पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एवं मूल्यपरक शिक्षा का स्थान

Sooraj Krishna Shastri
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पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एवं मूल्यपरक शिक्षा का स्थान
 पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एवं मूल्यपरक शिक्षा का स्थान


पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा एवं मूल्यपरक शिक्षा का स्थान

भूमिका:

शिक्षा केवल ज्ञान, कौशल या रोजगार की तैयारी नहीं है, बल्कि व्यक्ति के समग्र विकास का माध्यम है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए पाठ्यक्रम में नैतिक शिक्षा (Moral Education) एवं मूल्यपरक शिक्षा (Value-Based Education) का समावेश अत्यंत आवश्यक है। ये शिक्षा प्रकार छात्रों में नैतिक discernment, सामाजिक जिम्मेदारी, और मानवीय मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता का विकास करते हैं।


नैतिक शिक्षा का अर्थ:

नैतिक शिक्षा का तात्पर्य है – छात्रों में सत्य, अहिंसा, ईमानदारी, सहानुभूति, कर्तव्यनिष्ठा आदि गुणों का विकास करना। यह उन्हें यह सिखाती है कि "क्या सही है और क्या गलत", और क्यों।


मूल्यपरक शिक्षा का अर्थ:

मूल्यपरक शिक्षा में व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय और आध्यात्मिक मूल्यों का समावेश होता है, जैसे –

  • व्यक्तिगत मूल्य: आत्म-संयम, आत्मानुशासन

  • सामाजिक मूल्य: सहिष्णुता, सहयोग, समानता

  • राष्ट्रीय मूल्य: देशभक्ति, संविधान के प्रति आदर

  • आध्यात्मिक मूल्य: समत्व, करुणा, सेवा


पाठ्यक्रम में इनका स्थान:

1. शिक्षा के उद्देश्य में समावेश:

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP 2020) एवं NCF (National Curriculum Framework) में नैतिक एवं मूल्य शिक्षा को शिक्षा के मूल उद्देश्य में शामिल किया गया है।

2. समेकित विषय सामग्री:

  • साहित्य, इतिहास, धर्म, दर्शन आदि विषयों में नैतिक प्रसंगों एवं चरित्रों के माध्यम से मूल्यों की शिक्षा दी जाती है।

  • प्राथमिक कक्षाओं में पंचतंत्र, रामायण, महाभारत आदि से नैतिक शिक्षाएं दी जाती हैं।

3. समावेशी पाठ्यक्रम क्रियाएँ:

  • समूह चर्चा, नाटक, कहानी लेखन, सेवा कार्य आदि के माध्यम से नैतिक निर्णय लेने की क्षमता विकसित की जाती है।

4. समयबद्ध नैतिक शिक्षा कार्यक्रम:

  • कुछ विद्यालयों में "नैतिक शिक्षा" एक अलग विषय के रूप में साप्ताहिक रूप से पढ़ाया जाता है।


नैतिक एवं मूल्य शिक्षा की आवश्यकता:

  1. चरित्र निर्माण – केवल ज्ञान से नहीं, चरित्र से समाज टिकता है।

  2. मानवता की भावना – प्रतिस्पर्धा से ऊपर उठकर सहयोग और करुणा का विकास।

  3. भ्रष्टाचार एवं हिंसा की रोकथाम – मूल्यों के अभाव में समाज में नैतिक पतन होता है।

  4. स्थायी विकास हेतु शिक्षा – पर्यावरणीय मूल्य, उत्तरदायित्व बोध इत्यादि आज की वैश्विक आवश्यकता है।

  5. समाज में शांति और सद्भावना – विभिन्न धर्मों, वर्गों, समुदायों में समन्वय हेतु।


वर्तमान चुनौतियाँ:

  • प्रतिस्पर्धी शिक्षा प्रणाली में मूल्य शिक्षा को गौण समझा जाता है।

  • शिक्षकों की नैतिक दृष्टि व प्रशिक्षण की कमी।

  • सामाजिक वातावरण (टीवी, इंटरनेट, सोशल मीडिया) का दुष्प्रभाव।


समाधान:

  • शिक्षकों का संवेदनशील प्रशिक्षण

  • मूल्य शिक्षा को आकलन प्रणाली से जोड़ना

  • समाज एवं परिवार की सहभागिता

  • प्रेरणास्पद व्यक्तित्वों का अध्ययन (जैसे महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद आदि)


निष्कर्ष:

नैतिक शिक्षा एवं मूल्यपरक शिक्षा को पाठ्यक्रम में केवल एक विषय नहीं, बल्कि एक दृष्टिकोण के रूप में अपनाना चाहिए। इससे छात्रों का मानसिक, सामाजिक एवं आध्यात्मिक विकास संतुलित होगा, और वे एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में समाज के निर्माण में सहायक बनेंगे।

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