जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा

Sooraj Krishna Shastri
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"महाभारत की अमर कथा में जानिए कैसे श्रीकृष्ण की माया और अर्जुन के संकल्प से जयद्रथ का वध हुआ। जब भगवान साथ हों तो असंभव भी संभव हो जाता है।"

जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा


🔱 भूमिका : नियति, वरदान और भगवान् की योजना

सतयुग से लेकर कलियुग तक एक ही सत्य अटल है — “जिसके साथ भगवान् हों, उसके मार्ग में असंभव शब्द नहीं होता।”
महाभारत का यह प्रसंग इस सत्य का अद्भुत प्रमाण है। यह कथा है — जयद्रथ नामक सिंधुराज की, जिसकी नियति, वरदान, अहंकार और अंततः भगवान् श्रीकृष्ण की दिव्य लीला ने सब कुछ बदल दिया।


🌞 जयद्रथ का जन्म और भविष्यवाणी

जब जयद्रथ का जन्म हुआ, तभी आकाशवाणी गूंजी —

“यह बालक क्षत्रियों में श्रेष्ठ और पराक्रमी होगा, परंतु अंत समय में कोई क्षत्रिय वीर क्रोधपूर्वक इसका मस्तक काटकर भूमि पर गिरा देगा।”

यह सुनकर उसके पिता वृद्धक्षत्र चिंतित हो उठे। पुत्र-स्नेह से व्याकुल होकर उन्होंने कहा —

“जो वीर मेरे पुत्र का मस्तक भूमि पर गिराएगा, उसी क्षण उसका सिर भी सैकड़ों टुकड़ों में विभक्त हो जाएगा।”

यह कहकर उन्होंने उसे राज्य सौंप दिया और स्वयं समन्तपञ्चक क्षेत्र में जाकर घोर तपस्या करने लगे।

जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा
जिसके साथ भगवान हों – Shri Krishna & Arjun in Mahabharata | जयद्रथ वध की अद्भुत कथा

👑 वनवास के दौरान द्रौपदी-अपहरण का प्रसंग

पाण्डवों के वनवास काल में संयोगवश जयद्रथ का सामना द्रौपदी से हुआ। मोहवश उसने द्रौपदी का अपहरण कर लिया।
जब यह समाचार पाण्डवों को मिला, तो भीम और अर्जुन क्रोध से दहक उठे। उन्होंने जयद्रथ का पीछा किया, उसे पराजित किया और मार डालना चाहा, परन्तु युधिष्ठिर की दयालुता के कारण उसका जीवन बच गया।

परंतु इस अपमान ने उसके मन में प्रतिशोध की ज्वाला जला दी।


🕉️ जयद्रथ की तपस्या और वरदान

अपमान से व्याकुल जयद्रथ ने भगवान् शंकर की कठोर तपस्या की।
भोलेनाथ प्रसन्न हुए और वरदान दिया —

“तुम एक दिन युद्ध में अर्जुन को छोड़कर अन्य चार पाण्डवों को आगे बढ़ने से रोक सकोगे।”

यह वरदान ही आगे चलकर अभिमन्यु-वध का कारण बना। क्योंकि उसी दिन जयद्रथ ने चक्रव्यूह के द्वार पर खड़े होकर पाण्डवों को रोक लिया और वीर अभिमन्यु अकेले भीतर फँस गए।


🌅 अभिमन्यु-वध के बाद अर्जुन की प्रतिज्ञा

अभिमन्यु के वीरगति को प्राप्त होते ही अर्जुन का हृदय शोक और क्रोध से दग्ध हो उठा। उसने प्रतिज्ञा ली —

“यदि मैं कल सूर्यास्त तक जयद्रथ का वध न कर सका, तो अग्नि में प्रविष्ट हो जाऊँगा!”

