"महाभारत की अमर कथा में जानिए कैसे श्रीकृष्ण की माया और अर्जुन के संकल्प से जयद्रथ का वध हुआ। जब भगवान साथ हों तो असंभव भी संभव हो जाता है।"
जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा
🔱 भूमिका : नियति, वरदान और भगवान् की योजना
🌞 जयद्रथ का जन्म और भविष्यवाणी
जब जयद्रथ का जन्म हुआ, तभी आकाशवाणी गूंजी —
“यह बालक क्षत्रियों में श्रेष्ठ और पराक्रमी होगा, परंतु अंत समय में कोई क्षत्रिय वीर क्रोधपूर्वक इसका मस्तक काटकर भूमि पर गिरा देगा।”
यह सुनकर उसके पिता वृद्धक्षत्र चिंतित हो उठे। पुत्र-स्नेह से व्याकुल होकर उन्होंने कहा —
“जो वीर मेरे पुत्र का मस्तक भूमि पर गिराएगा, उसी क्षण उसका सिर भी सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा।”
यह कहकर उन्होंने उसे राज्य सौंप दिया और स्वयं समन्तपञ्चक क्षेत्र में जाकर घोर तपस्या करने लगे।
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| जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा |
👑 वनवास के दौरान द्रौपदी-अपहरण का प्रसंग
परंतु इस अपमान ने उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला जला दी।
🕉️ जयद्रथ की तपस्या और वरदान
“तुम एक दिन युद्ध में अर्जुन को छोड़कर अन्य चार पाण्डवों को आगे बढ़ने से रोक सकोगे।”
यह वरदान ही आगे चलकर अभिमन्यु-वध का कारण बना। क्योंकि उसी दिन जयद्रथ ने चक्रव्यूह के द्वार पर खड़े होकर पाण्डवों को रोक लिया और वीर अभिमन्यु अकेले भीतर फँस गए।
🌅 अभिमन्यु-वध के बाद अर्जुन की प्रतिज्ञा
अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त होते ही अर्जुन का हृदय शोक और क्रोध से दग्ध हो उठा। उसने प्रतिज्ञा ली —
“यदि मैं कल सूर्यास्त तक जयद्रथ का वध न कर सका, तो अग्नि में प्रविष्ट हो जाऊँगा!”
यह सुनकर सम्पूर्ण कौरव-सेना भयभीत हो उठी। जयद्रथ की शूरता अब भय में परिवर्तित हो चुकी थी। वह मृत्यु से बचने के उपाय खोजने लगा।
⚔️ द्रोणाचार्य की रणनीति — शकटव्यूह
- भीष्म समान महारथी कर्ण,
- अश्वत्थामा,
- कृपाचार्य,
- भूरिश्रवा,
- और हजारों रथी, गजरोही, पैदल सैनिक।
इस विशाल व्यूह के द्वार पर मृत्यु का पहरा लगा था।
🔥 अर्जुन का प्रचंड पराक्रम और श्रीकृष्ण की सारथ्यता
भगवान् श्रीकृष्ण घोड़ों को कुशलता से हाँकते हुए अर्जुन को बार-बार प्रेरित करते रहे —
“पार्थ! समय शीघ्र बीत रहा है, जयद्रथ की मृत्यु तेरा धर्म है!”
🌑 भगवान् की माया और जयद्रथ-वध
कौरव-सेना हर्षित हो उठी —
“अब अर्जुन की प्रतिज्ञा अधूरी रह जाएगी!”
“अब पार्थ! यही वह क्षण है।”
🌄 वरदान की पूर्ति और नियति का चक्र
इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने जयद्रथ-वध के साथ ही वृद्धक्षत्र के वरदान की मर्यादा भी अक्षुण्ण रखी।
🌺 उपसंहार : जिसके साथ भगवान् हों
“जब साथ हों योगेश्वर श्रीकृष्ण, तब समय, नियति, वरदान या व्यूह — किसी की भी शक्ति भगवान् की इच्छा के आगे कुछ नहीं।”
🌷 संदेश
- भगवान् की कृपा और मार्गदर्शन से असंभव भी संभव हो जाता है।
- अहंकार, चाहे वरदान से ही क्यों न उत्पन्न हो, अंततः विनाश का कारण बनता है।
- और सबसे बड़ा सत्य — जिसके साथ भगवान् हों, उसके साथ विजय स्वयं चलती है।
“जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ पार्थ अर्जुन हैं — वहाँ विजय, समृद्धि और नीति सदा सुनिश्चित है।” 🌞
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