Bhakt Narsi Mehta Jayanti Special: Gujarati Sant Kavi aur Krishna Bhakti ke Chamatkar
प्रस्तुत पोस्ट में मैं भक्त नरसी मेहता के जन्म दिवस के शुभ अवसर पर एक विशेष लेख सभी प्रसंगों और घटनाओं के साथ व्यवस्थित, क्रमबद्ध और भावपूर्ण रूप में विस्तार से प्रस्तुत कर रहा हूँ :-
भक्त नरसी मेहता : जन्म दिवस विशेष
(गुजराती साहित्य के आदि कवि, संत और कृष्णभक्त)
जन्म और प्रारंभिक जीवन
भक्त नरसी मेहता का जन्म 19 दिसम्बर 1414 ई. में गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र, जूनागढ़ के पास स्थित तलाजा ग्राम में एक नागर ब्राह्मण परिवार में हुआ। बचपन में ही माता-पिता का देहांत हो गया, अतः उनका पालन-पोषण उनके चचेरे भाई के साथ हुआ। वे स्वभाव
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Bhakt Narsi Mehta Jayanti Special: Gujarati Sant Kavi aur Krishna Bhakti ke Chamatkar |
से सरल, धार्मिक और संत-समाज के प्रेमी थे। अक्सर संतों की मंडलियों में जाते, भजन-कीर्तन सुनते और प्रभु के नाम में डूबे रहते।
लगभग 15-16 वर्ष की आयु में उनका विवाह हुआ, परंतु वे सांसारिक कामकाज में कम ही रुचि रखते थे। इस कारण उनकी भाभी अक्सर कटाक्ष करती थीं।
भगवान शिव के दर्शन और कृष्णभक्ति का वरदान
भगवान शिव ने उन्हें द्वारका जाने का निर्देश दिया, जहाँ उन्हें श्रीकृष्ण की रासलीला के साक्षात दर्शन हुए। यह अनुभव उनके जीवन का पूर्ण परिवर्तन बिंदु था। वे अब पूर्णत: कृष्णभक्ति में निमग्न हो गए।
सामाजिक सुधारक रूप
नरसी मेहता के लिए सभी मनुष्य समान थे। वे छुआछूत और जातिभेद के कट्टर विरोधी थे। हरिजन बस्तियों में जाकर उनके साथ भजन-कीर्तन करना उनके लिए सामान्य था। इससे उनका समाज (नागर ब्राह्मण) क्रोधित हुआ और उन्होंने नरसी को बहिष्कृत कर दिया, परंतु नरसी अपनी राह से टले नहीं। अंततः वही समाज उन्हें अपना रत्न मानने लगा।
भक्त जीवन की प्रमुख चमत्कारिक घटनाएँ
1. ध्योती की शादी और भाठों का सोना-चाँदी बनना
नरसी जी मन ही मन प्रभु से लाज बचाने की प्रार्थना करने लगे। तभी भगवान स्वयं बैलगाड़ी में विवाह के वस्त्र, आभूषण, घोड़े, पालकी और अनेक उपहार लेकर पहुँचे। जब भाठे खोले गए, तो वे सोने-चाँदी से भरे थे। सब लोग आश्चर्यचकित रह गए।
2. सांवळ शाह सेठ की हुंडी
कुछ संत द्वारका जाने से पहले नरसी के पास आए और 500 रुपये की हुंडी लिखने को कहा। नरसी ने मना किया कि वे गरीब हैं, पर संतों के आग्रह पर उन्होंने हुंडी पर नाम लिखा— "सांवळ शाह"।
द्वारका में संतों को सांवळ शाह कहीं नहीं मिले। इधर नरसी ने तो वह धन पहले ही भंडारे में खर्च कर दिया था। अंत में, जब घर में बस चार रोटियाँ बचीं, तो उन्होंने उन्हें भी एक वृद्ध संत को खिला दिया। उसी क्षण द्वारका में भगवान श्रीकृष्ण सांवळ शाह सेठ के रूप में प्रकट होकर संतों को हुंडी का धन दे गए।
3. शूद्र ग्राम में भोजन
वे प्रेम से भोजन कर गए, पर उनके भाई ने मना कर दिया। चलने से पहले जब धन्यवाद कहने के लिए गाँव खोजा, तो वह गाँव कहीं दिखाई नहीं दिया। यह भगवान का ही लीलामय संकेत था।
4. मूंछ का बाल गिरवी रखना
एक बार नरसी के पास धन न होने पर याचक आ पहुँचे। पास कुछ भी न था, पर वे उन्हें खाली नहीं लौटाना चाहते थे। वे एक साहूकार के पास गए और अपनी मूंछ का एक बाल गिरवी रखकर धन लिया और सब दान कर दिया।
जब एक नगरवासी ने भी ऐसा करने का प्रयास किया, तो साहूकार ने उसे यह कहकर टाल दिया कि उसकी मूंछ के बाल में कोई मूल्य नहीं। नरसी के बाल में मूल्य था क्योंकि वह दीन-दुखियों के लिए आंसू बहाने वाला था। यह कथा नरसी के त्याग, निष्ठा और करुणा की अद्वितीय मिसाल है।
भक्ति और साहित्य में योगदान
नरसी मेहता को गुजराती साहित्य का आदि कवि माना जाता है। उनकी रचनाओं में भक्ति, प्रेम और भेदभाव-रहित समाज की गूंज सुनाई देती है। उनका सबसे प्रसिद्ध भजन "वैष्णव जन तो तेने कहिये" आज भी भारतीय संस्कृति का प्रतीक है।
अंतिम जीवन और विरासत
उनका निवास स्थान आज भी "नरसिंह मेहता का चौरा" के नाम से प्रसिद्ध है और गुजरात में उनकी स्मृति में अनेक भजन, उत्सव और कीर्तन होते हैं।
प्रेरणा
भक्त नरसी मेहता का जीवन यह सिखाता है कि सच्ची भक्ति जाति-पाति, धन-दौलत या पद-प्रतिष्ठा पर निर्भर नहीं, बल्कि प्रेम, त्याग और समान दृष्टि पर आधारित है। उनका जीवन भक्ति की पराकाष्ठा और मानवीय करुणा का उज्ज्वल उदाहरण है।