यह सुनकर सम्पूर्ण कौरव-सेना भयभीत हो उठी। जयद्रथ की शूरता अब भय में परिवर्तित हो चुकी थी। वह मृत्यु से बचने के उपाय खोजने लगा।


⚔️ द्रोणाचार्य की रणनीति — शकटव्यूह

दुर्योधन की प्रार्थना पर द्रोणाचार्य ने जयद्रथ की रक्षा के लिए भयंकर शकटव्यूह की रचना की।
जयद्रथ को सेना के छः कोस पीछे रखा गया, जबकि उसके आगे थे —

  • भीष्म समान महारथी कर्ण,
  • अश्वत्थामा,
  • कृपाचार्य,
  • भूरिश्रवा,
  • और हजारों रथी, गजरोही, पैदल सैनिक।

इस विशाल व्यूह के द्वार पर मृत्यु का पहरा लगा था।


🔥 अर्जुन का प्रचंड पराक्रम और श्रीकृष्ण की सारथ्यता

दूसरे दिन अर्जुन अपने सारथी भगवान् श्रीकृष्ण के साथ रणभूमि में उतरे।
उनका लक्ष्य था — सूर्यास्त से पहले जयद्रथ-वध।
अर्जुन ने अपने गांडीव से एक-एक करके कौरवों के सिर काटने आरंभ कर दिए। रथों की गति बिजली सी थी।
शत्रु के हर प्रहार का उत्तर वज्रतुल्य बाणों से दिया जा रहा था।

भगवान् श्रीकृष्ण घोड़ों को कुशलता से हाँकते हुए अर्जुन को बार-बार प्रेरित करते रहे —

“पार्थ! समय शीघ्र बीत रहा है, जयद्रथ की मृत्यु तेरा धर्म है!”


🌑 भगवान् की माया और जयद्रथ-वध

युद्ध तीव्रतम रूप ले चुका था। परंतु सूर्यास्त होने में अब केवल कुछ क्षण शेष थे।
जयद्रथ सुरक्षित था, और अर्जुन अब भी उसके पास नहीं पहुँच पाए थे।

तभी भगवान् श्रीकृष्ण ने अपनी योगमाया से सूर्य को ढक दिया।
आकाश अंधकारमय हो उठा — सबने समझा कि सूर्यास्त हो गया!

कौरव-सेना हर्षित हो उठी —

“अब अर्जुन की प्रतिज्ञा अधूरी रह जाएगी!”

जयद्रथ उत्साह में अपने रथ से निकल आया और विजयी मुद्रा में सूर्य की ओर देखने लगा।
तभी श्रीकृष्ण ने संकेत किया —

“अब पार्थ! यही वह क्षण है।”

अर्जुन ने तुरंत गांडीव तानकर वज्रसमान बाण छोड़ा —
वह बाण जयद्रथ का सिर काटकर आकाश में ले गया।


🌄 वरदान की पूर्ति और नियति का चक्र

श्रीकृष्ण ने उस बाण को इस प्रकार नियोजित किया कि वह सिर समन्तपञ्चक क्षेत्र पहुँचा,
जहाँ जयद्रथ के पिता वृद्धक्षत्र संध्योपासन कर रहे थे।

बाण ने जाकर जयद्रथ का सिर उनकी गोद में रख दिया।
वे अचेत हो गए — सिर भूमि पर गिरा, और उसी क्षण वरदान की शर्त अनुसार उनका भी अंत हो गया।

इस प्रकार भगवान् श्रीकृष्ण ने जयद्रथ-वध के साथ ही वृद्धक्षत्र के वरदान की मर्यादा भी अक्षुण्ण रखी।


🌺 उपसंहार : जिसके साथ भगवान् हों

संपूर्ण युद्धभूमि पर सन्नाटा छा गया। अर्जुन ने प्रतिज्ञा निभाई — सूर्यास्त से पूर्व जयद्रथ मारा गया।
सबने देख लिया कि —

“जब साथ हों योगेश्वर श्रीकृष्ण, तब समय, नियति, वरदान या व्यूह — किसी की भी शक्ति भगवान् की इच्छा के आगे कुछ नहीं।”


🌷 संदेश

  • भगवान् की कृपा और मार्गदर्शन से असंभव भी संभव हो जाता है।
  • अहंकार, चाहे वरदान से ही क्यों न उत्पन्न हो, अंततः विनाश का कारण बनता है।
  • और सबसे बड़ा सत्य — जिसके साथ भगवान् हों, उसके साथ विजय स्वयं चलती है।

🌿💫 राधे राधे जय श्रीकृष्णा 💫🌿
🕉️ “यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥”
(महाभारत — भीष्मपर्व 18.78)

“जहाँ योगेश्वर श्रीकृष्ण हैं और जहाँ पार्थ अर्जुन हैं — वहाँ विजय, समृद्धि और नीति सदा सुनिश्चित है।” 🌞


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