Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥
1. चौपाई का मूल भाव
➡ रावण कहता है – इस राक्षसी तामसी देह से भजन तो होगा नहीं। इसीलिए मेरा दृढ़ निश्चय है कि मैं मन, वचन और कर्म से भक्ति नहीं, बल्कि वैर करूंगा।
➡ यदि ये सचमुच मनुष्य रूपी कोई राजकुमार हैं तो मैं इन्हें रणभूमि में परास्त करके इनकी पत्नी का हरण कर लूँगा।
👉 यहाँ स्पष्ट है कि रावण को कहीं न कहीं आभास हो गया था कि श्रीराम साधारण मनुष्य नहीं, अपितु स्वयं भगवान हैं। किंतु अपनी तामसी प्रवृत्ति के कारण उसने भक्ति मार्ग न चुनकर शत्रुता का मार्ग अपनाया।
2. सत्त्व, रज और तम की प्रवृत्तियाँ
भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहते हैं :
➡ अर्थात सत्त्व, रज और तम—ये सब भाव मुझसे उत्पन्न होते हैं, किन्तु मैं इनमें नहीं हूँ।
- सत्त्व गुण – हल्कापन, शांति, पवित्रता, ज्ञान और भक्ति की ओर प्रवृत्ति।
- रज गुण – गति, कर्म, इच्छा, लोभ और स्पर्धा को बढ़ाने वाला।
- तम गुण – आलस्य, मोह, अज्ञान और क्रूरता को जन्म देने वाला।
👉 संसार का प्रत्येक जीव इन तीन गुणों के प्रभाव में कार्य करता है। रावण पर तमस गुण का आधिक्य था, इसीलिए वह भगवान को जानकर भी भक्ति न कर सका और विपरीत मार्ग चुन लिया।
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Ramcharitmanas Chaupai: होइहि भजनु न तामस देहा। मन क्रम बचन मंत्र दृढ़ एहा॥ |
3. रावण का स्वीकार
रावण स्वयं कहता है :
➡ खर-दूषण जो मेरे ही समान पराक्रमी थे, उन्हें भगवान के अतिरिक्त और कौन मार सकता है?
👉 यहाँ भी रावण को यह आभास है कि श्रीराम कोई साधारण मानव नहीं, अपितु भगवान हैं।
4. रावण की अंतिम विचारधारा
➡ अंततः रावण सोचता है कि यदि भगवान ने सचमुच अवतार लिया है तो मैं उनसे हठपूर्वक वैर करूँगा और उनके बाणों से मारे जाकर मोक्ष प्राप्त कर लूँगा।
👉 यह दर्शाता है कि रावण को ज्ञान था कि राम भगवान हैं, किंतु उसका अज्ञान और अहंकार उसे भक्ति मार्ग से दूर ले गया।
5. तुलसीदास जी का भाव
तुलसीदास जी का उद्देश्य यह दिखाना है कि—
- भगवान तक पहुँचने के मार्ग कई हैं।
- कोई प्रीति से पहुँचता है, कोई वैर से भी मुक्ति पा लेता है।
- किंतु श्रेष्ठ मार्ग भक्ति, प्रेम और समर्पण का ही है।
6. राम नाम का महत्व
तुलसीदास जी कहते हैं :
➡ यदि तू भीतर-बाहर उजाला चाहता है, तो मुख रूपी द्वार की जीभ पर राम-नाम रूपी दीपक रख।
👉 यहाँ संदेश यह है कि केवल राम-नाम का जप करने से भी जीवन उज्ज्वल हो जाता है।
7. निष्कर्ष
- रावण भगवान को पहचान कर भी भक्ति मार्ग न चुन सका।
- उसके तामसी गुणों ने उसे विनाश की ओर धकेला।
- किंतु उसका वध स्वयं भगवान के हाथों हुआ और उसे मोक्ष मिला।
- तुलसीदास जी हमें यह शिक्षा देते हैं कि हम वैर के मार्ग से नहीं, बल्कि भक्ति, प्रेम, आस्था और समर्पण से प्रभु तक पहुँचे।