पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986), जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते / प्रयास मोंट्रीयल प्रोटोकॉल, रियो सम्मलेन, जैव विविधता सम्मेलन, क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता, अंतरराष्ट्रीय सौर संधि

Sooraj Krishna Shastri
By -
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986), जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते / प्रयास मोंट्रीयल प्रोटोकॉल, रियो सम्मलेन आदि। UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT VII
पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986), जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते / प्रयास मोंट्रीयल प्रोटोकॉल, रियो सम्मलेन आदि। UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT VII


पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम (1986), जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना, अन्तर्राष्ट्रीय समझौते / प्रयास मोंट्रीयल प्रोटोकॉल, रियो सम्मलेन, जैव विविधता सम्मेलन, क्योटो प्रोटोकॉल, पेरिस समझौता, अंतरराष्ट्रीय सौर संधि

UGC NET/JRF,PAPER I,UNIT IX,POINT VI,

1. पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 – विस्तृत विश्लेषण

पृष्ठभूमि

  • 1972 में स्टॉकहोम सम्मेलन के बाद भारत में पर्यावरण संरक्षण के लिए कानूनी आधार मजबूत करने की आवश्यकता महसूस हुई।
  • विभिन्न प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम (जैसे वायु प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1981, जल प्रदूषण नियंत्रण अधिनियम 1974) के बावजूद व्यापक और समन्वित पर्यावरण संरक्षण नीति नहीं थी।
  • इस कमी को पूरा करने के लिए पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम 1986 बनाया गया।

प्रमुख प्रावधान

  • केंद्रीय सरकार का अधिकार: अधिनियम केंद्रीय सरकार को पर्यावरण के संरक्षण के लिए नियम, आदेश, दिशा-निर्देश जारी करने का व्यापक अधिकार देता है।
  • प्रदूषण नियंत्रण: वायु, जल, ध्वनि प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए आवश्यक कदम उठाने का आदेश देने का अधिकार।
  • पर्यावरणीय आपातकाल: गंभीर पर्यावरणीय नुकसान की स्थिति में तत्काल रोकथाम के लिए विशेष शक्तियाँ।
  • पर्यावरणीय जांच: परियोजनाओं पर पर्यावरणीय प्रभाव आकलन (EIA) कराना अनिवार्य।
  • दंड व्यवस्था: नियमों के उल्लंघन पर आर्थिक दंड, जेल की सजा।

महत्त्व

  • यह अधिनियम पर्यावरण संरक्षण का आधार स्तम्भ है, जिसके तहत विभिन्न नियम (जैसे पर्यावरणीय प्रभाव आकलन नियम 1994) बनाए गए।
  • इसके तहत पर्यावरणीय मुद्दों को कानूनी रूप से प्रभावी बनाकर संरक्षण की व्यवस्था हुई।

2. जलवायु परिवर्तन संबंधी राष्ट्रीय कार्य योजना (NAPCC)

पृष्ठभूमि

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को देखते हुए भारत सरकार ने 2008 में NAPCC जारी किया।
  • इसका उद्देश्य आर्थिक विकास के साथ पर्यावरणीय संरक्षण सुनिश्चित करना।

प्रमुख मिशन

  • राष्ट्रीय सौर मिशन (NSM): सौर ऊर्जा के उत्पादन को बढ़ावा देकर जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करना।
  • राष्ट्रीय ऊर्जा दक्षता मिशन: ऊर्जा बचत को प्रोत्साहित करना।
  • राष्ट्रीय जल मिशन: जल संरक्षण, पुनः उपयोग और कुशल जल प्रबंधन।
  • राष्ट्रीय हरित भारत मिशन: वन क्षेत्र की पुनरुद्धार एवं संरक्षण।
  • राष्ट्रीय जैव ईंधन मिशन: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा।
  • राष्ट्रीय मिशन फॉर सस्टेनेबल एग्रिकल्चर: कृषि में जलवायु अनुकूल तकनीकें।
  • राष्ट्रीय मिशन ऑन एसेसमेंट ऑफ क्लाइमेट चेंज: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का आकलन।

प्रभाव और चुनौतियां

  • यह योजना भारत को वैश्विक जलवायु लक्ष्यों से जोड़ती है।
  • स्थानीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास का संतुलन बनाना चुनौती।
  • मिशनों का प्रभावी क्रियान्वयन एवं वित्तीय संसाधनों की उपलब्धता जरूरी।

3. अन्तर्राष्ट्रीय समझौते / प्रयास

मोंट्रीयल प्रोटोकॉल (1987)

  • प्रमुख लक्ष्य: ओजोन परत को नुकसान पहुंचाने वाले CFCs, Halons आदि का उत्पादन और उपयोग प्रतिबंधित करना।
  • वैश्विक प्रभाव: ओजोन परत की क्षति की गति धीमी हुई और धीरे-धीरे सुधार के संकेत मिले।
  • भारत की भूमिका: भारत ने इस प्रोटोकॉल को स्वीकार करते हुए CFCs के उत्पादन और उपयोग में कटौती की।

रियो सम्मेलन (1992)

  • प्रमुख दस्तावेज:
    • एजेंडा 21 – सतत विकास के लिए एक व्यापक कार्य योजना।
    • संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज (UNFCCC) – जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए आधार।
    • कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डाइवर्सिटी (CBD) – जैव विविधता संरक्षण।
  • भारत की भूमिका: रियो सम्मेलन में भारत ने सतत विकास और गरीबी उन्मूलन पर बल दिया।

जैव विविधता सम्मेलन (CBD)

  • तीन मुख्य उद्देश्य:
    • जैव विविधता का संरक्षण।
    • जैविक संसाधनों का सतत उपयोग।
    • उपयोग से मिलने वाले लाभों का न्यायसंगत वितरण।
  • भारत की पहल: जैव विविधता अधिनियम 2002 के माध्यम से इसे कार्यान्वित किया।

क्योटो प्रोटोकॉल (1997)

  • मुख्य तत्व: औद्योगिक देशों को ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में 5% की कटौती करनी थी।
  • भारत की स्थिति: भारत जैसे विकासशील देशों को उत्सर्जन कटौती से छूट दी गई।
  • महत्त्व: पहली बार वैश्विक स्तर पर उत्सर्जन कटौती के लिए बाध्यकारी लक्ष्य।

पेरिस समझौता (2015)

  • मुख्य लक्ष्य: ग्लोबल वार्मिंग को 2 डिग्री सेल्सियस से नीचे रखना और प्रयास 1.5 डिग्री तक सीमित करना।
  • राष्ट्रीय निर्धारित योगदान (NDCs): सभी देशों को अपनी उत्सर्जन कटौती की योजना प्रस्तुत करनी होती है।
  • भारत की भूमिका: 2070 तक नेट-जीरो उत्सर्जन का लक्ष्य, नवीकरणीय ऊर्जा का बड़े पैमाने पर विकास।

अंतरराष्ट्रीय सौर संधि (ISA)

  • मुख्य उद्देश्य:
    • सौर ऊर्जा का वैश्विक प्रचार-प्रसार।
    • सदस्य देशों के बीच तकनीकी, वित्तीय सहयोग।
    • सौर उष्णकटिबंधीय देशों के लिए विशेष अवसर।
  • भारत की भूमिका: ISA का संस्थापक और सक्रिय सदस्य, इसे वैश्विक स्वच्छ ऊर्जा परिवर्तन का हथियार माना जाता है।

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!