Gaya ही नहीं, इन तीर्थों पर भी Shraddha और Pinddan से मिलती है Pitron ko Mukti | Bharat ke Pramukh Pitrikarm Teerth
भारत में पितृकर्म, श्राद्ध और पिण्डदान हेतु गया (बिहार) सर्वाधिक प्रसिद्ध है, किन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेक पवित्र तीर्थ हैं जहाँ पितृ तर्पण करने से आत्मा को शांति और मोक्ष की प्राप्ति होती है। ओडिशा का जगन्नाथपुरी, मध्यप्रदेश का उज्जैन व अमरकण्टक, महाराष्ट्र का नासिक, त्र्यम्बकेश्वर और पंढरपुर, राजस्थान का पुष्कर व लोहार्गल, तमिलनाडु का तिरुपति, रामेश्वरम, कुम्भकोणम व दर्भशयनम् तथा गुजरात का सिद्धपुर, द्वारका, प्रभास-पाटन और शूलपाणी जैसे स्थल विशेष रूप से पितृकर्म के लिए प्रसिद्ध हैं। यहाँ स्नान, तर्पण और पिण्डदान करने से पितृगण तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं। जानिए इन प्रमुख पितृकर्म तीर्थ स्थलों का धार्मिक महत्व, राज्यवार सूची और इनके विशेष गुण।
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Gaya ही नहीं, इन तीर्थों पर भी Shraddha और Pinddan से मिलती है Pitron ko Mukti | Bharat ke Pramukh Pitrikarm Teerth |
पितृ कर्मों के लिए भारत के प्रमुख तीर्थ
भारत में श्राद्ध, तर्पण, पिंडदान आदि पितृकर्मों की परम्परा अत्यन्त प्राचीन है। गया (बिहार) को इस कार्य के लिए सर्वोपरि माना जाता है, किन्तु इसके अतिरिक्त भी अनेक पावन तीर्थ ऐसे हैं जहाँ पितृ तर्पण और श्राद्ध करने से विशेष पुण्यफल प्राप्त होता है।
नीचे प्रमुख तीर्थों का क्रमवार विवरण—
1. देवप्रयाग (उत्तराखंड)
- गंगा के उद्गम का प्रथम संगम – भागीरथी और अलकनंदा का संगम।
- पितरों के लिए तर्पण और पिंडदान करने का विशेष महत्व।
- यहाँ श्राद्ध करने से पितृ आत्माओं की मुक्ति और संतोष प्राप्त होता है।
2. त्रियुगीनारायण (सरस्वती कुंड, उत्तराखंड)
- रुद्रप्रयाग के समीप स्थित यह तीर्थ भगवान विष्णु के विवाह से जुड़ा है।
- सरस्वती नदी पर स्थित रुद्रकुंड, विष्णुकुंड और ब्रह्मकुंड तर्पण हेतु प्रसिद्ध।
- यहाँ श्राद्ध करने से पितृों को दीर्घकालिक शांति और आशीर्वाद प्राप्त होता है।
3. मदमहेश्वर (उत्तराखंड)
- पंचकेदारों में दूसरा केदार, भगवान शिव की नाभि यहाँ प्रतिष्ठित।
- यह तीर्थ तपस्या और पितृकर्म दोनों के लिए अत्यंत पवित्र।
- यहाँ किया गया पिंडदान पितरों को तृप्ति और साधक को पुण्य प्रदान करता है।
4. रुद्रनाथ (उत्तराखंड)
- पंचकेदारों में एक और प्रमुख तीर्थ।
- यहाँ भगवान शिव के मुख की पूजा होती है।
- पितृ तर्पण से आत्माओं को शांति और साधक को पारिवारिक उन्नति मिलती है।
5. बद्रीनाथ (ब्रह्मकपाल शिला, उत्तराखंड)
- अलकनंदा तट पर स्थित ब्रह्मकपाल शिला पितृकर्म के लिए प्रसिद्ध।
- मान्यता है कि यहाँ पिंडदान से पितृ बंधन समाप्त हो जाते हैं।
