Krishna Janmashtmi Special: श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि, तिथि निर्णय, पूजन एवं फल, पारण आदि का शास्त्रीय विधि-विधान

Sooraj Krishna Shastri
By -
0

Krishna Janmashtmi Special: श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि, तिथि निर्णय, पूजन एवं फल, पारण आदि का शास्त्रीय विधि-विधान 

 श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, जिसे गोकुलाष्टमी या अष्टमी रोहिणी के नाम से भी जाना जाता है, भगवान श्रीकृष्ण के अवतरण दिवस के रूप में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू पर्व है। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को, रोहिणी नक्षत्र के योग में आता है। श्रीकृष्ण का जन्म लगभग 5,000 वर्ष पूर्व मथुरा में, कारागार में, अर्धरात्रि के समय हुआ था। उस समय अत्याचार और अधर्म से पीड़ित पृथ्वी ने भगवान विष्णु से रक्षण की प्रार्थना की थी, जिसके उत्तर में उन्होंने कृष्णावतार धारण किया।
 श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि, तिथि निर्णय, पूजन एवं फल, पारण आदि का शास्त्रीय विधि-विधान यहां पर विस्तार से सन्दर्भ सहित बताया गया है:-

श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर्व के महत्व का पौराणिक संदर्भ 

Krishna Janmashtmi Special: श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि, तिथि निर्णय, पूजन एवं फल, पारण आदि का शास्त्रीय विधि-विधान
Krishna Janmashtmi Special: श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि, तिथि निर्णय, पूजन एवं फल, पारण आदि का शास्त्रीय विधि-विधान 



१. ब्रह्मपुराण

श्लोक
अथ भाद्रपदे मासि कृष्णाष्टम्यां कलौ युगे।
अष्टाविंशतिमे जातः कृष्णोऽसौ देवकीसुतः॥

हिन्दी अनुवाद
कलियुग में भाद्रपद मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि को, अष्टाविंशतिम (28वें) वर्ष में, देवकी के पुत्र श्रीकृष्ण का जन्म हुआ।


२. विष्णुपुराण

श्लोक १
प्रावृट्काले च नभसि कृष्णाष्टम्यां महानिशि।
उत्पत्स्यामि नवम्यान्तु प्रसूतिं त्वमवाप्स्यसि॥

हिन्दी अनुवाद
वर्षा ऋतु में, भाद्रपद मास (नभस्) की कृष्णाष्टमी की महानिशा (मध्यरात्रि) में मैं अवतरित होऊँगा, और नवमी के आरंभ तक तुम प्रसव करोगी।


श्लोक २
श्रावणे वा नभस्ये वा रोहिणीसहिताष्टमी।
यदा कृष्णे नरैर्लब्धा सा जयन्ती प्रकीर्तिता॥

हिन्दी अनुवाद
श्रावण या भाद्रपद मास में, जब कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि रोहिणी नक्षत्र के साथ हो, वही ‘जयन्ती’ (कृष्णजन्माष्टमी) कहलाती है।


३. अग्निपुराण

श्लोक १
रोहिणीसहिता कृष्णा मासि भाद्रपदेऽष्टमी।
सप्तम्यामर्द्धरात्राधः कलयापि यदा भवेत्॥
तत्र जातो जगन्नाथः कौस्तुभी हरिरीश्वरः॥

हिन्दी अनुवाद
भाद्रपद मास की कृष्णपक्ष अष्टमी, जब रोहिणी नक्षत्र के साथ हो, और सप्तमी के अंश के बाद मध्यरात्रि से नीचे के समय में आती हो — तब ही जगन्नाथ, कौस्तुभमणि धारण करने वाले हरि ईश्वर का जन्म हुआ।


श्लोक २
तमेवोपवसेत् कालं तत्र कुर्याच्च जागरम्॥

हिन्दी अनुवाद
उसी समय (उस तिथि पर) उपवास करना चाहिए और जागरण करना चाहिए।


श्लोक ३
अविद्धायाञ्च सर्क्षायां जातो देवकीनन्दनः॥

हिन्दी अनुवाद
(अर्थात) अष्टमी तिथि ‘अविद्ध’ (दूसरी तिथि से स्पर्शित न हो) और रोहिणी नक्षत्र से युक्त हो, तब ही देवकीनन्दन का जन्म हुआ माना जाता है।


