Ram Charan Pankaj Ur Dharahu Meaning: रावण के विनाश का असली कारण | Life Lessons from Sundarkand

Sooraj Krishna Shastri
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Sundarkand Hidden Truth: जानिए कैसे हनुमान जी ने रावण के अहंकार (Ego) और मानसिक रोगों का उपचार करने का प्रयास किया। Read the spiritual meaning of 'Ram Charan Pankaj Ur Dharahu.

रावण का असली रोग क्या था?

बाहर से समृद्ध रावण, अंदर से क्यों जल रहा था? सुंदरकांड का यह प्रसंग केवल कहानी नहीं, बल्कि हमारे मन के रोगों (काम, क्रोध, अहंकार) का इलाज है।

पढ़िए कैसे सद्गुरु हनुमान जी ने रावण को 'राम नाम' की औषधि दी।

Ram Charan Pankaj Ur Dharahu Meaning: रावण के विनाश का असली कारण | Life Lessons from Sundarkand

Ram Charan Pankaj Ur Dharahu Meaning: रावण के विनाश का असली कारण | Life Lessons from Sundarkand
Ram Charan Pankaj Ur Dharahu Meaning: रावण के विनाश का असली कारण | Life Lessons from Sundarkand


विषय : रावण का मानसिक रोग और सद्गुरु हनुमान की दीक्षा (एक आध्यात्मिक विश्लेषण)


1. प्रस्तावना : हितकारी उपदेश – सुंदरकांड का मर्म

हनुमान जी केवल सीता माँ की खोज करने नहीं, बल्कि रावण को अंतिम चेतावनी और सही राह दिखाने भी गए थे। वे रावण को समझाते हुए कहते हैं—

“राम चरन पंकज उर धरहू।
लंका अचल राजु तुम्ह करहू॥
रिषि पुलस्ति जसु बिमल मयंका।
तेहि ससि महुँ जनि होहु कलंका॥”

भावार्थ :
हे रावण! तुम श्री राम के चरण कमलों को अपने हृदय में धारण करो, तभी तुम लंका का अचल राज्य भोग सकोगे। तुम्हारे कुलपिता ऋषि पुलस्त्य का यश निर्मल चंद्रमा के समान है, तुम अपने पापों से उस चंद्रमा में कलंक मत बनो।


2. बाह्य समृद्धि बनाम आंतरिक दरिद्रता

संसार की दृष्टि में रावण परम वैभवशाली था। सोने की लंका, अपार शक्ति और तीनों लोकों पर विजय। लेकिन आध्यात्मिक दृष्टि से वह एक ‘रोगी’ था।

विरोधाभास :

बाहर से सुखी दिखने वाले लोग अक्सर भीतर से अशांति की आग में जलते हैं। रावण के पास सब कुछ था, पर ‘शांति’ नहीं थी।

तमोगुण का प्रभाव :

उसके भीतर तमोगुण की अधिकता थी, जिसने काम, क्रोध और अहंकार को जन्म दिया। ये विकार ही उसके जीवन में सच्चे सुख के अभाव का कारण बने।


3. हनुमान जी : एक आध्यात्मिक चिकित्सक (वैद्य) के रूप में

प्रभु श्रीराम की करुणा देखिए—उन्होंने रावण के वध से पहले उसके ‘उपचार’ का प्रयास किया।

उद्देश्य :

भगवान राम चाहते थे कि युद्ध अंतिम विकल्प हो। यदि रावण का मानसिक रोग (अहंकार) ठीक हो जाए, तो न केवल उसका जीवन बचेगा, बल्कि निर्दोष प्रजा और सैनिकों के प्राण भी बच जाएंगे।

वैद्य का चयन :

भगवान शंकर ने हलाहल विष पीकर संसार की रक्षा की थी। उन्हीं के अंशावतार हनुमान जी हैं। अतः राम जी ने रावण के विषैले अहंकार को दूर करने का दायित्व हनुमान जी (रूद्रावतार) को सौंपा।


4. रोग का निदान : राम और काम का द्वंद्व

हनुमान जी ने रावण की बीमारी की जड़ पकड़ी—‘कामना’ (Lust/Desire)। उन्होंने स्पष्ट सिद्धांत रखा—

“जहाँ राम तहँ काम नहिं,
जहाँ काम नहिं राम।
तुलसी कबहुँ कि रहि सकत,
रबि रजनी एक ठाम॥”

