Hal Shashti Vrat Katha Hindi: पूजा विधि, कथा और संतान सुख का महत्व

Sooraj Krishna Shastri
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Hal Shashti Vrat Katha Hindi: पूजा विधि, कथा और संतान सुख का महत्व


🌿 प्रस्तावना

भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष की षष्ठी तिथि को हलषष्ठी व्रत किया जाता है। यह व्रत भगवान बलराम (हलधर) और माता षष्ठी को समर्पित है। मान्यता है कि इस व्रत को करने से संतान दीर्घायु, स्वस्थ और संकटमुक्त रहती है। इस दिन स्त्रियाँ हल से जुती हुई अन्न सामग्री का सेवन नहीं करतीं, बल्कि महुआ के फल-पत्ते, भैंस का दूध-दही और समों के चावल आदि का प्रसाद ग्रहण करती हैं।


🌼 कथा आरम्भ

एक बार राजा युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से कहा –
"हे प्रभो! सुभद्रा व द्रौपदी अपने पुत्रों के वियोग से शोकाकुल हैं। अभिमन्यु की पत्नी उत्तरा का गर्भ भी अश्वत्थामा के ब्रह्मास्त्र से खण्डित हो चुका है। माता-पिता संतान के बिना अत्यधिक दुखी रहते हैं। कृपा करके कोई ऐसा उपाय बताइए जिससे संतान की रक्षा हो सके और उत्तम, दीर्घायु व स्वस्थ संतान की प्राप्ति हो।"

Hal Shashti Vrat Katha Hindi: पूजा विधि, कथा और संतान सुख का महत्व
Hal Shashti Vrat Katha Hindi: पूजा विधि, कथा और संतान सुख का महत्व


यह सुनकर भगवान श्रीकृष्ण बोले –
"हे राजन! मैं तुम्हें एक व्रत बताता हूँ। इसे विधिपूर्वक करने से मृत गर्भ भी जीवन पा जाता है।"


🌺 प्राचीन कथा

प्राचीन काल में सुभद्र नामक एक राजा था, जिसकी रानी सुवर्णा और पुत्र का नाम हस्ती था। एक दिन राजपुत्र गंगा में धात्री (धाई माँ) के साथ जलक्रीड़ा कर रहा था। तभी अचानक एक ग्राह (मगरमच्छ) उसे पकड़कर गहरे जल में ले गया। यह देखकर रानी शोकाकुल हो गई।

क्रोध में उसने धात्री के पुत्र को जलती अग्नि में डाल दिया। इसके बाद राजा और रानी भी प्राण त्यागने को उद्यत हुए। दूसरी ओर धात्री अपने पुत्र के वियोग से दुःखी होकर वन में चली गई।

वहाँ उसने भगवान शिव-पार्वती, गणेश और कार्तिकेय की प्रतिदिन पूजा-अर्चना की और केवल महुआ, तृण-धान्य का सेवन करके व्रत करती रही।


✨ व्रत का प्रभाव

कुछ समय बाद नगरवासियों ने एक अद्भुत दृश्य देखा—धात्री का पुत्र अग्नि से जीवित बाहर निकल आया। यह देखकर राजा-रानी अचंभित रह गए और ऋषियों से इसका कारण पूछा।

तभी शिवजी की आज्ञा से दुर्वासा ऋषि वहाँ आए। उन्होंने बताया –
"हे राजन! यह चमत्कार धात्री के द्वारा किए गए षष्ठी व्रत का फल है। इस व्रत से मृत पुत्र भी जीवित हो उठता है और संतानों की रक्षा होती है।"

राजा-रानी ने यह सुनकर धात्री से व्रत का माहात्म्य जानना चाहा। धात्री ने बताया कि उसने भगवान शिव, पार्वती, कार्तिकेय और गणेशजी का विधिपूर्वक पूजन किया, जिसके प्रभाव से उसका पुत्र जीवित हो गया।


🙏 व्रत की विधि

भाद्रपद कृष्ण षष्ठी के दिन प्रातःकाल स्नान करके क्रोध, लोभ और हिंसा का त्याग करना चाहिए।

  • पलाश (ढाक) और कुशा के नीचे भगवान शिव, पार्वती, कार्तिकेय और गणेशजी की मूर्तियाँ स्थापित करें।
  • धूप, दीप, नैवेद्य, दूध, दही, घी और मट्ठे से पूजा करें।
  • इन मंत्रों से प्रार्थना करें :

➡️ "हे पंचमुख शूलधारी शिव! आपको साष्टांग प्रणाम है।"
➡️ "हे माता पार्वती! आप सौभाग्य देने वाली हैं, आपको नमस्कार है।"
➡️ "हे कुमार कार्तिकेय! मयूरवाहन, आपको बारम्बार प्रणाम है।"
➡️ "हे लम्बोदर गणेश! आपको साष्टांग प्रणाम है।"

  • व्रती उस दिन केवल समों के चावल, दही, दूध, घी व मट्ठे का सेवन करें।

🌷 व्रत का फल

भगवान श्रीकृष्ण ने कहा –
"जो स्त्री-पुरुष इस व्रत को विधिपूर्वक करता है, वह पुत्र-पौत्र से संपन्न होता है, संतान की रक्षा होती है और घर-परिवार में सुख-समृद्धि आती है।"

युधिष्ठिर ने उत्तरा से यह व्रत करवाया, जिसके प्रभाव से उसका खंडित गर्भ पुनः जीवित हुआ और वही गर्भ आगे चलकर राजा परीक्षित के रूप में प्रकट हुआ।


🌿 निष्कर्ष

हलषष्ठी व्रत संतानों की रक्षा करने वाला और वंशवृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। इस व्रत से पुत्र-पौत्र सुखी रहते हैं, घर में मंगल होता है और संतान पर आने वाला संकट टल जाता है।


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