Think Before You Post: Social Media के लिए Socrates का Test और Indian Thought का Wisdom

Sooraj Krishna Shastri
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Think Before You Post: Social Media के लिए Socrates का Test और Indian Thought का Wisdom

यहाँ आपके मूल लेख "सोशल मीडिया के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश" को और अधिक व्यवस्थित, विस्तृत एवं तथ्यात्मक शैली में पुनः प्रस्तुत किया गया है, जिससे यह नैतिक शिक्षण, दार्शनिक दृष्टिकोण, और आधुनिक सन्दर्भ – तीनों में संतुलित हो:


सोशल मीडिया के सम्बन्ध में दिशा-निर्देश : एक नैतिक, दार्शनिक और व्यवहारिक दृष्टिकोण


🔹 प्रस्तावना

आज के डिजिटल युग में सोशल मीडिया (जैसे – व्हाट्सएप, फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर आदि) हमारे जीवन का अभिन्न अंग बन चुका है। यह जहाँ संवाद और सूचना का सशक्त माध्यम है, वहीं यह असत्य, अमर्यादित और अपुष्ट सूचनाओं का प्रसार भी कर रहा है। ऐसी स्थिति में यह अत्यंत आवश्यक हो जाता है कि हम अपने शब्दों के चयन, विचारों की प्रस्तुति, और सूचनाओं के प्रसार के लिए दर्शनों और प्राचीन मनीषियों द्वारा सुझाए गए नैतिक मानदण्डों का पालन करें।

Think Before You Post: Social Media के लिए Socrates का Test और Indian Thought का Wisdom
Think Before You Post: Social Media के लिए Socrates का Test और Indian Thought का Wisdom



🔹 सुकरात का ‘Triple Filter Test’ : संवाद की मर्यादा

चौथी शताब्दी ई.पू. में महान ग्रीक दार्शनिक सुकरात (Socrates) ने संवाद और संप्रेषण के लिए एक अत्यंत उपयोगी कसौटी प्रस्तुत की, जिसे हम "Triple Filter Test" कहते हैं।

एक बार जब एक शिष्य उनके पास किसी मित्र के बारे में "सूचना" लेकर आया, तब उन्होंने उससे तीन सरल किन्तु अत्यंत गहन प्रश्न पूछे:

  1. क्या यह सत्य है? (Is it True?)
  2. क्या यह शुभ है? (Is it Good?)
  3. क्या यह उपयोगी है? (Is it Useful?)

जिस सूचना में ये तीनों कसौटियाँ असफल रहीं, उस पर सुकरात ने स्पष्ट रूप से कहा –

“तो फिर ऐसी बात मुझे मत बताओ।”

👉 सीख: हमें वही बोलना और लिखना चाहिए जो सत्य, शुभ और समाजोपयोगी हो।


🔹 कन्फ्यूशियस और 'Di-Zi-Gui' : विवेकपूर्ण वाणी का आदर्श

चीनी दर्शन में भी वाणी और अभिव्यक्ति की शुद्धता और सत्यता पर विशेष बल दिया गया है।
कन्फ्यूशियस की शिक्षाओं पर आधारित ग्रंथ "Di-Zi-Gui" में लिखा गया है:

“जो बातें तथ्य पर आधारित हों, वही बोलनी और लिखनी चाहिए। असत्य और व्यर्थ वाणी व्यक्ति की गरिमा को गिरा देती है।”

👉 सीख: तथ्यपरक और सुसंगत अभिव्यक्ति ही सद्गुण का प्रतीक है।


🔹 जैन दर्शन : अनेकान्तवाद और स्यादवाद की दृष्टि

जैन मत में किसी भी बात को कहने और सुनने से पहले उसके विविध पक्षों (Anekant) और सापेक्ष सत्यता (Syadvad) पर विचार आवश्यक माना गया है।

“किसी भी विषय का एक पक्ष जानकर निर्णय करना मूर्खता है। जब तक हम समस्त सम्भावनाओं को न जानें, तब तक किसी विषय पर अंतिम मत नहीं देना चाहिए।”

👉 सीख: सोशल मीडिया पर कोई भी मत या सूचना देने से पहले उसके सभी पहलुओं पर विचार करें।


🔹 उपनिषदों और बौद्ध ग्रंथों की चेतावनी

  1. बृहदारण्यक उपनिषद में याज्ञवल्क्य द्वारा गार्गी को यह कहकर रोका गया था:

    “तथ्यहीन, निरर्थक और व्यर्थ संवाद से न केवल ज्ञान बाधित होता है, बल्कि यह गंभीर विषयों का अपमान है।”

  2. बौद्ध ग्रंथ मिलिंदपंह्हो में भिक्षु नागसेन ने राजा मिनाण्डर से कहा:

    “हे राजन्! असत्य, अनिष्टकारी व अशुभ वाणी न केवल वक्ता को, बल्कि पूरे समाज को पतन की ओर ले जाती है।”

👉 सीख: बात वही करें जो समाज में शांति, समझदारी और विकास को प्रोत्साहित करे।


🔹 आधुनिक परिप्रेक्ष्य : सोशल मीडिया का उपयोग विवेक से करें

वर्तमान में सोशल मीडिया का क्षेत्र अत्यधिक प्रभावशाली है, किंतु साथ ही यह भ्रामक सूचनाओं, अपशब्दों, और उत्सर्जनात्मक प्रवृत्तियों का भी अड्डा बनता जा रहा है।

यदि हम सुकरात, कन्फ्यूशियस, उपनिषद, बौद्ध और जैन दर्शनों के मूल्यों को अपनाएं, तो हम—

फेक न्यूज रोक सकते हैं,
विवादों को टाल सकते हैं,
✅ और एक सुसंस्कृत, सहिष्णु एवं सूचनात्मक वातावरण बना सकते हैं।


🔹 निष्कर्ष

"सोशल मीडिया एक शक्ति है। यह एक शस्त्र भी बन सकता है और शास्त्र भी — यह हमारे प्रयोग पर निर्भर है।"

हमें चाहिए कि हम अपने हर पोस्ट, कमेंट और मैसेज को Triple Filter Test, तथ्यपरक दृष्टिकोण, और अनेकान्त सोच की कसौटी पर कसें। यही हमारी संस्कृति की गरिमा है और यही हमारे नैतिक विवेक की पहचान।


🔸 सूझबूझ से सोशल मीडिया चलाएं, संस्कृति और समाज को बचाएं।


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