४. ब्रह्मवैवर्तपुराण

श्लोक
उदये चाष्टमी किञ्चिन्नवमी सकला यदि।
भवेत्तु बुधसंयुक्ता प्राजापत्यर्क्षसंयुता॥
अपि वर्षशतेनापि लभ्यते वा न वा विभो॥

हिन्दी अनुवाद
यदि अष्टमी तिथि उदयकाल में हो और उसमें कुछ भाग नवमी का भी हो, तथा वह बुधवार और प्राजापत्य नक्षत्र के संयोग से युक्त हो, तो (हे प्रभो!) यह योग सौ वर्षों में भी कभी-कभी ही प्राप्त होता है।


५. पद्मपुराण

श्लोक
प्रेतयोनिगतानान्तु प्रेतत्वं नाशितं तैः।
यैः कृता श्रावणे मासि अष्टमी रोहिणीयुता॥
किं पुनर्बुधवारेण सोमेनापि विशेषतः॥
किं पुनर्नवमीयुक्ता कुलकोट्यास्तु मुक्तिदा॥

हिन्दी अनुवाद
जिन लोगों ने श्रावण मास में रोहिणी नक्षत्रयुक्त अष्टमी का व्रत किया, उनके प्रेतयोनि के दोष भी नष्ट हो जाते हैं। फिर यदि यह व्रत बुधवार या सोमवार को पड़े तो विशेष फल मिलता है। और यदि नवमी के संयोग वाली अष्टमी हो, तो यह कुल-कोटि (असंख्य पीढ़ियों) को भी मोक्ष देने वाली होती है।


६. भविष्यपुराण

श्लोक
एकेनैवोपवासेन कृतेन कुरुनन्दन।
सप्तजन्मकृतात् पापान्मुच्यते नात्र संशयः॥

हिन्दी अनुवाद
हे कुरुनन्दन! केवल एक बार भी यह उपवास (कृष्णजन्माष्टमी व्रत) करने से सात जन्मों के पाप नष्ट हो जाते हैं, इसमें कोई संदेह नहीं।


७. भविष्योत्तरपुराण

श्लोक १
श्रावणेऽबहुले पक्षे कृष्णजन्माष्टमीव्रतम्।
न करोति नरो यस्तु स भवेत् क्रूरराक्षसः॥

हिन्दी अनुवाद
जो मनुष्य श्रावण मास के कृष्णपक्ष में कृष्णजन्माष्टमी व्रत नहीं करता, वह क्रूर राक्षस के समान होता है।


श्लोक २
वर्षे वर्षे च या नारी कृष्णजन्माष्टमीव्रतम्।
न करोति महाक्रूरा व्याली भवति कानने॥

हिन्दी अनुवाद
जो स्त्री प्रति वर्ष कृष्णजन्माष्टमी व्रत नहीं करती, वह महाक्रूर होकर वन में हिंसक नागिन (व्यालिनी) के रूप में जन्म लेती है।

भविष्यपुराण – कृष्ण जन्माष्टमी व्रत विधि


श्लोक १
पार्थ तद्दिवसे प्राप्ते दन्तधावनपूर्वकम्।
उपवासस्य नियमं गृह्णीयाद्भक्तिभावतः॥

हिन्दी अनुवाद
हे पार्थ! उस दिन (कृष्णजन्माष्टमी के दिन) प्रातः उठकर दंतधावन (मंजन) करने के बाद, उपवास का नियम भक्तिभाव से ग्रहण करना चाहिए।


श्लोक २
वासुदेवं समुद्दिश्य सर्वपापप्रशान्तये।
उपवासं करिष्यामि कृष्णाष्टम्यां नभस्यहम्॥

हिन्दी अनुवाद
“मैं इस भाद्रपद मास की कृष्णाष्टमी को, समस्त पापों की शान्ति के लिए, वासुदेव को लक्ष्य करके उपवास करूंगा” — इस प्रकार संकल्प करना चाहिए।


