastri
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 महाभारत काल के समय एक बहुत ही तेजस्वी और प्रतापी ऋषि हुआ करते थे जिनका नाम था ऋषि मांडव्य... ऋषि मांडव्य ने अपने जीवन काल में कोई भी पाप कर्म नहीं किया था इसलिए अब वो मोक्ष की तैयारी में जुड़ गए थे... मगर इसी बीच एक दिन ऋषि मांडव्य के आश्रम में जब उनके शिष्यों ने पौधे लगाने के लिए ज़मीन की खुदाई की तो आश्रम

की ज़मीन से बहुत सारा सोना निकलने लगा...जब ये बात राजा तक पहुंची तो उन्होंने ऋषि मांडव्य को पूर्व काल का डाकू समझकर पकड लिया... राजा ने ऋषि मांडव्य को प्रजा के सामने ही सूली पर चढाने का का आदेश दे दिया... किन्तु जल्लाद ने जितनी बार भी ऋषि मांडव्य को फांसी देनी चाही ऋषि मांडव्य मरे नहीं...फिर राजा को अपनी भूल का आभास हुआ और उन्होंने ऋषि के पैर पकड़कर उनसे क्षमा याचना कर ली.....मगर अब इधर ऋषि मांडव्य कुपित होकर काल देव के पास पहुँच गए और उनसे जानना चाहा कि उन्होंने जीवन में कभी कोई पाप नहीं किया फिर ऐसी अपमान की परिस्थिति क्यूँ बन गयी उनके साथ..? तब यमराज ने ऋषि मांडव्य को उस वक़्त का काल दिखाया जब वे १२ वर्ष के थे और उन्होंने खेल खेल में एक फतिंगे की पूँछ में सीक डालकर उसे उड़ाया था... काल देव के अनुसार ये उसी पाप का दंड था .. किन्तु ऋषि मांडव्य इसे पाप नहीं मानते क्यूंकि उस उम्र में बालक को पाप और पुण्य का ज्ञान नहीं होता... ऋषि मांडव्य इसी बात से कुपित होकर काल देव को एक दासी के गर्भ से नीच जाती में जन्म लेने का श्राप दे देते हैं...कालान्तर में वही यमराज, नीतिवान विदूर के रूप में एक दासी के गर्भ से जन्म लेते हैं...

 द्वापर युग में धरती पर ऐसा कोई नहीं था जो लोगों को निति -अनीति का ज्ञान देकर उन्हें उचित मार्ग पर लाते.. यमराज ने विदूर के रूप में हस्तिनापुर में जन्म लेकर उसी कमी को पूरा किया और उनकी विदूर नीतियाँ संसार भर में प्रसिद्ध हुई..!

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