Bone Glue | टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला बोन ग्लू | Science Discovery

Sooraj Krishna Shastri
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Bone Glue| टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला बोन ग्लू | Science Discovery

जानिए Bone Glue क्या है और यह कैसे टूटी हुई हड्डियों को सिर्फ 2–3 मिनट में जोड़ सकता है। चीन के वैज्ञानिकों की यह नई खोज मेटल इंप्लांट की जरूरत खत्म कर सकती है। पढ़ें पूरी जानकारी हिंदी में।


🦴 बोन ग्लू (Bone Glue): टूटी हड्डियों को जोड़ेगा सिर्फ 2–3 मिनट में

विज्ञान की दुनिया में आए दिन नई-नई खोजें होती रहती हैं, लेकिन इस बार चीन के वैज्ञानिकों ने एक ऐसा आविष्कार किया है जो आने वाले समय में मेडिकल साइंस में मील का पत्थर साबित हो सकता है।
चीन के शोधकर्ताओं ने “बोन ग्लू” (Bone Glue) नामक एक विशेष बायो-एडेसिव (Bio-Adhesive) विकसित किया है, जो टूटी हुई हड्डियों को महज़ 2–3 मिनट में जोड़ सकता है। इसे Bone-02 नाम दिया गया है।

इस खोज का महत्व इतना बड़ा है कि यह मेटल इंप्लांट (Screws, Plates और Rods) की जरूरत को पूरी तरह खत्म कर सकता है।

Bone Glue | टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला बोन ग्लू | Science Discovery
Bone Glue | टूटी हड्डियों को जोड़ने वाला बोन ग्लू | Science Discovery

🌊 बोन ग्लू का आइडिया कहां से आया?

इस खोज की प्रेरणा वैज्ञानिकों को समुद्री सीप (Mussels) से मिली।

  • आपने देखा होगा कि तेज़ लहरों वाले समुद्र में भी सीप बड़ी मजबूती से चट्टानों से चिपकी रहती है।
  • वैज्ञानिकों ने यही सोचा कि यदि सीप पानी जैसी कठिन परिस्थितियों में इतनी मजबूत पकड़ बना सकती हैं, तो क्या वैसा ही चिपकने वाला पदार्थ मानव शरीर में खून से भरे वातावरण में हड्डियों को जोड़ने के लिए इस्तेमाल हो सकता है?

इस सवाल ने शोध की दिशा तय की और परिणामस्वरूप Bone-02 विकसित हुआ।


🏥 अभी तक हड्डियों को जोड़ने के तरीके

आज के समय में टूटी हुई हड्डियों का इलाज दो तरीकों से किया जाता है:

  1. सर्जिकल (Surgical Treatment):

    • जब हड्डी बुरी तरह टूट जाती है, अपनी जगह से हट जाती है या कई टुकड़ों में बिखर जाती है, तब मेटल स्क्रू, प्लेट या रॉड लगानी पड़ती है।
    • इसमें बड़ी सर्जरी करनी पड़ती है और बाद में इंप्लांट निकालने के लिए दूसरी सर्जरी भी करनी पड़ सकती है।
  2. नॉन-सर्जिकल (Non-Surgical Treatment):

    • जब हड्डी अपनी जगह से ज्यादा न हटी हो और डॉक्टर को लगता है कि वह समय के साथ खुद जुड़ सकती है।
    • इस स्थिति में प्लास्टर, स्प्लिंट या ब्रेसेस का इस्तेमाल किया जाता है।

दोनों ही तरीकों में समय लंबा लगता है और मरीज को महीनों तक दर्द और असुविधा झेलनी पड़ती है।


⚙️ बोन ग्लू कैसे काम करेगा?

  • सर्जरी के दौरान टूटी हुई हड्डियों पर बोन ग्लू लगाया जाएगा
  • यह ग्लू 2 से 3 मिनट में हड्डियों को जोड़ देगा।
  • इसमें इतनी मजबूती होगी कि यह 200 किलो तक का भार सह सकता है।
  • हड्डी पूरी तरह जुड़ जाने के बाद यह ग्लू 6 से 8 महीनों में शरीर में खुद-ब-खुद घुल जाएगा

👉 इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मरीज को दूसरी सर्जरी की जरूरत नहीं होगी, जबकि आज की स्थिति में मेटल स्क्रू और प्लेट निकालने के लिए अतिरिक्त ऑपरेशन करना पड़ता है।


🧪 बोन ग्लू के क्लिनिकल ट्रायल

  • यह खोज डॉ. लिन जियान फेंग की टीम (वेंजाओ, चीन) ने की है।
  • अब तक इस पर 150 मरीजों पर सफल क्लिनिकल ट्रायल किए जा चुके हैं।
  • चूंकि यह बायोडिग्रेडेबल और बायोकम्पैटिबल पदार्थ है, इसलिए इसे शरीर अच्छी तरह स्वीकार करता है।
  • हालांकि, लंबे समय के बाद इसके साइड इफेक्ट्स क्या होंगे, इस पर अभी और रिसर्च चल रही है।

🌍 भारत और दुनिया में हो रही रिसर्च

  • भारत:

    • चीन से पहले ही भारत के IISER भोपाल के वैज्ञानिकों ने 2023 में “मैजिक ग्लू (A30)” विकसित किया था।
    • यह ग्लू पानी और खून जैसी गीली सतहों पर भी चिपक सकता है।
    • इसकी खासियत यह है कि यह सिर्फ हड्डी ही नहीं, बल्कि त्वचा और अन्य अंगों को भी जोड़ सकता है।
    • लेकिन अभी यह प्रयोगशाला परीक्षण के प्रारंभिक चरण में है और मानव पर परीक्षण की अनुमति नहीं मिली है।
  • दुनिया:

    • अमेरिका, यूरोप और दक्षिण कोरिया में भी इसी तरह के बायो-एडेसिव पर रिसर्च जारी है।
    • हालांकि चीन का Bone-02 क्लिनिकल ट्रायल्स में सबसे आगे है।

🔮 भविष्य की संभावनाएं

यदि यह बोन ग्लू सफल साबित होता है, तो:

  • लाखों मरीजों को मेटल इंप्लांट की सर्जरी से मुक्ति मिलेगी।
  • रिकवरी टाइम बहुत कम हो जाएगा।
  • बुजुर्ग और कमजोर हड्डियों वाले मरीजों को बड़ी राहत मिलेगी।
  • मेडिकल खर्च में भी भारी कमी आएगी।

✨ निष्कर्ष

बोन ग्लू सिर्फ एक वैज्ञानिक खोज नहीं है, बल्कि यह उन करोड़ों लोगों के लिए नई उम्मीद है जिन्हें हर साल दर्दनाक और महंगी सर्जरी से गुजरना पड़ता है।
यह शोध बताता है कि विज्ञान लगातार हमारी जिंदगी को आसान, सुरक्षित और बेहतर बनाने की दिशा में काम कर रहा है।

आने वाले समय में यदि यह तकनीक बड़े पैमाने पर लागू हो जाती है, तो इसे मेडिकल साइंस की सबसे बड़ी उपलब्धियों में गिना जाएगा।



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