- श्राद्धकर्म करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है।
6. हरिद्वार (हर की पैड़ी, कनखल, उत्तराखंड)
- सप्तगंगा और त्रिगंगा का संगम स्थल।
- हर की पैड़ी पर किया गया श्राद्ध सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
- कनखल में स्नान और तर्पण से पितरों की संतुष्टि और परिवार में सुख-शांति आती है।
7. कुरुक्षेत्र (पेहोवा, हरियाणा)
- महाभारत भूमि पर स्थित यह तीर्थ सरस्वती नदी के तट पर है।
- यहाँ पिंडदान और तर्पण का महत्व सर्वाधिक बताया गया है।
- श्राद्धकर्म से पितृगण संतुष्ट होकर साधक को विजय और समृद्धि का आशीर्वाद देते हैं।
8. पिण्डास्क (हरियाणा)
- कुरुक्षेत्र और पेहोवा के बीच स्थित पवित्र स्थान।
- इसे पिंड तारक तीर्थ कहा जाता है।
- यहाँ स्नान और पितृ तर्पण से पापों का नाश होता है।
9. मथुरा (ध्रुवघाट, उत्तर प्रदेश)
- यमुना तट पर स्थित 24 प्रमुख घाटों में से एक।
- ध्रुवघाट और ध्रुव मंदिर पितृ तर्पण के लिए प्रसिद्ध।
- यहाँ किया गया श्राद्ध पितरों की आत्मा को संतोष प्रदान करता है।
10. नैमिषारण्य (उत्तर प्रदेश)
- यह स्थान प्राचीन काल से ऋषियों की तपोभूमि रहा है।
- श्राद्ध, यज्ञ और तर्पण से सात जन्मों के पाप नष्ट होते हैं।
- पितृकर्म यहाँ करने से साधक को धर्म, अर्थ और मोक्ष की प्राप्ति होती है।
11. धौतपाप (हत्याहरण तीर्थ, उत्तर प्रदेश)
- नैमिषारण्य से लगभग 13 किमी दूर गोमती नदी के किनारे।
- यहाँ स्नान और श्राद्ध से सभी पाप धुल जाते हैं।
- पितरों की आत्मा को विशेष शांति मिलती है।
12. बिठूर (ब्रह्मावर्त, उत्तर प्रदेश)
- कानपुर के निकट गंगा तट पर स्थित।
- ब्रह्मा जी का प्रमुख पूजा स्थल।
- ब्रह्मा घाट पर श्राद्ध और तर्पण से पितरों को तृप्ति और परिवार को समृद्धि मिलती है।
13. प्रयागराज (त्रिवेणी संगम, उत्तर प्रदेश)
- गंगा, यमुना और सरस्वती का त्रिवेणी संगम।
- पितृ तर्पण और श्राद्ध के लिए यह सर्वोच्च पुण्यदायी स्थल।
- यहाँ किया गया श्राद्ध पितरों को मोक्ष प्रदान करता है।
14. काशी (मणिकर्णिका घाट, उत्तर प्रदेश)
- भगवान शिव की नगरी, प्रलय में भी नष्ट न होने वाला क्षेत्र।
- मणिकर्णिका घाट पर किया गया श्राद्ध मोक्षदायी है।
- पितरों की तृप्ति और साधक को आत्मिक उन्नति का आशीर्वाद मिलता है।
15. अयोध्या (सरयू नदी, उत्तर प्रदेश)
- सप्तपुरियों में प्रथम स्थान।
- सरयू नदी में स्नान और तर्पण से पितृ तृप्त होते हैं।
- यहाँ श्राद्ध करने से पितरों का आशीर्वाद और वंश वृद्धि प्राप्त होती है।
16. गया (बिहार)
- सबसे प्रमुख पितृकर्म तीर्थ।
- पुराणों में वर्णित – पितरों की यह कामना रहती है कि वंशज यहाँ पिंडदान करें।
- गया में किया गया श्राद्ध पितरों को अक्षय तृप्ति और साधक को पुण्य प्रदान करता है।
17. बोधगया (बिहार)