श्लोक ३
अद्य कृष्णाष्टमीं देवीं नभश्चन्द्रसरोहिणीम्।
अर्चयित्वोपवासेन भोक्ष्येऽहमपरेऽहनि॥

हिन्दी अनुवाद
“आज मैं कृष्णाष्टमी देवी का, भाद्र मास के चन्द्रमा और रोहिणी नक्षत्र के साथ, उपवासपूर्वक पूजन करूंगा, और अगले दिन भोजन करूंगा।”


श्लोक ४
एनसो मोक्षकामोऽस्मि यद्गोविन्द त्रियोनिजम्।
तन्मे मुञ्चतु मां त्राहि पतितं शोकसागरे॥

हिन्दी अनुवाद
“हे गोविन्द! मैं पापों से मुक्त होने की कामना रखता हूँ। जन्म-जन्मान्तर से संचित त्रिविध पाप से मुझे मुक्त करें, और मुझे इस शोकसागर से बचाएँ।”


श्लोक ५
आजन्ममरणं यावद्यन्मया दुष्कृतं कृतम्।
गृहमुपक्रम्य॥

हिन्दी अनुवाद
“जन्म से लेकर मृत्यु तक, जो भी दुष्कर्म मैंने किए हैं…” — (इसके बाद पूजन-विधान का वर्णन आता है)।


श्लोक ६
तन्मध्ये प्रतिमा स्थाप्या काञ्चनादिविनिर्म्मिता।
प्रतप्तकाञ्चनाभा सा देवकी सुतपस्विनी॥

हिन्दी अनुवाद
(व्रत-पूजन में) उस स्थान के मध्य में एक प्रतिमा स्थापित करनी चाहिए, जो स्वर्ण आदि से निर्मित हो। वह प्रतिमा तपस्विनी देवकी की हो, जिसकी आभा तपे हुए सोने के समान हो।


श्लोक ७
माञ्चापि बालकं सुप्तं प्रसूता नीरदच्छविम्।
वसुदेवोऽपि तत्रैव खड्गचर्मधरं स्थितम्॥

हिन्दी अनुवाद
देवकी की गोद में, नीरद (मेघ) के समान वर्ण वाले बालक कृष्ण की सुप्त अवस्था की प्रतिमा हो। वहीं वसुदेव की प्रतिमा हो, जो खड्ग (तलवार) और चर्म (ढाल) धारण किए हुए हों।


श्लोक ८
यशोदा चापि तत्रैव प्रसूतवरकन्यका।
बलभद्रस्तथा नन्दो दक्षो गर्गश्चतुर्मुखः॥

हिन्दी अनुवाद
वहीं यशोदा की प्रतिमा हो, जो नवजात कन्या को प्रसूत हुई हों। साथ ही बलराम, नन्द महाराज, दक्ष, गर्गाचार्य और चतुर्मुख ब्रह्मा की प्रतिमाएँ भी हों।


श्लोक ९
एवं संपूजयेद्भक्त्या गन्धपुष्पाक्षतैः फलैः।
स्थण्डिले स्थापयेद्देवीं सचन्द्रां रोहिणीन्तथा॥

हिन्दी अनुवाद
इन सबको गंध, पुष्प, अक्षत और फलों से भक्तिभावपूर्वक पूजना चाहिए। स्थण्डिल (वेदी) पर देवी (अष्टमी), चन्द्रमा और रोहिणी नक्षत्र की प्रतिमाएँ भी स्थापित करनी चाहिएं।


भविष्यपुराण – कृष्णजन्माष्टमी व्रत का पूजन एवं फल


श्लोक १
देवकीं वसुदेवञ्च यशोदां नन्दमेव च।
चण्डिकां बलदेवञ्च पूज्य पापैः प्रमुच्यते॥

हिन्दी अनुवाद
जो व्यक्ति देवकी, वसुदेव, यशोदा, नन्द, चण्डिका (दुर्गा) और बलदेव (बलराम) की पूजा करता है, वह समस्त पापों से मुक्त हो जाता है।


श्लोक २
अर्द्धरात्रे वसोर्धारां पातयेद्गुडसर्पिषा।
ततो वर्द्धापनं षष्ठीं नामादेः करणं मम॥