विस्तार :

जैसे सूर्य (प्रकाश) और रात्रि (अंधकार) एक साथ नहीं रह सकते, वैसे ही हृदय में राम (दिव्यता) और काम (वासना) एक साथ नहीं रह सकते।
रावण चाहता था कि वह राम से बैर भी रखे और सुखी भी रहे, जो कि असंभव था। राम को हृदय में धारण करने से ही ‘परमपद’ और ‘अविनाशी सुख’ मिलता है, जो रावण को समझ नहीं आया।


5. अहंकार : सबसे घातक रोग (डमरुआ / घेंघा)

रावण का सबसे बड़ा रोग ‘अहंकार’ (Ego) था। तुलसीदास जी और हनुमान जी ने इसकी तुलना घेंघा रोग (Goiter) से की है।

लक्षण :

जैसे घेंघा रोग में गला सूज जाता है और रोगी टेढ़ा होकर चलता है, वैसे ही अहंकारी व्यक्ति अकड़ कर चलता है। उसे झुकना नहीं आता।

हनुमान जी की सलाह :

“मोहमूल बहु सूल प्रद त्यागहु तम अभिमान।”

(हे रावण! यह अभिमान मोह की जड़ है और बहुत पीड़ा देने वाला है, इसका त्याग करो।)

रोगी की प्रतिक्रिया :

अहंकार ऐसा रोग है जिसमें रोगी को कड़वी दवा (सच्ची सलाह) अच्छी नहीं लगती। रावण हँसकर वैद्य (हनुमान जी) का ही अपमान करता है—

“बोला बिहसि महा अभिमानी।
मिला हमहि कपि गुर बड़ ग्यानी॥”


6. मृत्यु का साक्षात्कार और मतिभ्रम

जब रोगी (रावण) दवा (राम नाम) लेने से मना कर देता है और डॉक्टर (हनुमान जी) का अपमान करता है, तो वैद्य समझ जाता है कि अब इसकी मृत्यु निश्चित है।

मृत्यु का दृश्य :

रावण हनुमान जी को डराने की कोशिश करता है, लेकिन हनुमान जी को रावण के पीछे साक्षात ‘काल’ खड़ा दिखाई देता है।

अंतिम सत्य :

रावण कहता है कि “मृत्यु तेरे निकट आई है”, तब हनुमान जी मुस्कुरा कर कहते हैं—

“उलटा होइ है कह हनुमाना।
मतिभ्रम तोर प्रकट मैं जाना॥”

(तेरी बुद्धि भ्रमित हो गई है। मृत्यु मेरे लिए नहीं, तेरे सिर पर मंडरा रही है। वह तो मुझसे पूछ रही है कि अभी संहार करूँ या प्रतीक्षा करूँ?)


7. क्रोध और विनाश : विभीषण का निष्कासन

मानसिक रोगों (काम, क्रोध, लोभ) की श्रृंखला में ‘क्रोध’ ने रावण का सर्वनाश निश्चित कर दिया।

विभीषण का अपमान :

क्रोधांध होकर रावण ने अपने हितैषी भाई विभीषण को लात मारकर निकाल दिया।

नियति का खेल :

यदि रावण क्रोध न करता, तो विभीषण राम की शरण में न जाते।
यदि विभीषण न जाते, तो राम जी को रावण की नाभि में छिपे अमृत का रहस्य पता न चलता।
रावण का क्रोध ही उसकी मृत्यु का अस्त्र बना।


8. उपसंहार : जीवन का शाश्वत संदेश

यह प्रसंग केवल रावण की कहानी नहीं, बल्कि हर उस मनुष्य के लिए चेतावनी है जो भौतिक सुखों में लिप्त होकर अहंकार में जीता है। हनुमान जी का संदेश शाश्वत है—

“काम क्रोध मद लोभ सब
नाथ नरक के पंथ।
सब परिहरि रघुबीरहि भजहु
भजहिं जेहि संत॥”

निष्कर्ष :

काम, क्रोध, मद और लोभ—ये सब नरक के द्वार हैं।
हे जीव! इन सबको त्यागकर भगवान श्री राम का भजन कर, जैसा कि संत और ज्ञानी जन करते हैं।
यही परम शांति और मोक्ष का एकमात्र मार्ग है।


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