संस्कृत श्लोक "यथा मधु समाधत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
यह श्लोक एक नीति-सूत्र है, जो शासन, राजव्यवस्था और कर-संग्रह (Tax Collection) के सिद्धांत को अत्यंत कोमल, परन्तु गूढ़ रूप में प्रस्तुत करता है।
🪔 १. श्लोक (संस्कृत + Transliteration)
यथा मधु समाधत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः ।तद्वदर्थान् मनुष्येभ्यः आदद्यादविहिंसया ॥
Yathā madhu samādhatte rakṣan puṣpāṇi ṣaṭpadaḥ ।Tadvad arthān manuṣyebhyaḥ ādadyād avihiṁsayā ॥
📘 २. हिन्दी अनुवाद
जिस प्रकार एक भौंरा (मधुमक्खी) फूलों को क्षति पहुँचाए बिना उनसे मधु (शहद) ग्रहण करता है,
उसी प्रकार राज्य को भी प्रजा को कष्ट दिये बिना उनसे धन (कर) लेना चाहिए।
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संस्कृत श्लोक "यथा मधु समाधत्ते रक्षन् पुष्पाणि षट्पदः" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🌐 ३. English Translation
Just as a honeybee collects nectar from flowers without harming or destroying them,
in the same way, wealth (taxes) should be collected from the people without causing them distress or harm.
🧠 ४. भावार्थ एवं नीति विश्लेषण
दृष्टांत | नीति-निष्कर्ष |
---|---|
भौंरा (षट्पदः) | वह फूलों से केवल मधु (nectar) लेता है, परंतु उन्हें नष्ट नहीं करता |
राजा या शासनकर्ता | प्रजा से कर वसूलता है, परंतु प्रजा की रक्षा और सम्मान के साथ |
- यह श्लोक महाभारत, भीष्मपर्व से लिया गया है, जहाँ विदुर नीति या भीष्म नीति जैसे सन्दर्भों में राजा को यह उपदेश दिया जाता है।
- राजा का कार्य शोषण नहीं, संरक्षण है। कर-संग्रह न्याय, करुणा और विवेक से होना चाहिए।
🏛️ ५. आधुनिक सन्दर्भ में प्रासंगिकता
सन्दर्भ | सटीक अर्थ |
---|---|
आर्थिक नीति | टैक्स वसूली ऐसी हो जो नागरिकों की आजीविका को बाधित न करे |
प्रशासनिक आचरण | सरकार को चाहिए कि वह प्रजा की सम्पन्नता बनाए रखते हुए संसाधनों का अर्जन करे |
CSR/कराधान नीति | कंपनियाँ समाज को हानि पहुँचाए बिना लाभ अर्जित करें – यह सस्टेनेबल डेवेलपमेंट का मूल है |
🎭 ६. संवादात्मक नीति-कथा
👦 राजकुमार: "गुरुदेव! प्रजा से कर वसूलते समय यदि वे असहयोग करें, तो बल का प्रयोग उचित होगा?"
👴 गुरु: "नहीं पुत्र! बल से भय उपजता है, प्रेम और करुणा से सहयोग।
जैसे भौंरा फूल को नष्ट किए बिना मधु लेता है, वैसा ही राज्य संचालन होना चाहिए।"
👦 राजकुमार: "किन्तु यदि कर न दिया जाए तो राज्य कैसे चले?"
👴 गुरु: "प्रजा के सुख और सुरक्षा से ही राज्य का आधार है।
कर लेना धर्म है, पर अविहिंसया – बिना हिंसा, बिना अत्याचार के।
स्मरण रखो –
‘तद्वदर्थान् मनुष्येभ्यः आदद्यादविहिंसया’
प्रजा का पोषण ही राजा का यश है।"
📝 ७. शैक्षिक उपयोग हेतु अभ्यास
🔹 प्रश्नोत्तरी:
- 'षट्पदः' शब्द का अर्थ क्या है?
- इस श्लोक में कर-संग्रह की कौन-सी नीति वर्णित है?
