राम दुआरे तुम रखवारे : सुग्रीव और विभीषण को भगवान राम से मिलाने की कथा | Hanuman Bhakti and Yukti
जानिए “राम दुआरे तुम रखवारे” के गूढ़ रहस्य। कैसे हनुमान जी ने सुग्रीव और विभीषण को श्रीराम से मिलाया, भक्ति और नीति का संगम किया। यह कथा रामचरितमानस के गहन भाव और हनुमान जी की महिमा को प्रकट करती है।
यह प्रसंग रामचरितमानस और उसके गूढ़ रहस्यों से जुड़ा है। इसमें यह बताया गया है कि हनुमान जी केवल भक्तों के रक्षक ही नहीं, बल्कि राम जी और भक्तों के बीच सेतु भी हैं। चलिए इसे विस्तार से प्रस्तुत करते हैं—
राम दुआरे तुम रखवारे : हनुमान जी की भक्ति और युक्ति
1. राम दुआरे रखवाले श्री हनुमान
- भगवान से सीधे नाता बिना हनुमान जी की आज्ञा के नहीं जुड़ता।
- जैसे राजमहल में राजा तक पहुंचने के लिए द्वारपाल की अनुमति आवश्यक है, वैसे ही हनुमान जी के बिना प्रभु तक पहुँच संभव नहीं।
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राम दुआरे तुम रखवारे : सुग्रीव और विभीषण को भगवान राम से मिलाने की कथा | Hanuman Bhakti and Yukti |
2. सुग्रीव की रक्षा और मिलन
जब लक्ष्मण जी क्रोध में सुग्रीव को ललकारने आए, तब सुग्रीव भयभीत हो गये।
- सुग्रीव ने हनुमान जी से विनती की –"तुम हनुमन्त संग लै तारा। करि विनती समुझाव कुमारा।।"
- हनुमान जी ने जाकर लक्ष्मण जी को शांत किया और सुग्रीव को प्रभु राम के चरणों से जोड़ दिया।👉 यहाँ हनुमान जी ने सेतु-कार्य किया –भटके हुए को प्रभु से जोड़ना।
3. विभीषण का मिलन और हनुमान जी की युक्ति
जब विभीषण जी शरण खोजने लगे, तो सबसे पहले हनुमान जी ने उन्हें आश्वस्त किया और राम जी से मिलाया।
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हनुमान जी बोले –"भैया विभीषण! तुम्हें सीता माता का दर्शन हुआ है, पर राम जी का नहीं। और मुझे राम जी का दर्शन हुआ है, पर सीता माता का नहीं। तुम हमें सीता माता का मार्ग दिखाओ, हम तुम्हें राम जी का दर्शन कराएँगे।"👉 यह भक्ति और युक्ति दोनों का सुंदर उदाहरण है।
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लंका दहन के समय हनुमान जी ने संपूर्ण लंका जला दी, पर विभीषण का भवन छोड़ दिया।क्यों?क्योंकि उस भवन पर राम का चिह्न अंकित था।"रामायुध अंकित गृह"जो राम का है, वह जल नहीं सकता।
4. रावण को संशय और विभीषण का पलायन
जब लंका जली और विभीषण का भवन बच गया, तो रावण को संशय हुआ।
- उसने सोचा – यह सब विभीषण और वानर की मिलीभगत है।
- क्रोधित होकर रावण ने विभीषण को अपमानित किया और लात मार दी।
👉 यह घटना वही युक्ति थी, जिससे विभीषण जी को हनुमान जी की बातें याद आ गईं और वे भगवान राम की शरण में चले आए।
5. श्रवण सुजस सुनकर शरणागति
विभीषण जी ने प्रभु से प्रार्थना की –
6. सुग्रीव का विरोध और भगवान का उत्तर
जब विभीषण जी शरण में आये, तो सभा में विरोध हुआ।
- सबसे पहले सुग्रीव बोले –"आवा मिलन दसानन भाई।"हे प्रभु! यह तो रावण का भाई है। इसे स्वीकार नहीं करना चाहिए।
7. दश का रहस्य
सुग्रीव के संदेह पर भगवान ने संकेत दिया –
- रावण = दसानन (दस मुख वाला)
- राम = दशरथ नंदन (दशरथ के पुत्र)
👉 "दस" दोनों में है, अंतर केवल "आनन" और "रथ" का है।
- एक के साथ आनन (अहंकार, विकार) जुड़ा है।
- दूसरे के साथ रथ (धर्म, मर्यादा, नीति) जुड़ा है।
यह सांकेतिक संकेत है कि संसार में चाहे सज्जन हों या दुर्जन, आरंभ में सभी को ईश्वर ने समान देह और दश इन्द्रियाँ दी हैं। परंतु उनका प्रयोग ही अंतर उत्पन्न करता है।
🌸 सार तत्व 🌸
- हनुमान जी बिना राम तक पहुंचना संभव नहीं।
- वे ही भक्त और भगवान के बीच सेतु हैं।
- सुग्रीव को राम से मिलाना, विभीषण को राम से जोड़ना – यह उनकी भक्ति और नीति दोनों का प्रमाण है।
- राम जी का कृपा-द्वार हनुमान जी के हाथों में है।