Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥

Sooraj Krishna Shastri
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Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥ 

"जानिए रावण ने श्रीराम को भगवान मानकर भी भक्ति क्यों नहीं की। तुलसीदास की चौपाइयों में सत्व, रज, तम गुणों का गूढ़ रहस्य विस्तार से।"

1. चौपाई का मूल भाव

होइहि भजनु न तामस देहा।
मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥

➡ रावण कहता है – इस राक्षसी तामसी देह से भजन तो होगा नहीं। इसीलिए मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं मन, वचन और कर्म से भक्ति नहीं, बल्कि वैर करूंगा।

जौं नररूप भूपसुत कोऊ।
हरिहउँ नारि जीति रन दोऊ॥

➡ यदि ये सचमुच मनुष्य रूपी कोई राजकुमार हैं तो मैं इन्हें रणभूमि में परास्त करके इनकी पत्नी का हरण कर लूँगा।

👉 यहाँ स्पष्ट है कि रावण को कहीं न कहीं आभास हो गया था कि श्रीराम साधारण मनुष्य नहीं, अपितु स्वयं भगवान हैं। किंतु अपनी तामसी प्रवृत्ति के कारण उसने भक्ति मार्ग न चुनकर शत्रुता का मार्ग अपनाया।


2. सत्त्व, रज और तम की प्रवृत्तियाँ

भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं :

ये चैव सात्विका भावा राजसास्तामसाश्च ये।
मत्त एवेति तान्विद्धि न त्वहं तेषु ते मयि॥

➡ अर्थात सत्त्व, रज और तम—ये सब भाव मुझसे उत्पन्न होते हैं, किन्तु मैं इनमें नहीं हूँ।

  • सत्त्व गुण – हल्कापन, शांति, पवित्रता, ज्ञान और भक्ति की ओर प्रवृत्ति।
  • रज गुण – गति, कर्म, इच्छा, लोभ और स्पर्धा को बढ़ाने वाला।
  • तम गुण – आलस्य, मोह, अज्ञान और क्रूरता को जन्म देने वाला।

👉 संसार का प्रत्येक जीव इन तीन गुणों के प्रभाव में कार्य करता है। रावण पर तमस गुण का आधिक्य था, इसीलिए वह भगवान को जानकर भी भक्ति न कर सका और विपरीत मार्ग चुन लिया।

Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥
Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥ 

3. रावण का स्वीकार

रावण स्वयं कहता है :

खर दूसन मो सम बलवंता।
तिनहि को मरहि बिनु भगवंता॥

➡ खर-दूषण जो मेरे ही समान पराक्रमी थे, उन्हें भगवान के अतिरिक्त और कौन मार सकता है?

👉 यहाँ भी रावण को यह आभास है कि श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं, अपितु भगवान हैं।


4. रावण की अंतिम विचारधारा

सुर रंजन भंजन महि भारा।
जौं भगवंत लीन्ह अवतारा॥
तौ मैं जाइ बैरु हठि करऊँ।
प्रभु सर प्रान तजें भव तरऊँ॥

➡ अंततः रावण सोचता है कि यदि भगवान ने सचमुच अवतार लिया है तो मैं उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और उनके बाणों से मारे जाकर मोक्ष प्राप्त कर लूँगा।

👉 यह दर्शाता है कि रावण को ज्ञान था कि राम भगवान हैं, किंतु उसका अज्ञान और अहंकार उसे भक्ति मार्ग से दूर ले गया।


5. तुलसीदास जी का भाव

तुलसीदास जी का उद्देश्य यह दिखाना है कि—

  • भगवान तक पहुँचने के मार्ग कई हैं।
  • कोई प्रीति से पहुँचता है, कोई वैर से भी मुक्ति पा लेता है।
  • किंतु श्रेष्ठ मार्ग भक्ति, प्रेम और समर्पण का ही है।

6. राम नाम का महत्व

तुलसीदास जी कहते हैं :

राम नाम मनि दीप धरु, जीह देहरी द्वार।
तुलसी भीतर बाहरहुं, जो चाहसि उजियार॥

➡ यदि तू भीतर-बाहर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ पर राम-नाम रूपी दीपक रख।

👉 यहाँ संदेश यह है कि केवल राम-नाम का जप करने से भी जीवन उज्ज्वल हो जाता है।


7. निष्कर्ष

  • रावण भगवान को पहचान कर भी भक्ति मार्ग न चुन सका।
  • उसके तामसी गुणों ने उसे विनाश की ओर धकेला।
  • किंतु उसका वध स्वयं भगवान के हाथों हुआ और उसे मोक्ष मिला।
  • तुलसीदास जी हमें यह शिक्षा देते हैं कि हम वैर के मार्ग से नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम, आस्था और समर्पण से प्रभु तक पहुँचे।

✨ जहां “राम” हैं, वहां प्रेम, भक्ति, श्रद्धा, त्याग, मर्यादा, करुणा और सकारात्मकता है।
✨ जो भी जीव राम का नाम लेता है, उसके जीवन का उद्धार निश्चित है।



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