संस्कृत श्लोक "गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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संस्कृत श्लोक "गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

🙏 जय श्रीराम 🌷 सुप्रभातम् 🙏
आइए इस प्रेरणास्पद श्लोक का संस्कृत श्लोक, अंग्रेज़ी ट्रांसलिटरेशन, हिन्दी अनुवाद, व्याकरणिक विश्लेषण, आधुनिक संदर्भ, और एक संवादात्मक नीति-कथा सहित विस्तृत विश्लेषण करते हैं।


🌿 संस्कृत श्लोक:

गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि।
प्रासादादपि खट्वार्धं शेषं परविभूतये॥


🔤 Transliteration (IAST):

Gośatād api gokṣīraṁ prasthaṁ grāmaśatād api।
Prāsādād api khaṭvārdhaṁ śeṣaṁ paravibhūtaye॥


🇮🇳 हिन्दी अनुवाद:

सौ गायों से (भी अधिक मूल्यवान) एक प्रस्थ (मात्रा) दूध है।
सौ गाँवों से (भी अधिक महत्वपूर्ण) एक छोटा-सा टुकड़ा भूमि है।
राजमहल से (भी अधिक आवश्यक) बिस्तर का आधा भाग है।
बाकी सब कुछ तो केवल दूसरों की संपत्ति या उपयोग के लिए ही होता है।
संस्कृत श्लोक "गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण



🧠 व्याकरणिक विश्लेषण:

पद रूप प्रकार अर्थ
गोशतात् पञ्चमी विभक्ति पुल्लिङ्ग सौ गायों से
गोक्षीरम् द्वितीया एकवचन नपुंसकलिङ्ग गाय का दूध
प्रस्थम् द्वितीया एकवचन पुल्लिङ्ग प्रस्थ (प्राचीन मात्रा – लगभग 640 मि.ली.)
ग्रामशतात् पञ्चमी विभक्ति पुल्लिङ्ग सौ गाँवों से
प्रासादात् पञ्चमी विभक्ति पुल्लिङ्ग महल से
खट्वार्धम् द्वितीया एकवचन पुल्लिङ्ग खाट (बिस्तर) का आधा भाग
शेषम् प्रथमा/द्वितीया एकवचन नपुंसकलिङ्ग शेष, बाकी
परविभूतये चतुर्थी एकवचन स्त्रीलिङ्ग दूसरों की संपत्ति हेतु, दूसरों के ऐश्वर्य हेतु

🪔 भावार्थ / तात्त्विक दृष्टिकोण:

यह नीति श्लोक जीवन के वास्तविक उपयोगिता सिद्धांत को दर्शाता है।

  • मात्र संपत्ति (गायों, गाँवों, महलों) का होना उपयोगी नहीं, जो व्यावहारिक रूप से लाभप्रद हो वही मूल्यवान है।
  • गायें बहुत हों पर यदि दूध न मिले, तो उनका क्या लाभ?
  • गाँव बहुत हों, पर रहने को भूमि न हो तो बेकार है।
  • महल हो, पर सोने को स्थान न मिले तो वह वैभव व्यर्थ है।
  • अंततः कहा गया कि अतिरिक्त संपत्ति तो केवल दूसरों के लिए दिखावा या उपभोग का माध्यम बनती है।

🌍 आधुनिक सन्दर्भ:

इस श्लोक की प्रासंगिकता आज के भोगवादी समाज में अत्यंत गहरी है –

  • वास्तविक उपभोग बनाम प्रदर्शन का भेद स्पष्ट किया गया है।
  • बहुत-सी चीज़ें आज लोग संग्रह करते हैं, परंतु उनसे आनंद या उपयोग नहीं लेते
  • यह श्लोक "मिनिमलिज़्म" (सादा जीवन – उच्च विचार) की संकल्पना को प्राचीन नीति के रूप में दर्शाता है।

🎭 संवादात्मक नीति-कथा:

शीर्षक: "महल से बड़ा खाट का कोना"

👦 शिष्य (युवक): गुरुदेव! मेरा मित्र आज एक बड़ा महल खरीदकर बहुत प्रसन्न है। क्या वास्तव में समृद्धि का यही प्रतीक है?

🧙‍♂️ गुरु: बेटा, महल होना बुरा नहीं... पर क्या वह उसमें चैन से सो पाता है?

👦 शिष्य: नहीं गुरुदेव! वह कहता है कि व्यस्तता और चिंता के कारण उसे नींद नहीं आती।

🧙‍♂️ गुरु (मुस्कुराते हुए): तब सुनो –
"गोशतादपि गोक्षीरं प्रस्थं ग्रामशतादपि।
प्रासादादपि खट्वार्धं शेषं परविभूतये॥"

👦 शिष्य: इसका अर्थ?

🧙‍♂️ गुरु: सौ गायों से एक प्रस्थ दूध श्रेष्ठ है; सौ गाँवों से एक कोना भूमि श्रेष्ठ है; और राजमहल से भी आधा बिस्तर अधिक कीमती है – क्योंकि वह सुख देता है। बाकी सब दिखावे या दूसरों के लाभ के लिए है।

👦 शिष्य: गुरुदेव! अब समझ में आया – "जो हमें उपयोगी है, वही हमारा वैभव है।"


📚 नैतिक शिक्षा:

  • संपत्ति की मात्रा नहीं, उसकी उपयोगिता महत्व रखती है।
  • दिखावे के वैभव से बेहतर है वास्तविक सुविधा और आत्मशांति।
  • जो चीज़ आपके जीवन को सरल और सुखद बनाए, वही असली "धन" है।

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