- भगवान बुद्ध की तपोभूमि।
- यहाँ श्राद्ध और तर्पण का विशेष महत्व है।
- बोधगया में पितृकर्म करने से पितरों की आत्मा को मोक्ष की ओर गति मिलती है।
18. राजगृह (बिहार)
- हिन्दू, बौद्ध और जैन – तीनों धर्मों का प्रमुख तीर्थ।
- यहाँ पुरुषोत्तम मास में किया गया श्राद्ध अत्यंत फलदायी है।
- पितरों को संतोष और साधक को सौभाग्य मिलता है।
19. परशुराम कुंड (असम)
- पौराणिक मान्यता – भगवान परशुराम से जुड़ा तीर्थ।
- यहाँ पितृ श्राद्ध करने से पितरों को विशेष शांति मिलती है।
- साधक का पितृऋण भी समाप्त होता है।
20. याजपुर (ओडिशा)
- यहाँ ब्रह्मा जी ने यज्ञ किया था।
- श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान का विशेष महत्व है।
- पितरों की आत्मा को संतुष्टि और साधक को पुण्य प्राप्त होता है।
21. भुवनेश्वर (ओडिशा)
- उत्कल-वाराणसी और गुप्त काशी के नाम से प्रसिद्ध।
- यहाँ अनेकों शिव मंदिर हैं।
- श्राद्धकर्म करने से पितरों की आत्मा को तृप्ति और परिवार को सुख-समृद्धि प्राप्त होती है।
22. जगन्नाथपुरी (ओडिशा)
- चार धामों में से एक।
- यहाँ के समुद्र तट और पवित्र सरोवरों में तर्पण करना विशेष पुण्यदायी है।
- माना जाता है कि जगन्नाथ भगवान की कृपा से पितृगण तृप्त होकर मोक्ष को प्राप्त करते हैं।
23. उज्जैन (मध्यप्रदेश)
- पवित्र शिप्रा नदी के तट पर बसा तीर्थ।
- महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग का स्थान।
- शिप्रा नदी को विष्णु के शरीर से उत्पन्न कहा गया है, अतः यहाँ श्राद्ध से पितृ पूर्ण संतुष्ट होते हैं।
24. अमरकण्टक (मध्यप्रदेश)
- नर्मदा नदी का उद्गम स्थल।
- मान्यता है कि गंगा का जल छूते ही पवित्र करता है, यमुना का एक सप्ताह में और सरस्वती का तीन दिन में।
- पितृकर्म हेतु यह स्थल महान पुण्यदायी माना जाता है।
25. नासिक (महाराष्ट्र)
- गोदावरी नदी के तट पर स्थित।
- गोदावरी सप्तमुखी नदियों में से एक है।
- यहाँ स्नान और तर्पण करने से पितृ शांति प्राप्त करते हैं।
26. त्र्यम्बकेश्वर (महाराष्ट्र)
- बारह ज्योतिर्लिंगों में एक।
- महर्षि गौतम की तपोभूमि।
- पितृदोष शान्ति और श्राद्ध कर्म के लिए विशेष महत्व।
27. पंढरपुर (महाराष्ट्र)
- भीमा नदी (चन्द्रभागा) के तट पर स्थित।
- भगवान विट्ठल (विटोबा) का प्रसिद्ध धाम।
- यहाँ पितृकर्म करने से विशेष पुण्य की प्राप्ति होती है।
28. लोहार्गल (सीकर, राजस्थान)
- सात पवित्र धाराओं का संगम स्थल।
- अस्थि विसर्जन एवं पिण्डदान के लिए दूर-दूर से लोग यहाँ आते हैं।
29. पुष्कर (अजमेर, राजस्थान)
- ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर।
- हरिद्वार या गया में अस्थि विसर्जन के बाद लोग पुष्कर में पिण्डदान करते हैं।
- इसे मोक्षदायी तीर्थ कहा गया है।
30. तिरुपति (तमिलनाडु)
- कपिल तीर्थ और श्रीवेंकटेश्वर बालाजी का धाम।
