सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥
सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं।
रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥
बिनु छल बिस्वनाथ पद नेहू।
राम भगत कर लच्छन एहू॥
अर्थात्,
"शिव के चरण कमलों में जिनकी प्रीति नहीं है, वे राम को स्वप्न में भी अच्छे नहीं लगते। विश्वनाथ शिव के चरणों में निष्कपट (विशुद्ध) प्रेम होना यही रामभक्त का लक्षण है।"
आज हम बात करते हैं, हरि और हर के बारे में।
जहां तक हमारा मानना है कि हरि एवं हर दोनों एक ही है, जैसे उदाहरण के लिए पानी को लेते है, पानी,जल, नीर आदि पीने के, सिंचाई के आदि कई प्रकार का काम में आता है, लेकिन पानी को यदि गरम कर दिया जाय तो रहेगा तो पानी ही, लेकिन उसका काम अलग हो जायेगा, वहीं बर्फ़ बन जाए तो अलग काम, वैसे ही हमारा मानना है कि ईश्वर एक ही है रुप एवं कार्य अलग अलग है।
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सिव पद कमल जिन्हहि रति नाहीं। रामहि ते सपनेहुँ न सोहाहीं॥ |
यह एक संयुक्त रूप है जिसमें विष्णु (हरि) और शिव (हर) दोनों के गुण शामिल हैं। इसे शंकरनारायण या शिवकेशव भी कहा जाता है। हरिहर रूप की पूजा वैष्णव और शैव दोनों संप्रदायों द्वारा की जाती है, जो शिव और विष्णु दोनों को समान रूप से पूजनीय मानते हैं।
अब बात करते हैं कि कुछ पढ़ें लिखे विद्वान कहते हैं कि शंकर जी को रोली ( कुमकुम) नहीं लगाना चाहिए, तुलसी नहीं चढ़ाना चाहिए,
लेकिन यदि पूछा जाय कि प्रमाण क्या है, कोई शास्त्रोक्त जवाब नहीं मिलता।
एक बात पहले बता देना चाहता हूं कि हम किसी को चुनौती नहीं दे रहे हैं, और न ही किसी वेदपाठी ब्राह्मण पर टिप्पणी कर रहा हूं।
आज हम चर्चा कर रहे हैं प्रचलित अंधविश्वास पर,।
हां तो हम बात कर रहे हैं आदि शंकराचार्य स्वामी द्वारा रचित शिवलिंगाष्टकम् की जहां स्पष्ट लिखा है कि,
कुंकुम चंदन लेपित लिंगम्
पंकज हार सुशोभित लिंगम् ।
सञ्चित पाप विनाशन लिंगम्
तत् प्रणमामि सदाशिव लिंगम् ॥
देवों के देव, जिनका लिंगस्वरूप कुंकुम और चंदन से सुलेपित है और कमल के सुंदर हार से शोभायमान है, तथा जो संचित पाप कर्म का लेखा-जोखा मिटने में सक्षम है, ऐसे आदि-अनंत भगवान शिव के लिंगस्वरूप को मैं नमन करता हूं।
लोगों का ऐसा कहना है कि —
कुमकुम शिव जी को नहीं चढ़ाया जाता, लेकिन माता पार्वती जी को चढ़ाया जाता है, भैया मां को क्यों चढ़ाया जाता है तो कहते हैं कि सुहाग का प्रतीक है। मेरे समझ में यह नहीं आता कि शिव और शक्ति दोनों अलग कैसे हैं । दोनों एक ही तत्व है शिव और शक्ति को एक-दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता, वे एक ही वास्तविकता के दो पहलू हैं।
शिव और शक्ति, सनातन धर्म में, क्रमशः पुरुष और स्त्री ऊर्जा के प्रतीक हैं, जो एक-दूसरे के पूरक हैं। शिव को निष्क्रिय, शाश्वत और अपरिवर्तनीय माना जाता है, जबकि शक्ति को सक्रिय, गतिशील और परिवर्तनशील माना जाता है। दोनों मिलकर ब्रह्मांड की रचना, संरक्षण और विनाश की प्रक्रिया को संचालित करते हैं।
शिव और शक्ति का संयुक्त रूप अर्धनारीश्वर कहलाता है, जो पुरुष और स्त्री ऊर्जा के पूर्ण संतुलन का प्रतीक है।
वागर्थाविव संपृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।
जगतः पितरौ वन्दे पार्वतीपरमेश्वरौ ॥
वाणी और अर्थ के समान मिले हुए जगत के माता-पिता, शिव-पार्वती की वाणी और अर्थ की प्राप्ति के लिए मैं वन्दना करता हूँ।
कस्तूरिका कुंकुमं च रसो मृगदात्मक:।
पुष्पाणि सुरभिनयेव पवित्राणि शुभानि च।।
भगवान शिव की पूजा में उपयोग की जाने वाली सामग्रियों का वर्णन करता है। कस्तूरी, कुमकुम और सुगंधित फूल, सभी पवित्र माने जाते हैं और भगवान शिव को अर्पित किए जाते हैं।
अब बात करेंगे तुलसी की शिव जी को तुलसी कितनी प्रिय है -
भुक्तिमुक्तिफलं तस्य तुलस्या पूजयेद्यदि।
अर्कपुष्पैः प्रतापश्च कुब्जकहरकेस्तथा ।।
यदि शिव भक्ति तुलसी से शिव जी की पूजा करता है तो उसे सुख भोग तथा मुक्ति मिलती है,। आज सारी दुनिया सुख एवं मुक्ति ही चाहतीं हैं
जबकि अर्क पुष्प या मंदार पुष्प से पूजा करने पर यश की प्राप्ति होती है।