हिन्दी अनुवाद
अर्धरात्रि (भगवान के जन्म समय) पर गुड़ और घी से वसोधारा (अभिषेक) करनी चाहिए। इसके बाद षष्ठी तिथि तक व्रत-व्रद्धापन तथा नामकरण का अनुष्ठान करना चाहिए।


श्लोक ३
कर्त्तव्यं तत्क्षणाद्रात्रौ प्रभाते नवमीदिने।
यथा मम तथा कार्य्यो भगवत्या महोत्सवः॥

हिन्दी अनुवाद
यह कार्य उसी रात किया जाए और फिर नवमी के दिन प्रातः महोत्सव मनाया जाए, जैसे मेरे (भगवान के) लिए होता है, वैसे ही भगवती के लिए भी उत्सव किया जाए।


श्लोक ४
ब्राह्मणान् भोजयेद्भक्त्या तेभ्यो दद्याच्च दक्षिणाम्।
सुवर्णं काञ्चनं गाश्च वासांसि कुसुमानि च॥

हिन्दी अनुवाद
भक्तिभाव से ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए और उन्हें दक्षिणा देनी चाहिए — जैसे स्वर्ण, गौ, वस्त्र और पुष्प आदि।


श्लोक ५
यद्यदिष्टतमं लोके कृष्णो मे प्रीयतामिति।
यं देवं देवकी देवी वसुदेवादजीजनत्॥

हिन्दी अनुवाद
जो कुछ भी इस लोक में सर्वाधिक प्रिय है, वह सब भगवान को अर्पित करते हुए यह प्रार्थना करनी चाहिए कि — “जिस देवता को देवकी ने वसुदेव से उत्पन्न किया, वह कृष्ण मुझ पर प्रसन्न हों।”


श्लोक ६
भौमस्य ब्रह्मणो गुप्त्यै तस्मै ब्रह्मात्मने नमः।
सुब्रह्मवासुदेवाय गोब्राह्मणहिताय च॥

हिन्दी अनुवाद
भौम (पृथ्वी) और ब्रह्मा की रक्षा करने वाले उस ब्रह्मस्वरूप वासुदेव को, जो गौ और ब्राह्मणों के हितकारी हैं, मैं नमस्कार करता हूँ।


श्लोक ७
शान्तिरस्तु शिवञ्चास्तु इत्युक्त्रा तान् विसर्ज्जयेत्॥

हिन्दी अनुवाद
“सभी को शान्ति और कल्याण प्राप्त हो” — ऐसा कहकर ब्राह्मणों को विदा करना चाहिए।


श्लोक ८
एवं यः कुरुते देव्या देवक्या सुमहोत्सवम्।
वर्षे वर्षे भगवतो मद्भक्त्या धर्म्मनन्दन॥

हिन्दी अनुवाद
हे धर्मनन्दन! जो पुरुष या स्त्री प्रतिवर्ष भक्तिभाव से देवकी का यह महोत्सव करता है, वह भगवान की विशेष कृपा प्राप्त करता है।


श्लोक ९
नरो वा यदि वा नारी यथोक्तफलमाप्नुयात्।
पुत्त्रसन्तानमारोग्यधनधान्यर्द्धिमद्गृहम्॥

हिन्दी अनुवाद
चाहे पुरुष हो या स्त्री — यह व्रत करने से उसे संतान, आरोग्य, धन, धान्य और समृद्धि से युक्त घर प्राप्त होता है।


श्लोक १०
सम्पर्केणापि यः कुर्य्यात् कश्चिज्जन्माष्टमीव्रतम्।
विष्णुलोकमवाप्नोति नरो नास्त्यत्र संशयः॥

हिन्दी अनुवाद
जो व्यक्ति केवल संपर्क मात्र से भी जन्माष्टमी व्रत करता है, वह विष्णुलोक को प्राप्त होता है — इसमें कोई संशय नहीं है।


कृष्ण जन्माष्टमी व्रत के पूजन समय, मध्यरात्रि-पूजा, तथा पारण (व्रत-समापन) के नियम 


