भागवत पुराण, पंचम स्कंध, अध्याय 26 में 28 प्रकार के नरकों (यातनागृहों) का विस्तृत वर्णन

Sooraj Krishna Shastri
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भागवत पुराण, पंचम स्कंध, अध्याय 26 में 28 प्रकार के नरकों (यातनागृहों) का विस्तृत वर्णन
भागवत पुराण, पंचम स्कंध, अध्याय 26 में 28 प्रकार के नरकों (यातनागृहों) का विस्तृत वर्णन


 भागवत पुराण के पंचम स्कंध, अध्याय 26 में 28 प्रकार के नरकों (यातनागृहों) का विस्तृत वर्णन किया गया है। ये नरक उन पापों का फल भोगने के स्थान हैं जो मनुष्य अपने जीवन में धर्म के विरुद्ध कार्य करके अर्जित करता है। इन नरकों का वर्णन चेतावनी के रूप में दिया गया है, ताकि व्यक्ति अपने कर्मों को सोच-समझकर करे और पापों से बचे।

28 प्रकार के नरकों का वर्णन

1. तामिस्र

  • पाप: धन, स्त्री, या संपत्ति छीनने वाले व्यक्ति।
  • यातना: ऐसे व्यक्ति को अंधेरे में फेंक दिया जाता है और उसे भयंकर पीड़ा दी जाती है।

 श्लोक:

तमिस्रे तैः प्रपन्नस्य दण्डमुद्वहतो गुरोः।

कृतं पापं स्मरन्त्याशु याम्याः सूक्ष्मेन्धियं नृप।।

2. अंधतामिस्र

  • पाप: स्त्री या परिवार के सदस्यों का छल से अनिष्ट करने वाले।
  • यातना: ऐसे व्यक्ति को बार-बार मारकर बेहोश किया जाता है और अंधकार में रखा जाता है।

3. रौरव

  • पाप: दूसरों को कष्ट पहुँचाने वाले।
  • यातना: इन पापियों को रुरु नामक भयानक जीवों द्वारा काटा जाता है।

4. महारौरव

  • पाप: जीवित प्राणियों को पीड़ा देने वाले।
  • यातना: यहाँ उन्हें विशाल रुरु जीवों द्वारा भक्षण किया जाता है।

5. कुम्भीपाक

  • पाप: निर्दोष प्राणियों को मारने वाले।
  • यातना: ऐसे पापियों को उबलते तेल में फेंक दिया जाता है।

श्लोक:

कुम्भीपाके च पातकं यो हन्यात्स्वामिनो वशम्।

तं घोरं व्यथयत्याशु यमदण्डेन पातकम्।।

6. कल्पसूत्र

  • पाप: वैदिक विधियों का उपहास करने वाले।
  • यातना: इन पापियों को ताम्र-तप्त शय्या पर लेटाया जाता है।

7. असिपत्रवन

  • पाप: धर्म का उपहास करने वाले।
  • यातना: इन्हें कांटेदार वृक्षों से बने जंगल में धकेला जाता है, जहाँ उनके शरीर को चीर दिया जाता है।

8. शूकरमुख

  • पाप: अपने अधिकारों का दुरुपयोग करने वाले।
  • यातना: इन्हें सूअर के मुख की तरह भयानक यंत्रणाएँ दी जाती हैं।

9. अंधकूप

  • पाप: केवल स्वयं के सुख के लिए दूसरों का हक छीनने वाले।
  • यातना: इन्हें गहरे अंधे कूप में डाल दिया जाता है, जहाँ से कोई बाहर नहीं निकल सकता।

10. कृष्णसूत्र

  • पाप: झूठ बोलने वाले और धोखा देने वाले।
  • यातना: इनके शरीर को लोहे की गर्म पट्टियों से बांधकर दंड दिया जाता है।

11. लालाभक्ष

  • पाप: दूसरों की संपत्ति हड़पने वाले।
  • यातना: इन्हें लोहे के गरम गोलों को खाने के लिए मजबूर किया जाता है।

12. सारमेयादन

  • पाप: दूसरों का अकारण उपहास करने वाले।
  • यातना: इन पापियों को यमराज के कुत्तों द्वारा काटा जाता है।

