Shri Tripura Sundari Ashtakam in Hindi Meaning – श्री त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् शंकराचार्य कृत हिन्दी भावार्थ सहित
“श्री त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् (Shri Tripura Sundari Ashtakam) आदि शंकराचार्य द्वारा रचित एक महान स्तोत्र है जिसमें माँ ललिता त्रिपुरसुन्दरी के दिव्य सौन्दर्य, गुण और करुणा का वर्णन है। यहाँ आपको सम्पूर्ण अष्टकम् संस्कृत श्लोक सहित हिन्दी भावार्थ (Meaning in Hindi) और विस्तार से पाठ विधि, नियम तथा इसके लाभ बताए गए हैं। त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् का नियमित पाठ करने से साधक को सौन्दर्य, सौभाग्य, धन, विद्या और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होती है। भक्त यदि श्रद्धा और भक्ति से इस स्तोत्र का पाठ करता है तो उसे माता त्रिपुरसुन्दरी की अनन्त कृपा मिलती है। यह लेख उन सभी साधकों और भक्तों के लिए उपयोगी है जो त्रिपुरसुन्दरी उपासना, श्रीविद्या साधना और शक्ति भक्ति में रुचि रखते हैं। सम्पूर्ण स्तोत्र, भावार्थ, पाठ विधि और महत्व के साथ प्रस्तुत।”
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Shri Tripura Sundari Ashtakam in Hindi Meaning – श्री त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् शंकराचार्य कृत हिन्दी भावार्थ सहित |
🌸 श्री त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् 🌸
(शंकराचार्य विरचितम् — हिन्दी अर्थ सहित)
🕉️ श्लोक १
कदंबवनचारिणीं मुनिकदम्बकादंविनीं,
नितंबजितभूधरां सुरनितंबिनीसेविताम् ।
नवंबुरुहलोचनामभिनवांबुदश्यामलां,
त्रिलोचनकुटुम्बिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥१॥
भावार्थ :
मैं उस त्रिपुरसुन्दरी माता का आश्रय लेता हूँ,
जो कदंबवन में विहार करती हैं,
जिनकी सभा में मुनियों का समूह रहता है।
जिनके नितम्ब पर्वतों को भी लज्जित करते हैं,
देवांगनाएँ जिनकी सेवा करती हैं।
जिनकी आँखें कमल के समान लालिमा लिए हैं
और जिनका रंग नवमेघ की भाँति श्यामल है।
वे भगवान त्रिलोचन (शिव) की अर्धांगिनी हैं।
🕉️ श्लोक २
कदंबवनवासिनीं कनकवल्लकीधारिणीं,
महार्हमणिहारिणीं मुखसमुल्लसद्वारुणीम् ।
दया विभव कारिणी विशद लोचनी चारिणी,
त्रिलोचन कुटुम्बिनी त्रिपुर सुंदरी माश्रये ॥२॥
भावार्थ :
मैं उस त्रिपुरसुन्दरी माता को स्मरण करता हूँ,
जो कदंबवन में वास करती हैं,
हाथों में स्वर्ण वीणा धारण करती हैं,
अमूल्य रत्नमालाओं से शोभित हैं।
जिनके मुख से वारुणी (मदिरा) की आभा झलकती है।
वे अनन्त दया की मूर्ति हैं, निर्मल नेत्रों वाली हैं
और भगवान शिव की परम प्रिय पत्नी हैं।
🕉️ श्लोक ३
कदंबवनशालया कुचभरोल्लसन्मालया,
कुचोपमितशैलया गुरुकृपालसद्वेलया ।
मदारुणकपोलया मधुरगीतवाचालया ,
कयापि घननीलया कवचिता वयं लीलया ॥३॥
भावार्थ :
त्रिपुरसुन्दरी माता कदंबवन की शोभा हैं।