- गोविंदराज और अन्य तीर्थदर्शन के साथ यहाँ श्राद्ध का विशेष महत्व है।
31. शिवकांची – सर्वतीर्थ सरोवर (तमिलनाडु)
- कांचीपुरी शिव और विष्णु दोनों का क्षेत्र।
- शिवकांची एवं विष्णुकांची, दोनों ही मोक्षदायी स्थल।
- यहाँ के सर्वतीर्थ सरोवर में पिण्डदान अत्यन्त शुभ माना गया है।
32. कुम्भकोणम (तमिलनाडु)
- कावेरी नदी के तट पर स्थित।
- महामघम सरोवर यहाँ का मुख्य तीर्थ है।
- विशेषतः श्राद्ध और तर्पण हेतु प्रसिद्ध।
33. रामेश्वरम (तमिलनाडु)
- बारह ज्योतिर्लिंगों में एक।
- लक्ष्मणतीर्थ और अन्य सरोवरों में पिण्डदान करने से पितृ अत्यन्त प्रसन्न होते हैं।
34. दर्भशयनम् (तमिलनाडु)
- वह स्थान जहाँ भगवान राम ने दर्भशय्या पर विश्राम किया था।
- पितृकर्म हेतु यह स्थान विशेष महत्व रखता है।
35. सिद्धपुर (गुजरात)
- मातृ श्राद्ध का विशेष महत्व।
- यहाँ श्राद्ध करने से पितृ तृप्त होकर आशीर्वाद प्रदान करते हैं।
36. द्वारका पुरी (गुजरात)
- श्रीकृष्ण का धाम।
- यहाँ श्राद्ध और तर्पण करने से पितृ मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
37. नारायणसर (गुजरात)
- यहाँ आदि नारायण, लक्ष्मी नारायण, गोवर्धननाथ आदि मंदिर।
- नारायण सरोवर के पास श्राद्ध कर्म करने की विशेष परंपरा।
38. प्रभास-पाटन, वेरावल (गुजरात)
- सोमनाथ ज्योतिर्लिंग का स्थान।
- प्राची त्रिवेणी संगम और भालका तीर्थ (जहाँ श्रीकृष्ण ने शरीर त्याग किया)।
- श्राद्ध, पिण्डदान एवं तीर्थस्नान के लिए अत्यन्त पावन क्षेत्र।
39. शूलपाणी (गुजरात)
- नर्मदा तट का प्रमुख तीर्थ।
- शूलपाणी महादेव का मंदिर यहाँ स्थित।
- पिण्डदान हेतु चाणोद, श्रीरंगम (तमिलनाडु), रीवा (मध्यप्रदेश) भी विशेष रूप से उल्लेखनीय स्थान हैं।
निष्कर्ष
📊 भारत के प्रमुख पितृकर्म तीर्थ (राज्यवार तालिका)
क्रमांक | तीर्थ स्थल | राज्य | विशेष महत्व / वर्णन |
---|---|---|---|
1 | देव प्रयाग | उत्तराखंड | भागीरथी–अलखनन्दा संगम, पितृ तर्पण हेतु प्रमुख स्थान |
2 | त्रियूगीनारायण (सरस्वती कुंड) | उत्तराखंड | सरस्वती नदी तट, विष्णु–ब्रह्मकुंड में तर्पण |
3 | मदमहेश्वर (मध्यमेश्वर) | उत्तराखंड | पंचकेदार का द्वितीय केदार, शिव नाभि प्रतिष्ठित |
4 | रूद्रनाथ | उत्तराखंड | पंचकेदारों में से एक, तर्पण हेतु पवित्र स्थान |
5 | बद्रीनाथ (ब्रह्मकपाल शिला) | उत्तराखंड | अलखनन्दा तट पर पितृ पिण्डदान के लिए विख्यात |
6 | हरिद्वार (हर की पैड़ी, कनखल) | उत्तराखंड | सप्तगंगा एवं पितृ तर्पण का अत्यंत मान्य तीर्थ |
7 | कुरुक्षेत्र (पेहोवा) | हरियाणा | सरस्वती तट पर स्थित, पितृ श्राद्ध हेतु विशेष |
8 | पिण्डास्क (पिण्ड तारक तीर्थ) | हरियाणा | पेहोवा–कुरुक्षेत्र मार्ग पर, स्नान–तर्पण के लिए प्रसिद्ध |
9 | मथुरा (ध्रुवघाट) | उत्तर प्रदेश | यमुना तट का प्रसिद्ध श्राद्ध स्थल |
