Samaveda Adhyaya 3 (Aindra Parva): Mantras 61-70 with Hindi Meaning | सामवेद - ऐंद्र पर्व

Sooraj Krishna Shastri
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Read Samaveda Adhyaya 3 (Aindra Parva) Mantras 61-70 with simple Hindi meaning. सामवेद के ऐंद्र पर्व (पहला खंड) का सरल हिंदी अनुवाद और भावार्थ यहाँ पढ़ें।

Explore the mantras of Samaveda Chapter 3 (Aindra Parva). This post covers Mantras 61-70 dedicated to Lord Indra with detailed Hindi translation (हिंदी अर्थ).

Samaveda Adhyaya 3 (Aindra Parva): Mantras 61-70 with Hindi Meaning | सामवेद - ऐंद्र पर्व

Samaveda Adhyaya 3 (Aindra Parva): Mantras 61-70 with Hindi Meaning | सामवेद - ऐंद्र पर्व
Samaveda Adhyaya 3 (Aindra Parva): Mantras 61-70 with Hindi Meaning | सामवेद - ऐंद्र पर्व


📖 सामवेद

अध्याय ३

ऐंद्र पर्व – प्रथम खंड
श्लोक क्रमांक: 61 / 318


🔹 विषय-सूत्र

इंद्र देव की स्तुति, यज्ञ में आवाहन, धन–बल–बुद्धि–रक्षा की कामना


🔸 श्लोक 1

मंत्र:
अभि त्वा शूर नोनुमो दुग्धा इव धेनवः ।
ईशानमस्य जगतः स्वर्दशमीशानमिन्द्र तस्थुषः ॥

भावार्थ:
हे पराक्रमी इंद्र! आप इस संपूर्ण जड़–चेतन जगत के स्वामी हैं।
जैसे दूध से भरी गायें अपने बछड़ों के पास जाने को आतुर रहती हैं,
वैसे ही हम श्रद्धा और उत्कंठा से आपकी शरण में आते हैं।


🔸 श्लोक 2

मंत्र:
त्वामिद्धि हवामहे सातौ वाजस्य कारवः ।
त्वां वृत्रेष्विन्द्र सत्पतिं नरस्त्वां काष्ठास्वर्वतः ॥

भावार्थ:
हे इंद्र! यज्ञकर्ता आपको हवि-दान के लिए आमंत्रित करते हैं।
आप सज्जनों के रक्षक हैं।
सभी युद्धों और संघर्षों में हम आपकी ही सहायता की कामना करते हैं।


🔸 श्लोक 3

मंत्र:
अभि प्र वः सुराधसमिन्द्रमर्च यथा विदे ।
यो जरितृभ्यो मघवा पुरूवसुः सहस्रेणेव शिक्षति ॥

भावार्थ:
हे यजमानो!
इंद्र महान धनदाता हैं।
वे अपने स्तोत्रकारों को अनेक प्रकार के धन प्रदान करते हैं।
अतः सर्वभाव से इंद्र की उपासना करो।


🔸 श्लोक 4

मंत्र:
तं वो दस्ममृतीषहं वसोर्मन्दानमन्धसः ।
अभि वत्सं न स्वसरेषु धेनव इन्द्रं गीर्भिर्नवामहे ॥

भावार्थ:
जैसे गायें बछड़े को देखकर प्रसन्न होकर रंभाती हैं,
वैसे ही सोमरस से तृप्त इंद्र की स्तुति करो।
वे दुःखों और शत्रुओं का नाश करने वाले हैं।


🔸 श्लोक 5

मंत्र:
तरोभिर्वा विदद्वसुमिन्द्र सबाध ऊतये ।
बृहद्गायन्तः सुतसोमे अध्वरे हुवे भरं न कारिणम् ॥

भावार्थ:
इंद्र के तीव्रगामी अश्व हैं।
वे अपार धन देने वाले तथा बाधाओं से रक्षा करने वाले हैं।
जैसे बालक माता-पिता को पुकारता है,
वैसे ही हम बृहद्साम गाते हुए इंद्र को बुलाते हैं।


🔸 श्लोक 6

मंत्र:
तरणिरित्सिषासति वाजं पुरन्ध्या युजा ।
आ व इन्द्रं पुरुहूतं नमे गिरा नेमिं तष्टटेव सुद्रुवम् ॥

भावार्थ:
इंद्र तारने वाले हैं।
हम बुद्धि के सहयोग से अन्न प्राप्त करना चाहते हैं।
जैसे बढ़ई पहिए को गाड़ी के अनुकूल बनाता है,
वैसे ही हम स्तुति से इंद्र को अपने अनुकूल करना चाहते हैं।


🔸 श्लोक 7

मंत्र:
पिबा सुतस्य रसिनो मत्स्वा न इन्द्र गोमतः ।
आपिर्नो बोधि सधमाद्ये वृधेऽस्मां अवन्तु ते धियः ॥

भावार्थ:
हे इंद्र!
गाय के दूध से मिश्रित सोमरस का पान कीजिए।
प्रसन्न होकर हमारे बंधु बनिए।
हमें उन्नति का मार्ग दिखाइए।
आपकी दिव्य बुद्धि हमारी रक्षा करे।


🔸 श्लोक 8

मंत्र:
त्वा होहि चेरवे विदा भगं वसुत्तये ।
उद्वावृषस्व मघवन् गविष्टय उदिन्द्राश्वमिष्टये ॥

भावार्थ:
हे इंद्र!
धन प्रदान करने हेतु पधारिए।
हमें सदाचार का मार्ग दिखाइए।
हमें गोधन तथा अश्वधन प्रदान कीजिए।


🔸 श्लोक 9

मंत्र:
न हि वश्वरमं च न वसिष्ठः परिम सते ।
अस्माकमद्य मरुतः सुते सचा विश्वे पिबन्तु कामिनः ॥

भावार्थ:
हे मरुद्गणो!
वसिष्ठ ऋषि छोटे-बड़े सभी देवों की स्तुति करते हैं।
आज हमारे सोमयज्ञ में आप सब एकत्र होकर
सोमरस का पान करें।


🔸 श्लोक 10

मंत्र:
मा चिदन्यद्वि सत सखायो मा रिषण्यत ।
इन्द्रमित्स्तोता वृषण सचा सुते मुहुरुक्था च सत ॥

भावार्थ:
हे यजमानो!
इंद्र के अतिरिक्त किसी अन्य देव की स्तुति न करो।
व्यर्थ परिश्रम मत करो।
सोमयज्ञ में बलशाली इंद्र की ही
बार-बार स्तुति और प्रार्थना करो।


🔚 समापन भाव

यह संपूर्ण सूक्त इंद्र-भक्ति, यज्ञीय चेतना,
धन-बल-बुद्धि-रक्षा और एकाग्र उपासना का आदर्श प्रस्तुत करता है।
सामवेद में यह ऐंद्र पर्व गायन, सामराग और भावपूर्ण स्तुति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।


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