उनके वक्षस्थल पर पुष्पमालाएँ लटकती हैं।
उनके स्तन पर्वतों के समान उन्नत हैं।
उनकी कृपा गुरु समान कल्याणकारी लहरें उत्पन्न करती है।
उनके कपोल मद से लाल हैं, वाणी मधुर गीत सी है,
और रूप घनश्यामल है।
मैं उनके अनुग्रह से सदा सुरक्षित रहता हूँ।
🕉️ श्लोक ४
कदंबवनमध्यगां कनकमंडलोपस्थितां,
षडंबरुहवासिनीं सततसिद्धसौदामिनीम् ।
विडंवितजपारुचिं विकचचंद्रचूडामणिं ,
त्रिलोचनकुटुंबिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥४॥
भावार्थ :
मैं उस त्रिपुरसुन्दरी की शरण लेता हूँ,
जो कदंबवन के मध्य विराजमान हैं।
जिनके समीप स्वर्ण कलश रखे हैं।
वे षट्चक्रों में वास करती हैं,
सदैव सिद्धियों की आभा बिखेरती हैं।
जिनकी छवि जपाकुसुम के समान लाल है
और चन्द्रमा से अधिक प्रकाशमान हैं।
वे त्रिलोचन शिव की अर्धांगिनी हैं।
🕉️ श्लोक ५
कुचांचितविपंचिकां कुटिलकुंतलालंकृतां ,
कुशेशयनिवासिनीं कुटिलचित्तविद्वेषिणीम् ।
मदारुणविलोचनां मनसिजारिसंमोहिनीं ,
मतंगमुनिकन्यकां मधुरभाषिणीमाश्रये ॥५॥
भावार्थ :
मैं उस माता की शरण लेता हूँ,
जिनकी वीणा उनके स्तनों से टिकी है।
जिनके घुँघराले केश सुशोभित हैं।
वे कुशासन पर स्थित रहती हैं
और दुष्ट चित्त वालों से घृणा करती हैं।
उनकी आँखें मद से लाल हैं,
वे कामदेव के शत्रु (शिव) को भी मोहित कर देती हैं।
वे मातंगी रूप हैं और उनकी वाणी अत्यंत मधुर है।
🕉️ श्लोक ६
स्मरेत्प्रथमपुष्प्णीं रुधिरबिन्दुनीलांबरां,
गृहीतमधुपत्रिकां मधुविघूर्णनेत्रांचलाम् ।
घनस्तनभरोन्नतां गलितचूलिकां श्यामलां,
त्रिलोचनकुटुंबिनीं त्रिपुरसुंदरीमाश्रये ॥६॥
भावार्थ :
ध्यान करते समय त्रिपुरसुन्दरी को प्रथम पुष्प (मूलशक्ति) के रूप में स्मरण करना चाहिए।
वे नील वस्त्र धारण करती हैं,
हाथ में मधु से भरा पात्र लिए हैं।
उनकी आँखें मत्त भँवरों जैसी चंचल हैं।
उनके स्तन अत्यन्त भरे और सुन्दर हैं,
चोटी खुली है और वे श्यामल वर्ण की हैं।
वे शिव की अर्धांगिनी हैं।
🕉️ श्लोक ७
सकुंकुमविलेपनामलकचुंबिकस्तूरिकां ,
समंदहसितेक्षणां सशरचापपाशांकुशाम् ।
असेष जनमोहिनी मरूण माल्य भुषाम्बरा,
जपाकुशुम भाशुरां जपविधौ स्मराम्यम्बिकाम ॥७॥
भावार्थ :
जप करते समय मैं उस अंबिका का स्मरण करता हूँ—
जो कुंकुम से लिप्त हैं,
केशों में कस्तूरी की सुगंध है,
दृष्टि मधुर मुस्कान से शोभित है।
जिनके हाथों में धनुष, बाण, पाश और अंकुश हैं।
वे सम्पूर्ण जगत को मोहित करती हैं,
लाल पुष्पमालाएँ और लाल वस्त्र धारण करती हैं,
जिनका रूप जपाकुसुम जैसा शोभायमान है।
🕉️ श्लोक ८
पुरम्दरपुरंध्रिकां चिकुरबंधसैरंध्रिकां ,
पितामहपतिव्रतां पटुपटीरचर्चारताम् ।
मुकुंदरमणीं मणिलसदलंक्रियाकारिणीं,
भजामि भुवनांबिकां सुरवधूटिकाचेटिकाम् ॥८॥
भावार्थ :
मैं उस भुवनेश्वरी का स्मरण करता हूँ,
जो इन्द्राणी (शची) जैसी ललनाओं से घिरी रहती हैं।
जिनकी सखियाँ उनके केशों का श्रृंगार करती हैं।
वे ब्रह्मा की पत्नी (सरस्वती) भी हैं,