मूल पाठ

पूजा च मध्यरात्रे गारुडे ।
कृष्णाष्टम्यान्तु रोहिण्यामर्द्धरात्रेऽर्च्चनं हरेः ॥

व्रतपारणयोः कालनियमः ।
एकदिने जयन्तीलाभे तत्रैवोपवासः ।
उभयदिने चेत्तदा परदिने ।

जयन्त्यलाभे तु रोहिणीयुक्ताष्टम्याम् ।
उभयदिने रोहिणीयुताष्टमीलाभे परदिने
तदलाभे तु निशीथसम्बन्धिन्यामष्टम्यां
उभयदिने निशीथसम्बन्धे तदसम्बन्धे वा परदिने इति ।

उपवासपरदिने तिथिनक्षत्रयोरवसाने पारणम् ।
यदा महानिशायाः पूर्व्वमेकतरस्यावसानम्
अन्यतरस्य महानिशायां तदनन्तरं वा
तदैकतरावसाने पारणम्
यदा महानिशायामुभयस्थितिस्तदा उत्सवान्ते पारणम् ।

इति तिथ्यादितत्त्वम् ॥


हिन्दी भावार्थ

  • मध्यरात्रि पूजनगारुड़ पुराण के अनुसार, कृष्णाष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र के संयोग में अर्धरात्रि को भगवान श्रीहरि (कृष्ण) की पूजा करनी चाहिए।

  • पारण (व्रत-समापन) का समय

    1. यदि जयन्ती योग (अष्टमी + रोहिणी) एक ही दिन मिले, तो उसी दिन उपवास करें और अर्धरात्रि पूजन के बाद अगले दिन पारण करें।
    2. यदि जयन्ती योग दो दिनों में फैला हो, तो दूसरे दिन उपवास करें।
    3. यदि जयन्ती योग न मिले, तो केवल रोहिणीयुक्त अष्टमी के दिन व्रत करें।
    4. यदि रोहिणीयुक्त अष्टमी दो दिनों में हो, तो दूसरे दिन उपवास करें।
    5. यदि रोहिणी का संयोग न हो, तो केवल निशीथकाल (मध्यरात्रि) सम्बद्ध अष्टमी में व्रत करें।
    6. यदि निशीथ-संबंधित अष्टमी दो दिनों में हो, तो पहले दिन उपवास करें।
    7. यदि निशीथ संबंध भी न हो, तो अगले दिन उपवास करें।
  • पारण का नियम

    • उपवास के अगले दिन, तिथि और नक्षत्र के समाप्त होने के बाद पारण करना चाहिए।
    • यदि मध्यरात्रि से पहले इनमें से कोई एक (तिथि या नक्षत्र) समाप्त हो जाए और दूसरा अगले दिन मध्यरात्रि तक रहे, तो तिथि/नक्षत्र समाप्त होने के बाद पारण करें।
    • यदि मध्यरात्रि में तिथि और नक्षत्र दोनों रहें, तो उत्सव समाप्त होने के बाद पारण करें।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत की शुद्ध तिथि-नियम का निर्णय(हरिभक्तिविलास)


यह अंश असल में जन्माष्टमी के संयोग (अष्टमी + रोहिणी + मध्यरात्रि) के विभिन्न संभावित स्थितियों के आधार पर व्रत और पारण की शुद्ध गणना बताता है, ताकि व्रत वैध और फलदायक हो।


मूल पाठ

हरिभक्तिविलासमते तूपवासकालो यथा —

जन्माष्टमी पूर्व्वविद्धा न कर्त्तव्या कदाचन ।
पलवेधे तु विप्रेन्द्र ! सप्तम्यां चाष्टमीं त्यजेत् ॥

सुराया बिन्द्वना स्पृष्टं गङ्गाम्भःकलसं यथा ।
विना ऋक्षेण कर्त्तव्या नवमीसंयुताष्टमी ॥

सऋक्षापि न कर्त्तव्या सप्तमीसंयुताष्टमी ।
तस्मात् सर्व्वप्रयत्नेन त्याज्यमेवाशुभं बुधैः ॥