13. अविचि

  • पाप: ब्रह्महत्या और गोहत्या करने वाले।
  • यातना: इन्हें पत्थरों के बीच पीसकर दंडित किया जाता है।

14. अयःपान

  • पाप: मदिरा या मादक पदार्थों का सेवन करने वाले।
  • यातना: इन्हें गरम लोहे के पिघले हुए पदार्थ पिलाए जाते हैं।

15. क्षारकर्दम

  • पाप: दूसरों को धर्म के मार्ग से विचलित करने वाले।
  • यातना: इन्हें जलते हुए कीचड़ में डालकर यातना दी जाती है।

16. रक्षोगणभोजन

  • पाप: यज्ञ को नष्ट करने वाले।
  • यातना: इन्हें राक्षसों के भोजन के रूप में परोसा जाता है।

17. शूलप्रोत

  • पाप: दूसरे प्राणियों को शारीरिक पीड़ा देने वाले।
  • यातना: इन्हें लोहे की तीखी कीलों से भेदकर दंडित किया जाता है।

18. दण्डशूक

  • पाप: दूसरों को भयभीत करने वाले।
  • यातना: इन पापियों को सर्पों से डसवाया जाता है।

19. अवटनीरोधन

  • पाप: माता-पिता का अनादर करने वाले।
  • यातना: इन्हें गहरी खाइयों में डाल दिया जाता है।

20. पारावर्त

  • पाप: व्यभिचारी और अधार्मिक संबंध रखने वाले।
  • यातना: इन्हें नुकीले शस्त्रों से छेदकर दंडित किया जाता है।

21. सूचीमुख

  • पाप: दान में दी हुई वस्तु को वापस लेने वाले।
  • यातना: इन्हें लोहे की सूई से शरीर को छेदकर यातना दी जाती है।

22. वज्रकण्टकशल्मलि

  • पाप: अपनी शक्ति का दुरुपयोग कर दूसरों का हक छीनने वाले।
  • यातना: इन्हें कांटेदार वृक्षों पर लटकाकर पीड़ा दी जाती है।

23. वैतालिनी

  • पाप: गाय, बैल, और पशुओं को पीड़ा देने वाले।
  • यातना: इन्हें विषैले पदार्थों के बीच यातनाएँ दी जाती हैं।

24. पुष्करमुख

  • पाप: धोखा देकर संपत्ति अर्जित करने वाले।
  • यातना: इन्हें गरम पानी में उबाला जाता है।

25. श्मशान

  • पाप: भूत-प्रेतों का आह्वान करने वाले।
  • यातना: इन्हें भूत-प्रेतों द्वारा सताया जाता है।

26. प्राणरोध

  • पाप: निर्दोष प्राणियों को मारने वाले।
  • यातना: इनके प्राणों को धीरे-धीरे कष्ट देकर निकाला जाता है।

27. विशसन

  • पाप: झूठे वादे करने वाले।
  • यातना: इन्हें तेज धार वाले यंत्रों से चीरकर दंडित किया जाता है।

28. लोहदंड

  • पाप: गुरु, साधु, या धर्मगुरु का अनादर करने वाले।
  • यातना: इन्हें लोहे की छड़ों से पीटा जाता है।

कथा का उद्देश्य और शिक्षा

1. पाप कर्मों से बचाव: भागवत पुराण में इन नरकों का वर्णन लोगों को अपने कर्मों के प्रति सचेत करने के लिए किया गया है।

2. धर्म का पालन: यह कथा हमें धर्म और सत्य के मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती है।

3. पुनर्जन्म और कर्म का सिद्धांत: यह सिखाया गया है कि पाप कर्मों के लिए नरक में यातना भोगनी पड़ती है और अगले जन्मों में उसका प्रभाव रहता है।

4. पश्चाताप और शुद्धि: पापों का प्रायश्चित और ईश्वर की भक्ति से इन नरक यातनाओं से मुक्ति पाई जा सकती है।

निष्कर्ष

भागवत पुराण में वर्णित 28 नरक हमें सिखाते हैं कि पापों के दुष्परिणाम कितने भयानक हो सकते हैं। यह हमें धर्म और सत्कर्म के मार्ग पर चलने के लिए प्रेरित करते हैं और चेतावनी देते हैं कि अधर्म का मार्ग अंततः दुःख और पीड़ा का कारण बनता है।


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