भीष्म पितामह Shara Shayya पर 58 दिन क्यों लेटे रहे? | Mahabharat Story in Hindi
🌳 शरशय्या पर कितने दिन लेटे रहने के बाद भीष्म पितामह ने प्राण त्यागे? 🌳
महर्षि वेदव्यास कृत महाभारत ग्रंथ में भीष्म पितामह का स्थान अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे एकमात्र ऐसे पात्र हैं जो महाभारत के आरंभ से लेकर अंत तक उपस्थित रहे। उनकी गिनती न केवल महान योद्धाओं में होती है, बल्कि धर्म, नीति और त्याग के प्रतीक रूप में भी उनका स्मरण किया जाता है।
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भीष्म पितामह Shara Shayya पर 58 दिन क्यों लेटे रहे? | Mahabharat Story in Hindi |
⚔️ महाभारत युद्ध और भीष्म पितामह
- महाभारत का युद्ध 18 दिनों तक चला।
- पहले 10 दिनों तक कुरुक्षेत्र की सेना का नेतृत्व भीष्म पितामह ने किया।
- उनके युद्ध कौशल से पांडव अत्यंत व्याकुल हो गए थे।
- अंततः स्वयं भीष्म ने अर्जुन को यह संकेत दिया कि किस प्रकार उनकी मृत्यु संभव है।
अर्जुन ने पितामह को बाणों से इस प्रकार घायल किया कि वे शरशय्या (बाणों की शैया) पर लेट गए। पूरा शरीर बाणों से छलनी था, किंतु वे तुरंत प्राण नहीं त्यागते।
🪔 इच्छामृत्यु का वरदान और सूर्य उत्तरायण की प्रतीक्षा
- उस समय सूर्य दक्षिणायन था।
- शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायन में मृत्यु को प्राप्त आत्मा को मोक्ष नहीं मिलता, जबकि उत्तरायण में मृत्यु होने पर आत्मा को सद्गति प्राप्त होती है।
- इसलिए भीष्म ने 58 दिनों तक शरशय्या पर लेटे रहकर सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतीक्षा की।
📖 बाणशय्या से दिया अमूल्य उपदेश
युद्ध समाप्त होने के बाद भी भीष्म पितामह ने प्राण त्यागने से पूर्व युधिष्ठिर को धर्मोपदेश दिए।
- उन्होंने राजधर्म, आपद्धर्म, मोक्षधर्म और राजनीति संबंधी गहन सिद्धांत समझाए।
- श्रीकृष्ण के कहने पर दिए गए ये उपदेश ही आगे चलकर “शांतिपर्व” और “अनुशासन पर्व” में संकलित हुए।
- इन उपदेशों से युधिष्ठिर का शोक और ग्लानि दूर हुई तथा उन्हें सही मार्गदर्शन प्राप्त हुआ।
🌞 सूर्य उत्तरायण और भीष्म का महाप्रयाण
- जब सूर्य उत्तरायण हुआ और माघ शुक्ल पक्ष का पवित्र समय आया, तब भीष्म ने सभी बंधु-बांधवों, पुरोहितों और पांडवों को बुलवाया।
- उन्होंने कहा – “मुझे इस शरशय्या पर लेटे हुए 58 दिन हो चुके हैं, अब समय आ गया है कि मैं अपने शरीर का त्याग करूं।”
- सबको आशीर्वाद देकर और विदा मांगकर उन्होंने योगबल से प्राण त्याग दिए।
- युधिष्ठिर व पांडवों ने पितामह का अंतिम संस्कार चंदन की चिता पर किया।
🕉️ भीष्म का दिव्य स्वरूप
- भीष्म सामान्य मनुष्य नहीं थे, बल्कि आठ वसुओं में से एक देव वसु के अवतार थे।
- उन्होंने आजीवन ब्रह्मचर्य और तपस्या का पालन किया।
- योगबल और इच्छामृत्यु के वरदान के कारण वे मृत्यु को अपने नियंत्रण में रखने वाले अद्वितीय महापुरुष बने।
📅 उस समय की आयु और दीर्घजीवन
- युद्ध के समय अर्जुन लगभग 55 वर्ष, कृष्ण लगभग 83 वर्ष और भीष्म लगभग 128 से 150 वर्ष के थे।
- उस काल में 150–200 वर्ष तक जीना सामान्य बात थी।
- इसका कारण था – शुद्ध वातावरण, सात्विक भोजन, योग और ध्यान की परंपरा।
✨ निष्कर्ष
❓ भीष्म पितामह से जुड़े महत्वपूर्ण FAQs
1. भीष्म पितामह कितने दिन शरशय्या पर लेटे रहे?
👉 भीष्म पितामह 58 दिन तक बाणों की शय्या पर लेटे रहे और सूर्य के उत्तरायण होने पर ही प्राण त्यागे।
2. भीष्म पितामह ने तुरंत प्राण क्यों नहीं त्यागे?
👉 उन्हें इच्छामृत्यु का वरदान प्राप्त था। वे जानते थे कि उत्तरायण में मृत्यु होने से आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है, इसलिए उन्होंने सूर्य उत्तरायण की प्रतीक्षा की।
3. भीष्म पितामह ने शरशय्या पर रहते हुए क्या किया?
👉 उन्होंने युधिष्ठिर को राजधर्म, मोक्षधर्म और राजनीति के गहन उपदेश दिए। ये उपदेश महाभारत के शांतिपर्व और अनुशासन पर्व में वर्णित हैं।
4. महाभारत युद्ध में भीष्म पितामह की उम्र कितनी थी?
👉 युद्ध के समय भीष्म की आयु लगभग 128 से 150 वर्ष बताई जाती है।
5. भीष्म पितामह को इच्छामृत्यु का वरदान किसने दिया था?
👉 उनके पिता राजा शांतनु ने उन्हें यह वरदान दिया था।
6. भीष्म पितामह कौन थे – मानव या देवता?
👉 वे सामान्य मनुष्य नहीं थे, बल्कि देवताओं के वसु रूप में पृथ्वी पर जन्मे थे।
7. भीष्म पितामह की मृत्यु किस माह और तिथि को हुई?
👉 माघ महीने के शुक्ल पक्ष में, सूर्य के उत्तरायण होने पर उन्होंने प्राण त्यागे।