वेधे पुण्यक्षयं याति तमः सूर्य्योदये यथा ।
यच्च वह्निपुराणादौ प्रोक्तं विद्धाष्टमीव्रतम् ।
अवैष्णवपरं तच्च कृतं वा देवमायया ॥


हिन्दी अनुवाद

  • हरिभक्तिविलास के अनुसार
    • जन्माष्टमी यदि पूर्वविद्धा (अर्थात अष्टमी तिथि शुरू होने से पहले सप्तमी का अंश विद्यमान हो) हो, तो उसे किसी भी परिस्थिति में व्रत के लिए ग्रहण नहीं करना चाहिए।
    • पलव वेध (अल्प समय का सप्तमी वेध) भी यदि अष्टमी पर हो, तो उस दिन व्रत छोड़ देना चाहिए।
    • जैसे सुरा (मद्य) की एक बूँद से गंगाजल का कलश अपवित्र हो जाता है, वैसे ही सप्तमी वेध वाली अष्टमी भी अशुद्ध हो जाती है।
    • अष्टमी व्रत बिना रोहिणी नक्षत्र के भी किया जा सकता है, लेकिन नवमी वेध वाली अष्टमी स्वीकार्य है।
    • सप्तमी वेध वाली अष्टमी, चाहे वह रोहिणी नक्षत्र से संयुक्त ही क्यों न हो, शुभ नहीं मानी जाती और विद्वान लोग उसे हर स्थिति में त्यागते हैं।
    • वेध (अशुद्धि) पुण्य को उसी तरह नष्ट कर देता है जैसे सूर्य उदय होने पर अंधकार नष्ट हो जाता है।
    • अग्नि पुराण आदि में जो विद्धाष्टमी व्रत का उल्लेख है, वह अवैष्णव मत है, और संभवतः देवीमाया से प्रेरित होकर कहा गया है।

भावार्थ व विवेचन

यह अंश हमें बताता है कि—

  1. अष्टमी का चुनाव करते समय सप्तमी वेध से बचना चाहिए

    • सप्तमी वेध का अर्थ है कि अष्टमी की प्रारंभिक अवधि में सप्तमी तिथि का कुछ अंश हो।
    • चाहे वह वेध केवल कुछ ही क्षण (पलव) क्यों न हो, वैष्णव मत में इसे दोषपूर्ण माना जाता है।
  2. रोहिणी नक्षत्र का होना उत्तम है, लेकिन अनिवार्य नहीं

    • रोहिणी नक्षत्र न हो, तो भी व्रत किया जा सकता है।
    • परन्तु सप्तमी वेध वाली अष्टमी, रोहिणी होने पर भी निषिद्ध है।
  3. नवमी वेध दोष नहीं देती

    • यदि अष्टमी के अंत में नवमी का अंश हो, तो व्रत मान्य है।
    • सप्तमी वेध को ही प्रमुख दोष माना गया है।
  4. वैष्णव और अवैष्णव परंपरा में अंतर

    • वैष्णव मत शुद्ध अष्टमी को प्रधानता देता है।
    • कुछ पुराणों में विद्धाष्टमी व्रत का उल्लेख है, पर हरिभक्तिविलास इसे अवैष्णव परंपरा कहकर त्यागने की सलाह देता है।


जन्माष्टमी तिथि निर्णय चार्ट

(हरिभक्तिविलास + धर्मशास्त्र + पंचांग नियम)

क्रम निर्णय का बिंदु वैष्णव मत (हरिभक्तिविलास) स्मार्त मत (सामान्य परंपरा)
1 अष्टमी तिथि शुद्ध अष्टमी (कोई भी सप्तमी वेध न हो) अष्टमी तिथि, चाहे सप्तमी वेध हो
2 सप्तमी वेध व्रत त्यागें, चाहे वेध केवल पलभर हो मान्य, यदि निशीथ में अष्टमी हो
3 नवमी वेध मान्य, दोष नहीं मान्य
4 रोहिणी नक्षत्र उत्तम, पर अनिवार्य नहीं वांछनीय, पर अनिवार्य नहीं
5 निशीथकाल (मध्यरात्रि) अष्टमी अवश्य होनी चाहिए, तभी व्रत मान्य अष्टमी या नवमी, दोनों में हो सकती है
6 अष्टमी प्रारंभ निशीथ से पहले हो और निशीथ में विद्यमान हो निशीथ में विद्यमान हो
7 पारण (व्रत खोलना) तिथि + नक्षत्र नियम के अनुसार, प्रायः नवमी तिथि में प्रायः नवमी में, प्रातः या मध्यान्ह
8 मुख्य दोष सप्तमी वेध केवल तिथि न मिलने पर विचार
9 यदि एक ही दिन वैष्णव व स्मार्त दोनों नियम पूरे हों उसी दिन सभी करें उसी दिन
10 यदि अलग-अलग हों वैष्णव जन्माष्टमी एक दिन बाद आती है स्मार्त जन्माष्टमी पहले होती है

