जब गणेशजी ने देखा भगवान शिव का मोहिनी रूप | Shiv Real Form Hidden Truth

Sooraj Krishna Shastri
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जब गणेशजी ने देखा भगवान शिव का मोहिनी रूप | Shiv Real Form Hidden Truth

यह अत्यंत मनोहारी और भावनात्मक कथा भगवान शिवजी के दिव्य सौंदर्य, उनके वैराग्य, एवं पुत्र गणेशजी की मातृभक्ति को दर्शाती है। इसे और भी भावपूर्ण, विस्तृत और व्यवस्थित रूप में नीचे प्रस्तुत किया गया है—


🔱 भगवान शिव का अनदेखा सौंदर्य और गणेशजी का भावपूर्ण आग्रह

एक बार की बात है। बाल रूप में गणेशजी ने अपने पिता भगवान शिवजी से विनम्रतापूर्वक एक प्रश्न किया—

"पिताश्री! आप सदा चिताभस्म से लिप्त रहते हैं, गले में मुण्डमाला धारण करते हैं, जटाएं बिखरी होती हैं। आपकी यह भयानक वेशभूषा मेरी बाल बुद्धि में कई बार प्रश्न उत्पन्न करती है। मेरी माता पार्वती तो अपूर्व सौंदर्य की मूर्ति हैं, सदैव श्रृंगार से युक्त रहती हैं। उनके समक्ष आप यह भस्म-धारी रूप में उपस्थित होते हैं, यह मुझे उचित नहीं प्रतीत होता। यदि आपकी कृपा हो, तो क्या आप एक बार स्नान करके, बिना भस्म और मुण्डमाला के, सुसज्जित रूप में माता के सामने पधारेंगे? मैं आपकी दिव्य छवि को देखना चाहता हूँ।"

जब गणेशजी ने देखा भगवान शिव का मोहिनी रूप | Shiv Real Form Hidden Truth
जब गणेशजी ने देखा भगवान शिव का मोहिनी रूप | Shiv Real Form Hidden Truth


भगवान शिव मंद-मंद मुस्कुराए। उन्होंने अपने पुत्र की बात को सहज प्रेम से स्वीकार कर लिया।

कुछ समय पश्चात्, जब भगवान शिव स्नान करके वापस लौटे, तो उनका रूप ऐसा था जिसे देखकर सम्पूर्ण ब्रह्मांड स्तब्ध रह गया।

  • शरीर पर चिताभस्म नहीं था,
  • जटाएं सुव्यवस्थित थीं,
  • मुण्डमाला हट चुकी थी,
  • मुखमंडल पर सौम्यता की ऐसी दिव्य आभा थी कि उस सौंदर्य को देखकर मोहिनी अवतार भी लज्जित हो जाए।

उनके इस अनुपम सौंदर्य को देखकर ब्रह्मा, विष्णु, इन्द्र, यक्ष, गंधर्व, सिद्ध, चारण, सभी देवगण निरंतर निहारते रहे।
यह रूप किसी ने पहले कभी नहीं देखा था, स्वयं शिवजी ने भी नहीं।

गणेशजी स्तब्ध रह गए। उनका मुख भावविभोर था। उन्हें अपने पिता का यह मनमोहक स्वरूप देखकर गर्व तो हुआ, परंतु एक भाव उनके अंतर्मन में चुभ गया। उन्होंने सिर झुकाकर करुण स्वर में कहा—

“पिताश्री, कृपया मुझे क्षमा करें। मैंने ही आपसे यह निवेदन किया था, परंतु अब मैं आपसे विनती करता हूँ कि आप अपने पूर्व भस्म-धारी स्वरूप में लौट जाएँ।"

भगवान शिव ने आश्चर्य से पूछा—

"पुत्र, यह कैसी बात है? अभी तो तुमने ही इस रूप को देखने की इच्छा की थी, अब वापस पुराने रूप की मांग क्यों?"

गणेशजी ने विनम्रता से उत्तर दिया—

"पिताश्री! अब मैं समझ गया कि आप कितने अप्रतिम, अलौकिक और सुंदर हैं। परंतु मैं नहीं चाहता कि संसार में कोई मेरी माता गौरी से सुंदर दिखे। आपके इस अद्भुत रूप को देखकर यदि माता पार्वती भी एक क्षण के लिए हीन अनुभव करें, तो मेरा हृदय व्यथित हो उठेगा। इसलिए आप कृपया अपने उस स्वरूप में लौट आइए जिसे केवल एक योगी ही पहचान सकता है।"

यह सुनकर भगवान शिव मुस्कुरा दिए। उन्होंने तुरंत ही अपनी चिताभस्म धारण कर ली, जटाएं बिखेर लीं, मुण्डमाला पुनः धारण कर ली और अपने सहज, वैराग्यपूर्ण स्वरूप में आ गए।


🔮 शिव का सौंदर्य: एक रहस्य

विभिन्न संत-महात्माओं के अनुसार, भगवान शिव का "कर्पूरगौर" स्वरूप इतना सुंदर, मधुर और सम्मोहक है कि उसकी तुलना में कामदेव भी तुच्छ प्रतीत हों।

कहा जाता है कि शिवजी का वास्तविक स्वरूप श्रीराम से भी सुंदर है, परंतु वे कभी उसे प्रकट नहीं करते।
ऐसा क्यों?
क्योंकि यदि उनका स्वरूप प्रकट हो जाए, तो श्रीरामजी की सौंदर्य-माधुरी की महिमा कहीं फीकी न पड़ जाए।
और शिवजी तो रामनाम में लीन रहने वाले भक्तों में भक्त हैं। वे कैसे चाहेंगे कि उनके कारण उनके आराध्य का यश घटे?


🕉️ इस कथा की शिक्षा

  • वैराग्य और सौंदर्य साथ-साथ हो सकते हैं, परंतु आत्मविभोर योगी स्वयं को प्रकट नहीं करते।
  • शिवजी की महानता उनके आत्म-त्याग में है, न कि बाह्य शोभा में।
  • गणेशजी का भाव, मातृ-भक्ति और सौंदर्य की मर्यादा का ऐसा भाव है जो यह दर्शाता है कि प्रेम में 'त्याग' सर्वोच्च है।

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