उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 3 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण
उत्तररामचरितम्, तृतीय अंक, श्लोक 4 का अर्थ, व्याख्या और शाब्दिक विश्लेषण


संस्कृत पाठ:

तमसा:
उचितमेव दाक्षिण्यं स्नेहस्य। सञ्जीवनोपायस्तु मूलत एव रामभद्रस्य सन्निहितः।
मुरला:
कथमिव?
तमसा:
तत्सर्वं श्रूयताम्।
पुरा किल वाल्मीकितपोवनोपकण्ठात्परित्यज्य निवृत्ते सति लक्ष्मणे सीतादेवी प्राप्तप्रसववेदनमतिदुःखसंवेगादात्मानं गङ्गाप्रवाहे निक्षिप्तवती।
तदैव तत्र दारकद्वयं च प्रसूता। भगवतीभ्यां पृथ्वीभागीरथीभ्यामप्युभाभ्यामभ्युपपन्ना रसातलं च नीता।
स्तन्यत्यागात्परेण दारकद्वयं च तस्य प्राचेतसस्य महर्षेर्गङ्गादेव्या समर्पितं स्वयम्।
मुरला (सविस्मयम्):
ईदृशानां विषाकोऽपि जायते परमाद्भुतः।
यत्रोपकरणीभावमायात्येवंविधो जनः॥ ३॥


हिन्दी अनुवाद:

तमसा:
स्नेह में दाक्षिण्य (दयालुता) बिल्कुल उचित है।
जीवन को पुनः संचालित करने का उपाय तो रामभद्र के पास स्वाभाविक रूप से मौजूद है।
मुरला:
कैसे?
तमसा:
यह सब सुनो।
पुराने समय में, जब लक्ष्मण वाल्मीकि के तपोवन के पास से लौट आए थे,
तो सीता देवी ने प्रसव पीड़ा और अत्यधिक दुख व वेदना के कारण
अपने आप को गंगा के प्रवाह में समर्पित कर दिया।
उसी समय, उन्होंने वहां दो बालकों को जन्म दिया।
भगवती पृथ्वी और भागीरथी गंगा ने उन्हें अपने संरक्षण में लिया और रसातल में ले गईं।
इसके बाद, उन्होंने अपने बच्चों को स्तनपान से भी वंचित कर दिया और
दोनों बालकों को स्वयं प्राचेतस महर्षि (वाल्मीकि) और गंगा देवी को सौंप दिया।
मुरला (आश्चर्यचकित होकर):
ऐसे अद्भुत घटनाक्रम में भी एक विषाद प्रकट होता है।
जहां इस प्रकार का त्याग करने वाला मनुष्य एक साधन मात्र बन जाता है।


शब्द-विश्लेषण:

  1. दाक्षिण्यं - धातु: √दक्ष (कुशल होना), तद्धित प्रत्यय।
    • अर्थ: दयालुता, सहानुभूति।
  2. सञ्जीवनोपायः - समास: सञ्जीवन + उपाय।
    • अर्थ: जीवन को पुनः जीवित करने का उपाय।
  3. वाल्मीकितपोवनोपकण्ठात् -
    • वाल्मीकितपोवन - वाल्मीकि का तपोवन;
    • उपकण्ठात् - समीप से।
    • अर्थ: वाल्मीकि के तपोवन के पास से।
  4. प्राप्तप्रसववेदनम् -
    • प्राप्त - प्राप्त हुआ;
    • प्रसववेदनम् - प्रसव की पीड़ा।
    • अर्थ: प्रसव पीड़ा को प्राप्त करना।
  5. निक्षिप्तवती - धातु: √क्षिप् (फेंकना), स्त्रीलिंग, लङ् लकार।
    • अर्थ: डाल दिया।
  6. दारकद्वयं - समास: दारक (बालक) + द्वय (दो)।
    • अर्थ: दो पुत्र।
  7. स्तन्यत्यागात्परेण -
    • स्तन्य - दूध;
    • त्यागात् - त्याग के कारण;
    • परेण - आगे।
    • अर्थ: स्तनपान न कराने के कारण।
  8. उपकरणीभावम् -
    • उपकरणी - साधन;
    • भावम् - स्थिति।
    • अर्थ: साधन के रूप में उपयोग होना।

व्याख्या:
इस अंश में सीता की त्रासदी और उनके बलिदान की गाथा को संवेदनशीलता से प्रस्तुत किया गया है। यह उनके आत्मसमर्पण और त्याग के साथ-साथ उनकी मातृत्व की पीड़ा को दर्शाता है। मुरला का विस्मय इस घटना की गहराई और मानवीय संघर्ष को रेखांकित करता है।

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