कथा: वृन्दावन के संत और उनका अद्वितीय वात्सल्य-भाव
वृन्दावन में एक महान संत निवास करते थे। उनका सम्पूर्ण जीवन श्रीकृष्ण की आराधना और प्रेम-भावना में लीन था। उन्होंने संसार के मोह, दुख और चिंताओं को भुलाने की एक अद्भुत युक्ति खोज ली थी — अपने मन में श्रीकृष्ण के साथ ऐसा सजीव सम्बन्ध जोड़ना कि उन्हें हर क्षण लगे, “मैं नन्द हूँ, और बालकृष्ण मेरे अपने छोटे-से लाल हैं।”
वे दिन-रात लाला को लाड़ लड़ाते, जैसे कोई पिता अपने छोटे बालक को दुलारता है।
- यमुना-स्नान के समय लाला को साथ ले जाते।
- भोजन करते समय भी लाला को पास बैठाकर खिलाते।
- कभी-कभी गोद में बैठे कन्हैया की दाढ़ी खींचने की चंचलता का अनुभव करते।
उनका हृदय वात्सल्य-भाव से इतना परिपूर्ण था कि श्रीकृष्ण उनके
![]() |
कथा: वृन्दावन के संत और उनका अद्वितीय वात्सल्य-भाव |
लिए केवल भगवान नहीं, बल्कि अपने प्यारे पुत्र बन चुके थे।
मानसिक सेवा की साधना
महात्मा प्रतिदिन मानसिक रूप से श्रीकृष्ण की सेवा करते।
- कभी मन ही मन अनुभव करते कि कन्हैया उनसे केला मांग रहे हैं — “बाबा! मुझे केला दो।”
- वे मन से ही लाला को केला, मिठाई, वस्त्र, पुष्प, जो कुछ भी उनके पास था, अर्पित कर देते।
कन्हैया इतने भोले थे कि मन से दी हुई वस्तु भी प्रेम से स्वीकार कर लेते। इस प्रकार महात्मा का मन सदा लीलामय ब्रह्म के ध्यान में तल्लीन रहता।
काशी जाने की इच्छा और कन्हैया की मनाही
कभी-कभी वे शिष्यों से कहते — “मेरे जीवन में कभी गंगा-स्नान नहीं हुआ। मृत्यु से पहले एक बार काशी जाकर गंगा-स्नान करना चाहता हूँ।”
वृद्धावस्था में भी अटल बाल-भाव
अद्भुत अंतःप्रकाश — बालक का आगमन
महात्मा के निधन के बाद शिष्य कीर्तन करते हुए उनका शरीर श्मशान ले गये। अग्नि-संस्कार की तैयारी चल रही थी। तभी सबने देखा — एक सात वर्ष का अद्भुत सुंदर बालक, कंधे पर गंगाजल का घड़ा लिये, वहां आया।
अंतिम सेवा और चमत्कार
बालक ने महात्मा के शरीर को गंगाजल से स्नान कराया, उनके माथे पर तिलक लगाया, पुष्प-माला पहनाई और अंतिम प्रणाम कर अग्नि-संस्कार किया।
सैकड़ों साधु-संत और लोग वहां उपस्थित थे, पर उस बालक के दिव्य तेज और अधिकार के आगे किसी की बोलने की हिम्मत नहीं हुई। अग्नि-संस्कार के बाद बालक वहीं सबकी आंखों के सामने अंतर्ध्यान हो गया।
सत्य का उद्घाटन
भावार्थ और शिक्षा
महात्मा का जीवन यह सिद्ध करता है कि —
परमात्मा के साथ जीव जैसा सम्बन्ध जोड़ता है, परमात्मा वैसा ही सम्बन्ध निभाते हैं।
यदि कोई उन्हें पुत्र मानकर प्रेम करे, तो वे पुत्र बनकर आते हैं। यदि कोई उन्हें मित्र माने, तो वे मित्र की भांति आचरण करते हैं। और यदि कोई उन्हें स्वामी माने, तो वे स्वामी बनकर रक्षा करते हैं।
।।हरे कृष्णा।।