संस्कृत श्लोक "तावद् भयाद्धि भेतव्यं यावद्भयमनागतम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
🌸 सुप्रभातम्।🙏 जय श्रीराम।
प्रस्तुत श्लोक नीति, साहस और व्यवहारिक जीवन-दर्शन से परिपूर्ण है। आइए इसका क्रमबद्ध विस्तृत विश्लेषण करें:
🔸 1. संस्कृत श्लोक:
तावद् भयाद्धि भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।
आगतं तु भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यमभीतवत् ॥
🔸 2. English Transliteration:
Tāvad bhayād dhi bhetavyaṁ yāvad bhayam anāgatam।
Āgataṁ tu bhayaṁ vīkṣya prahartavyam abhītavat॥
🔸 3. हिन्दी अनुवाद (भावार्थ):
जब तक भय (या संकट) सामने न आया हो, तब तक उससे डरना उचित है।
लेकिन जब वह भय सामने उपस्थित हो जाए, तब उसे देखकर निर्भीकता से उस पर प्रहार करना चाहिए।
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संस्कृत श्लोक "तावद् भयाद्धि भेतव्यं यावद्भयमनागतम्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण |
🔸 4. व्याकरणात्मक विश्लेषण:
पद | प्रकार | रूप | अर्थ |
---|---|---|---|
तावत् | अव्यय | — | उतनी अवधि तक / जब तक |
भयात् | पुं. प्रातिपदिक | पञ्चमी विभक्ति, एकवचन | भय से |
हि | निपात | — | निश्चयार्थक (निश्चयपूर्वक) |
भेतव्यम् | कृदन्त | भावे क्तव्यप्रत्यय | डरना चाहिए |
यावत् | सम्बन्धबोधक अव्यय | — | जब तक |
भयम् | नपुं. लिंग | प्रथमा एकवचन | भय |
अनागतम् | विशेषण | कृतप्रत्यय युक्त | जो नहीं आया है |
आगतम् | कृतप्रत्यय | गत: → आगतम् | जो आ चुका है |
तु | निपात | — | परंतु |
वीक्ष्य | कृदन्त | लिट् लकार, भावे | देखकर |
प्रहर्तव्यम् | कृदन्त | तव्य-प्रत्यय | प्रहार करना चाहिए |
अभीतवत् | विशेषण | उपमान रूप | निर्भय के समान |
🔸 5. आधुनिक संदर्भ में अर्थ:
इस श्लोक का सन्देश यह है कि:
- पूर्व-सावधानी रखना बुद्धिमानी है, यानी जब संकट दूर हो तो उससे डरना और उपाय करना उचित है।
- परंतु संकट सामने हो तब डरकर भागना नहीं, धैर्यपूर्वक और साहसपूर्वक उसका सामना करना चाहिए।
यह नीति जोखिम प्रबंधन, सैन्य रणनीति, व्यक्तिगत जीवन और प्रबंधनशास्त्र सभी क्षेत्रों में लागू होती है।
🔸 6. संवादात्मक नीति कथा:
शीर्षक: "राजा और सिंह का भय"
राजा विक्रमसेन को खबर मिली कि जंगल में एक भयंकर सिंह उसके गाँव की ओर बढ़ रहा है। मंत्री बोले — “राजन्! हमें अभी से तैयारी करनी चाहिए।” राजा बोला — “सिंह अभी तो दूर है, डरने की क्या बात?”
परंतु एक वृद्ध महर्षि ने यह श्लोक सुनाया:
"तावद् भयाद्धि भेतव्यं यावद्भयमनागतम्।आगतं तु भयं वीक्ष्य प्रहर्तव्यमभीतवत्॥"
राजा ने तत्क्षण सैनिकों को बुलाया, गांववालों को सुरक्षित स्थान भेजा और जंगल के किनारे सिंह पर धैर्यपूर्वक प्रहार कर उसे मार गिराया।
नीति: संकट आने से पहले सजग रहें, और संकट आ जाए तो निर्भय होकर उसका समाधान करें।
🔸 7. निष्कर्ष:
यह श्लोक न केवल नीति दर्शन का मूल मंत्र है, बल्कि यह आत्मबल, धैर्य, और कर्तव्य परायणता का भी प्रतीक है।
“भय से भागो नहीं, उसका सामना करो।”