Wicked Person Sweet Talk: संस्कृत श्लोक "दुर्जनः प्रियवादी च नैतद् विश्वासकारणम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
“दुर्जनः प्रियवादी च नैतद् विश्वासकारणम्…” यह नीति श्लोक हमें सिखाता है कि किसी दुष्ट व्यक्ति की मीठी वाणी पर कभी विश्वास नहीं करना चाहिए। उसकी जिह्वा पर भले ही मधु (sweet words) हो, लेकिन उसके हृदय में विष (poison) छिपा होता है। इस श्लोक का हिन्दी अर्थ, अंग्रेजी ट्रान्सलिटरेशन, शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, आधुनिक संदर्भ और नीति कथा सहित विस्तृत विवेचन यहाँ प्रस्तुत है। यह श्लोक आज के समय में भी प्रासंगिक है – खासकर जब लोग मीठी बातों में फंसकर धोखा खा जाते हैं। इस लेख में जानिए क्यों मीठे बोलने वाले हर व्यक्ति पर भरोसा नहीं करना चाहिए और कैसे विवेक से सही–गलत का निर्णय करें।
📜 मूल श्लोक (Devanagari)
दुर्जनः प्रियवादी च नैतद् विश्वासकारणम्।
मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे हृदि हालाहलं विषम्॥
🔤 अंग्रेज़ी ट्रान्सलिटरेशन (IAST)
durjanaḥ priyavādī ca naitad viśvāsakāraṇam।
madhu tiṣṭhati jihvāgre hṛdi hālāhalaṃ viṣam॥
🇮🇳 हिन्दी अनुवाद
"यदि कोई दुर्जन मधुर बोलने वाला और प्रिय वचन कहने वाला हो, तो भी यह उसके विश्वसनीय होने का कारण नहीं है। क्योंकि उसकी जिह्वा के अग्रभाग में तो मधु (मीठे शब्द) रहते हैं, पर उसके हृदय में घोर हलाहल विष भरा होता है।"
![]() |
Wicked Person Sweet Talk: संस्कृत श्लोक "दुर्जनः प्रियवादी च नैतद् विश्वासकारणम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🪔 शब्दार्थ
- दुर्जनः — दुष्ट व्यक्ति, wicked person
- प्रियवादी — मीठा बोलने वाला, sweet-spoken
- न एतत् विश्वासकारणम् — यह विश्वास करने का कारण नहीं है
- मधु — शहद, sweetness
- तिष्ठति — स्थित होता है
- जिह्वाग्रे — जिह्वा के अग्रभाग पर (tongue’s tip)
- हृदि — हृदय में (in the heart)
- हालाहलम् विषम् — घोर विष (halāhala poison, deadly venom)
📖 व्याकरणात्मक विश्लेषण
- दुर्जनः प्रियवादी च → कर्ता (subject), wicked but sweet-spoken person।
- न एतत् विश्वासकारणम् → नकार + प्रथमा → "यह विश्वास का कारण नहीं"।
- मधु तिष्ठति जिह्वाग्रे → "मधु" (प्रथमा एकवचन), "तिष्ठति" (लट् लकार, 3rd singular, verb = स्थित है), स्थान = जिह्वा के अग्रभाग में।
- हृदि हालाहलम् विषम् → "हृदि" (सप्तमी एकवचन = हृदय में), "विषम्" (कर्म), "हालाहलम्" (विशेषण)।
➡ इस श्लोक की संरचना "बाहरी मिठास बनाम आंतरिक विष" के विरोधाभास (antithesis) को उभारती है।
🌍 आधुनिक सन्दर्भ
- आज की दुनिया में यह श्लोक toxic relationships, fake friends, sweet-talking politicians, या manipulative colleagues के लिए बिल्कुल सटीक है।
- हर मधुर बोलने वाला व्यक्ति हितैषी नहीं होता। कई बार लोग मीठी बातें करके अपने स्वार्थ पूरे करते हैं और भीतर से छल-पूर्ण होते हैं।
- यह हमें discernment (विवेक) की शिक्षा देता है—कि हमें केवल शब्दों से प्रभावित होकर किसी पर विश्वास नहीं करना चाहिए, बल्कि उसके आचरण और स्वभाव को परखना चाहिए।
🗣 संवादात्मक नीति कथा
दृश्य:
एक शिष्य अपने गुरु से पूछता है—
शिष्य: "गुरुदेव! अमुक व्यक्ति हमेशा मीठा बोलता है। क्या वह मेरा सच्चा मित्र है?"
गुरु: "वत्स! मधुर वाणी हमेशा सच्चे मन की पहचान नहीं होती। जैसे मधु जिह्वा पर हो सकता है पर हृदय में विष भी छिपा हो।
सच्चे मित्र की पहचान उसके कार्य और आचरण से होती है, केवल शब्दों से नहीं।"
✅ निष्कर्ष
- यह श्लोक हमें सावधानी और विवेक की प्रेरणा देता है।
- हर मीठा बोलने वाला हितैषी नहीं होता।
- वास्तविक मित्र और सज्जन वही है जिसके हृदय और वाणी दोनों समान रूप से पवित्र हों।
- अतः हमें शब्दों के बजाय आचरण और नीयत पर ध्यान देना चाहिए।
👉 सार: “बाहरी मिठास पर मत जाइए, हृदय की सच्चाई पहचानिए।”