वे विष्णु की पत्नी (लक्ष्मी) भी हैं।
मणियों से विभूषित हैं
और स्वर्ग की देवांगनाओं की अधिष्ठात्री नायिका हैं।
🔔 उपसंहार
इति श्रीमत्परमहंसपरिव्राजकाचार्यश्रीमच्छंकराचार्य विरचितं
त्रिपुरसुन्दरीस्तोत्रं संपूर्णम् ।
भावार्थ :
इस प्रकार जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य द्वारा रचित
त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् सम्पूर्ण हुआ।
जो भी इसे श्रद्धा और भक्ति से पढ़ता या सुनता है,
उसे माँ त्रिपुरसुन्दरी की अनन्त कृपा प्राप्त होती है।
🌸 श्री त्रिपुरसुन्दरी अष्टकम् पाठ विधि, नियम और लाभ 🌸
📜 पाठ नियम (Vidhi)
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समय –
- सूर्योदय के बाद प्रातःकाल या संध्या के समय इसका पाठ उत्तम है।
- विशेष रूप से शुक्रवार, पूर्णिमा और नवरात्रि के दिनों में इसका पाठ अत्यधिक फलदायी है।
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स्थान –
- स्वच्छ और शांत वातावरण में बैठकर पाठ करें।
- माँ त्रिपुरसुन्दरी का चित्र/यंत्र/प्रतिमा के सामने दीपक और धूप प्रज्वलित करें।
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आसन और दिशा –
- पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठें।
- कुशासन या स्वच्छ वस्त्र का आसन श्रेष्ठ है।
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संकल्प –
- माता को पुष्प, नैवेद्य और जल अर्पित करें।
- अपने मनोकामना का संकल्प लेकर स्तोत्र का पाठ करें।
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गणना –
- कम से कम १ बार अवश्य पढ़ें।
- यदि सम्भव हो तो ११ बार या २१ बार जप से पाठ करने पर अत्यधिक फल मिलता है।
🌺 पाठ का महत्व और लाभ
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आध्यात्मिक लाभ –
- साधक के भीतर की नकारात्मकता और भय नष्ट होते हैं।
- आत्मा में शांति, आनंद और दिव्यता आती है।
- ध्यान और साधना में प्रगति होती है।
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गृहस्थ जीवन में लाभ –
- पति–पत्नी के बीच प्रेम, मधुरता और सामंजस्य बढ़ता है।
- परिवार में सौभाग्य, समृद्धि और सुख स्थिर होता है।
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भौतिक लाभ –
- व्यापार, नौकरी और कार्यक्षेत्र में सफलता एवं उन्नति मिलती है।
- दरिद्रता और बाधाएँ दूर होती हैं।
- लक्ष्मी कृपा से धन–धान्य की वृद्धि होती है।
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विशेष लाभ –
- माता त्रिपुरसुन्दरी को “श्रीविद्या की अधिष्ठात्री” माना गया है।
- अतः इस स्तोत्र का पाठ करने से साधक को विद्या, वाणी की शक्ति और आकर्षण प्राप्त होता है।
- शत्रु नष्ट होते हैं और साधक चारों ओर से सुरक्षित रहता है।
🙏 संक्षेप में
🌸 जय माँ त्रिपुरसुन्दरी 🌸
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