निर्णय का प्रवाह (Flow)

  1. तिथि जाँचें → क्या निशीथकाल में अष्टमी है?
    • ❌ यदि नहीं → वह दिन त्यागें।
  2. सप्तमी वेध देखें → क्या अष्टमी प्रारंभ में सप्तमी अंश है?
    • ✅ यदि हाँ → वैष्णव मत में त्यागें, स्मार्त में स्वीकार।
  3. रोहिणी नक्षत्र देखें → यदि मिल जाए तो शुभता बढ़ती है, पर अनिवार्य नहीं।
  4. नवमी वेध देखें → यह दोष नहीं।
  5. अंतिम निर्णय → वैष्णव के लिए शुद्ध अष्टमी (बिना सप्तमी वेध) चुनें, स्मार्त के लिए निशीथ में अष्टमी वाली तिथि चुनें।

संक्षेप में

  • वैष्णव जन्माष्टमी: सप्तमी वेध-रहित अष्टमी + निशीथकाल में विद्यमान + संभव हो तो रोहिणी।
  • स्मार्त जन्माष्टमी: निशीथकाल में अष्टमी, चाहे सप्तमी वेध हो।

श्री कृष्ण जन्माष्टमी व्रत का पारण काल (व्रत खोलने का समय) 


मूल पाठ

पारणकालो यथा —

यद्वा तिथ्यर्क्षयोरेव द्बयोरन्ते तु पारणम् ।
समर्थानामशक्तानां द्बयोरेकवियोगतः ॥
केचिच्च भगवज्जन्ममहोत्सवदिने शुभे ।
भक्त्योत्सवान्ते कुर्व्वन्ति वैष्णवा व्रतपारणम् ॥


हिन्दी अनुवाद

  • तिथि और नक्षत्र — इन दोनों के समाप्त होने पर पारण (व्रत खोलना) करना चाहिए।
  • जो साधक समर्थ हैं, वे दोनों (तिथि और नक्षत्र) के समाप्त होने तक व्रत रखें।
  • जो अशक्त (असमर्थ) हैं, वे इनमें से किसी एक (तिथि या नक्षत्र) के समाप्त होने पर भी पारण कर सकते हैं।
  • कुछ वैष्णव, भगवान के जन्म महोत्सव वाले दिन ही, उत्सव समाप्त होने के बाद, भक्तिभाव से पारण करते हैं।

भावार्थ व विवेचन

  1. पारण का आदर्श नियम

    • आदर्शतः पारण तब करना चाहिए जब अष्टमी तिथि और रोहिणी नक्षत्र दोनों समाप्त हो जाएँ।
    • यह विशेषतः वैष्णव परंपरा में शुद्ध पालन माना जाता है।
  2. समर्थ और अशक्त के लिए भेद

    • जो शारीरिक रूप से सक्षम हैं, वे दोनों की समाप्ति तक व्रत करें।
    • जो अशक्त हैं, वे केवल तिथि या केवल नक्षत्र की समाप्ति पर भी व्रत खोल सकते हैं।
  3. कुछ मंदिर और वैष्णव संप्रदाय

    • कुछ स्थानों पर, विशेषकर मंदिरों में, महोत्सव (कीर्तन, अभिषेक, अर्चना) समाप्त होते ही उसी रात व्रत पारण कर दिया जाता है — यह विशेष उत्सव-रीति है।

Post a Comment

0 Comments

Post a Comment (0)

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!