संस्कृत श्लोक: "एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च बाध्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक: "एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च बाध्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद
संस्कृत श्लोक: "एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च बाध्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

संस्कृत श्लोक: "एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च बाध्यते" का अर्थ और हिन्दी अनुवाद

जय श्री राम। सुप्रभातम्।
आपके द्वारा प्रस्तुत श्लोक अत्यंत गूढ़, नीति-बोधक और राष्ट्रनीति की गंभीरता को प्रकट करने वाला है। आइए इसे विस्तार से समझते हैं:


श्लोक:

एकं विषरसो हन्ति शस्त्रेणैकश्च बाध्यते ।
सराष्ट्रं सप्रजं हन्ति राजानं मन्त्रविस्रवः ॥


हिन्दी अनुवाद:

  • विष (ज़हर) केवल एक ही व्यक्ति की मृत्यु कर सकता है।
  • शस्त्र (हथियार) भी एक ही व्यक्ति को हानि पहुँचाता है।
  • किंतु यदि राजा की गोपनीय मंत्रणा (राजनीतिक निर्णय या गोपनीय सलाह) सार्वजनिक हो जाए या असंतुलित हो, तो वह केवल राजा ही नहीं, अपितु सम्पूर्ण राष्ट्र और उसकी प्रजा का भी नाश कर सकती है।

शाब्दिक विश्लेषण:

  • एकं – एक को
  • विषरसः – विष का रस (ज़हर)
  • हन्ति – मारता है
  • शस्त्रेण – शस्त्र के द्वारा
  • एकः च बाध्यते – एक ही व्यक्ति क्षतिग्रस्त/मारा जाता है
  • सराष्ट्रं – राष्ट्र सहित
  • सप्रजं – प्रजा सहित
  • हन्ति – विनाश करता है
  • राजानं – राजा को
  • मन्त्रविस्रवः – मंत्रणा का बाहर निकलना/गोपनीय योजना का लीक होना या कुनीति

व्याकरणिक संरचना:

  • यह श्लोक त्रिपदीय रूप में विभाजित है – विष, शस्त्र और मन्त्र के प्रभाव की तुलना।
  • "हन्ति" क्रिया तीनों पदों में सामान्य क्रिया है – तीनों माध्यमों से होने वाले "हानिकारक परिणामों" को एकसूत्र में जोड़ती है।
  • "मन्त्रविस्रवः" संधि है – "मन्त्र + विस्रवः" (गोपनीय सलाह या मन्त्रणा का विसर्जन/प्रसार)

आधुनिक सन्दर्भ में अर्थ:

  • आज के युग में भी यह श्लोक अत्यंत प्रासंगिक है:
    • एक गलत फैसला, नीति का उल्लंघन, सूचना लीक, या दुर्बल नेतृत्व – संपूर्ण देश की सुरक्षा, अर्थव्यवस्था और नागरिकों के जीवन को संकट में डाल सकता है।
    • जैसे कोई मंत्री किसी गोपनीय रक्षा नीति को उजागर कर दे, या प्रधानमंत्री का निर्णय बिना सलाह के हो – इसका प्रभाव विष या हथियार से कहीं अधिक होता है।

बाल कथा (संक्षेप में): "राजा और गुप्त मंत्रणा"

राजा दृढ़सिंह एक बुद्धिमान राजा थे। उनकी सभा में एक मंत्री था – वाकचंचल (जो हर बात दूसरों से कह देता)।
एक दिन गुप्त रूप से राज्य की सीमा पर शत्रु की गतिविधि पर चर्चा हुई। मंत्रियों ने योजना बनाई कि रात को किले की दीवार मज़बूत की जाएगी।

किन्तु वाकचंचल ने ये बात नाई से कह दी, नाई ने बाजार में, और वहाँ से शत्रु को पता चल गया।
शत्रु ने रात में ही आक्रमण कर दिया। दीवार अधूरी बनी थी – पूरा राज्य हाहाकार में डूब गया।

राजा ने युद्ध में वीरता दिखाई, मगर प्रजा मारी गई, गाँव जल गए और राजधानी पर कब्जा हो गया।

तब महामंत्री बोले:
"राजन्! विष से एक मरता है, शस्त्र से एक घायल होता है – पर असावधानी से राष्ट्र मरता है।"



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