- ‘अविहिंसया’ शब्द का आधुनिक सन्दर्भ में क्या अर्थ है?
🔹 निबंध विषय:
- “सतत कर-संग्रह की नीति – विदुर नीति और आज का भारत”
📚 व्याकरणात्मक विश्लेषण (पदक्रम अनुसार)
पद | मूलरूप | पदप्रकार / शब्दसिद्धि | विभक्ति / लिंग / वचन | अर्थ |
---|---|---|---|---|
यथा | यथा | सम्बन्धबोधक अव्यय | अव्यय | जैसे, जिस प्रकार |
मधु | मधु | नपुंसक-लिंग संज्ञा | द्वितीया एकवचन | मधु, शहद |
समाधत्ते | सम्-आ-दा + लट् (प्र. पु. ए. व.) | आत्मनेपदी धातु | वर्तमान काल, 3 पु. एकवचन | ग्रहण करता है |
रक्षन् | रक्ष् + शतृ | कृदन्त, विशेषण | पुल्लिंग, एकवचन | रक्षा करते हुए (कर्म करते हुए) |
पुष्पाणि | पुष्प | नपुंसक-लिंग संज्ञा | द्वितीया बहुवचन | फूल |
षट्पदः | षट्पद | पुल्लिंग संज्ञा | प्रथमा एकवचन | छह पाँव वाला (भौंरा) |
तद्वत् | तत् + वत् | अव्यय/उपमा | उपमानबोधक | उसी प्रकार |
अर्थान् | अर्थ | पुल्लिंग संज्ञा | द्वितीया बहुवचन | धन, उद्देश्य |
मनुष्येभ्यः | मनुष्य | पुल्लिंग संज्ञा | पञ्चमी बहुवचन | मनुष्यों से |
आदद्यात् | आ-दा + लोट् (आज्ञा विधि) | आत्मनेपदी धातु | विधिलिङ् लकार, 3 पु. एकवचन | (कोई) ग्रहण करे |
अविहिंसया | अ-वि-हिंसा + तृतीया | स्त्रीलिंग संज्ञा | तृतीया एकवचन | बिना हिंसा के, अहिंसा द्वारा |
🧩 विशेष व्याकरणिक बिंदु
🔷 1. समास:
- षट्पदः → षट् + पाद = "छह पैरों वाला" = मधुमक्खी/भौंरा → बहुव्रीहि समास।
- अविहिंसया → हिंसा + वि + अ (निषेध) → निषेधात्मक भाववाचक शब्द।
🔷 2. क्रियापद:
- समाधत्ते – √दा (देना) धातु, आत्मनेपदी, लट् लकार, वर्तमान काल, एकवचन।
- आदद्यात् – √दा धातु, आत्मनेपदी, विधिलिङ् लकार (Potential/Subjunctive), आशय या निर्देश के अर्थ में।
🔷 3. विशेषण पद:
- रक्षन् – "रक्षा करता हुआ", शतृ प्रत्यय से बना हुआ कृदन्त।
- तद्वत् – उपमा सूचक अव्यय, "उसी प्रकार" के अर्थ में।
📝 पदक्रम (अन्वय)
षट्पदः (भौंरा)
रक्षन् पुष्पाणि (फूलों की रक्षा करता हुआ)
मधु समाधत्ते (शहद लेता है)
यथा (जिस प्रकार)
तद्वत् (उसी प्रकार)
मनुष्येभ्यः (मनुष्यों से)
अर्थान् आदद्यात् (धन ले – ग्रहण करे)
अविहिंसया (बिना हिंसा के)
🪔 ८. निष्कर्ष
राज्य की सफलता केवल धन संग्रह में नहीं, बल्कि प्रजा की रक्षा, सम्मान और समृद्धि में है।जैसे मधुमक्खी फूल को बिना हानि पहुँचाए अपना कार्य करती है, वैसी ही नीतियां शासकों और प्रशासकों के लिए आदर्श हैं।