10 | नैमिषारण्य | उत्तर प्रदेश | श्राद्ध, यज्ञ, तपस्या से पाप नाशक तीर्थ |
11 | धौतपाप (हत्याहरण तीर्थ) | उत्तर प्रदेश | गोमती तट, श्राद्ध–स्नान से पाप नष्ट |
12 | बिठूर (ब्रह्मावर्त) | उत्तर प्रदेश | गंगा तट का प्रमुख ब्रह्मा घाट |
13 | प्रयागराज (त्रिवेणी संगम) | उत्तर प्रदेश | पितृ तर्पण हेतु सर्वोच्च पुण्यदायी स्थान |
14 | काशी (मणिकर्णिका घाट) | उत्तर प्रदेश | पितृ श्राद्ध से तृप्ति और मोक्ष की प्राप्ति |
15 | अयोध्या (सरयू तट) | उत्तर प्रदेश | सप्तपुरी में प्रथम, सरयू में पितृ तर्पण |
16 | गया | बिहार | पितृ पिण्डदान का सबसे प्रमुख तीर्थ |
17 | बोधगया | बिहार | बुद्ध तीर्थ, पितृ तर्पण का विशेष महत्व |
18 | राजगृह | बिहार | पुरूषोत्तम मास में पितृ श्राद्ध हेतु श्रेष्ठ |
19 | परशुराम कुंड | असम | पूर्वकाल से श्राद्धकर्म का महातीर्थ |
20 | याजपुर | ओडिशा | ब्रह्मा जी के यज्ञ स्थल पर पितृ तर्पण |
21 | भुवनेश्वर | ओडिशा | उत्कल-वाराणसी, गुप्त काशी, पितृ श्राद्ध स्थल |
22 | पुष्कर | राजस्थान | ब्रह्मा जी की नगरी, पितृ श्राद्ध हेतु विख्यात |
23 | सिद्धपुर (मातृगया) | गुजरात | मातृ श्राद्ध के लिए अद्वितीय स्थान |
24 | उज्जैन (सिद्धवट) | मध्य प्रदेश | पितृ श्राद्ध हेतु पवित्र वट वृक्ष क्षेत्र |
25 | अमरकंटक | मध्य प्रदेश | नर्मदा उद्गम स्थल, श्राद्ध–पितृ तर्पण हेतु श्रेष्ठ |
26 | ओंकारेश्वर | मध्य प्रदेश | शिव ज्योतिर्लिंग क्षेत्र, पितृ श्राद्ध हेतु मान्य |
27 | नासिक (रामकुंड, पंचवटी) | महाराष्ट्र | गोदावरी तट पर श्राद्ध–तर्पण के लिए प्रसिद्ध |
28 | त्र्यंबकेश्वर | महाराष्ट्र | ज्योतिर्लिंग स्थल, श्राद्ध–तर्पण हेतु श्रेष्ठ |
29 | गया–जी (कर्नाटक का गोकर्ण) | कर्नाटक | रुद्र तीर्थ, श्राद्ध–पितृ कर्म हेतु मान्य |
30 | रामीश्वरम् | तमिलनाडु | समुद्र स्नान व पितृ तर्पण हेतु श्रेष्ठतम |
31 | कांचीपुरम | तमिलनाडु | पितृ तर्पण हेतु प्रमुख दक्षिण भारत का स्थल |
32 | कन्याकुमारी | तमिलनाडु | तीन समुद्र संगम, पितृ तर्पण हेतु विख्यात |
33 | श्रीशैलम | आंध्र प्रदेश | मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग क्षेत्र, पितृ श्राद्ध हेतु मान्य |
34 | तिरुपति (स्वर्णमुखी नदी) | आंध्र प्रदेश | श्राद्ध व पितृ तर्पण हेतु प्रसिद्ध |
35 | श्रीरंगम (कावेरी तट) | तमिलनाडु | पितृ श्राद्ध हेतु पवित्र स्थान |
36 | गोदावरी तट (राजमहेंद्रवरम्) | आंध्र प्रदेश | श्राद्ध एवं पितृ तर्पण हेतु प्रमुख |
37 | वारकला (जनार्दनस्वामी मंदिर) | केरल | पितृ तर्पण के लिए विख्यात |
38 | त्रिवेंद्रम (अरुविक्करा) | केरल | पितृ कर्म हेतु पवित्र स्थान |
39 | त्रिशूर (वडक्कुनाथ मंदिर) | केरल | पितृ श्राद्ध का प्राचीन स्थल |