मां-बाप का सम्मान ही असली धर्म | Heart Touching True Story on Parents Respect

Sooraj Krishna Shastri
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मां-बाप का सम्मान ही असली धर्म | Heart Touching True Story on Parents Respect

"माता-पिता का सम्मान ही सबसे बड़ा धर्म है। पढ़िए एक हृदय को छू लेने वाली सच्ची घटना, जिसमें बेटे ने अपनी मां के संघर्ष और बलिदान को समझकर उनका मान बढ़ाया। जानिए क्यों बुज़ुर्गों का सम्मान और सेवा जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य है।"


💠 हृदय को स्पर्श करने वाली सच्ची घटना

प्रारम्भिक प्रसंग

सुबह का समय था।
भावेश गुस्से में पत्नी स्मिता से बोला –
“लॉकर की चाबी कहां है?”

स्मिता ने आश्चर्य से पूछा –
“आज अचानक चाबी की क्या ज़रूरत पड़ गई?”

भावेश का स्वर सख्त था –
“ये तुम्हारा विषय नहीं, चाबी दो…”

बहस बढ़ी। असली कारण था – स्मिता ने भावेश की मां के पुराने पीतल के बर्तन कबाड़ी को बेच दिए थे, जबकि भावेश ने साफ मना किया था।

उसने दुखी होकर कहा –
“अगर तुम्हें मेरी मां की थाली पसंद नहीं थी, तो उनके गहनों पर भी तुम्हारा हक़ नहीं है। मैं वो सब दान कर दूंगा।”


बेटे की जिज्ञासा और गांव की यात्रा

बेटा श्याम आया और कारण पूछा।
भावेश ने कहा –
“तेरी दादी की अंतिम निशानी तेरी मां ने बेच दी…”

फिर बोला –
“अगर इतिहास जानना है, तो चलो आज गांव चलते हैं।”

तीनों गांव पहुंचे। मंदिर में पंडित पंड्या दादा ने भावेश को “भीखा” कहकर पुकारा। पत्नी और बेटे को आश्चर्य हुआ।

मां-बाप का सम्मान ही असली धर्म | Heart Touching True Story on Parents Respect
मां-बाप का सम्मान ही असली धर्म | Heart Touching True Story on Parents Respect

मां का संघर्ष

पंडितजी ने भावेश की मां शांता बा का संघर्ष सुनाया –

  • पहले तीन बच्चे जन्म के तुरंत बाद मर गए।
  • चौथे बच्चे (भावेश) के लिए मन्नत ली – “अगर बेटा जीवित रहा, तो जीवनभर चप्पल नहीं पहनूंगी और एक साल पांच घरों से भीख मांगूंगी।”
  • तपती गर्मी, कड़कड़ाती सर्दी, बरसात — नंगे पांव भीख मांगना आसान नहीं था।
  • बेटे को बड़ा आदमी बनाने के लिए हर कष्ट सहा।
  • पति के देहांत के बाद भी अकेले ही बेटे का पालन-पोषण किया।

यह सुनकर भावेश फूट-फूटकर रो पड़ा। बेटा श्याम और पत्नी स्मिता भी भावुक हो गए।


मां के प्रति सच्चा सम्मान

भावेश ने संकल्प लिया –

  • मंदिर और पंडितजी को चेक दिए।
  • मां जिन पांच घरों से भीख मांगती थीं, वहां गया और हर वृद्ध के चरण छूकर एक-एक लाख का दान दिया।
  • पंडितजी ने कहा –
    “आज तूने अपनी मां को सच्चे अर्थों में मुक्त कर दिया है। तू जैसा बेटा सबको मिले।”

स्मिता का प्रायश्चित

वापसी में स्मिता ने मां की वही पीतल की थाली-कटोरी वापस खरीद ली और बोली –
“ये मेरा प्रायश्चित है। अब से मैं रोज इन्हीं बर्तनों में खाना खाऊंगी।”

भावेश ने कहा –
“माफी की ज़रूरत नहीं… जरूरी है कि रिश्तों में आदर और समझ बनी रहे। प्रेम का बंधन इतना मजबूत होना चाहिए कि कोई तोड़ने आए तो खुद ही टूट जाए।”


💠 संदेश : बुज़ुर्गों का सम्मान क्यों आवश्यक है

भारत में लगभग 10.38 करोड़ बुज़ुर्ग हैं।
फिर भी स्थिति चिंताजनक है –

🔹 80% बुज़ुर्गों को अलग बैठाकर खाना दिया जाता है।
🔹 20% को घरवाली के डर से अलग रखा जाता है।
🔹 90% बेटे बच्चों को दुलारते हैं, पर मां-बाप से हाल-चाल तक नहीं पूछते।
🔹 70% बुज़ुर्ग बोलें तो उन्हें चुप करा दिया जाता है।
🔹 90% बुज़ुर्ग पैसे के लिए मजबूरी में मांगते हैं।


बुज़ुर्गों का जीवन

  • 60 साल साथ बिताने के बाद, एक साथी के जाने पर दूसरा अकेला हो जाता है।
  • शरीर साथ नहीं देता, सुनाई कम देता है।
  • नई तकनीक, नई संस्कृति से तालमेल नहीं बैठता।
  • अकेलापन और असुरक्षा उन्हें अंदर से तोड़ देती है।

💠 युवा पीढ़ी के लिए सीख

👉 याद रखिए –
जिन्होंने चलना, बोलना, खाना सिखाया…
जिन्होंने आपको ऊंचाई तक पहुंचाने के लिए सब कुछ त्याग दिया…
उनके लिए आज आप क्यों क्रूर बन जाएं?

👉 माता-पिता की सेवा सबसे बड़ा पुण्य है।
👉 यदि सेवा न कर सको, तो कम से कम सम्मान और प्रेम के दो शब्द ज़रूर दें।

“कैसे हो मां? कैसे हो पिताजी?”
बस इतना पूछना भी उन्हें परमानंद दे सकता है।


🌹 अंतिम विचार

✅ माता-पिता को छोड़कर कोई सुखी नहीं हुआ — न कभी होगा।
✅ जो करोगे, वही भरोगे।
✅ बुज़ुर्गों का सम्मान करना ही असली संस्कृति और संस्कार है।

🙏 अगर इस घटना ने आपकी आंखें नम की हों, तो इसे जरूर साझा करें।



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