Real Story: Gussa Control कर कैसे मिली जीत ?

Sooraj Krishna Shastri
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Real Story: Gussa Control कर कैसे मिली जीत ?


(एक वकील द्वारा सुनाया गया प्रसंग)

प्रथम भेंट

मैं अपने चेंबर में बैठा था, तभी दरवाज़ा जोर से खुला और एक व्यक्ति भीतर आया।
धूप में तपकर सांवला हो चुका चेहरा, बढ़ी हुई दाढ़ी, पांव के पास मिट्टी लगी हुई सफेद धोती–कुर्ता, और हाथ में कागज़ों का एक बंडल।

वह बोला—

"वकील साहब, मेरे भाई के पूरे फ्लैट पर स्टे लगवाना है। बताइए, क्या-क्या कागज़ चाहिए और कितना खर्चा आएगा?"

मैंने शांत स्वर में कहा—

Real Story: Gussa Control कर कैसे मिली जीत ?
Real Story: Gussa Control कर कैसे मिली जीत ?


"बैठ जाइए, बाबा। रग्घू, ज़रा पानी लाना।"

मैंने उसके सभी कागजात देखे, जानकारी ली। आधा घंटा बीत गया। फिर कहा—

"मैं इन कागज़ों को देखकर विचार करूंगा। शनिवार को आकर मिलिए।"


दूसरी मुलाकात

चार दिन बाद वह फिर आया। वही कपड़े, वही बेचैनी। इस बार मैंने उसकी जीवन–कथा उसके ही कागज़ों से पढ़ ली थी।

मैंने कहना शुरू किया—

"बाबा, तुम तीन भाई–बहन हो। माँ–बाप बचपन में ही चले गए।
तुमने पढ़ाई बीच में छोड़कर खेतों में दिहाड़ी पर काम किया, ताकि छोटे भाई की पढ़ाई में कमी न आए।
एक बार खेलते समय बैल ने भाई को घायल कर दिया। तुमने उसे कंधे पर उठाकर 5 किलोमीटर दूर अस्पताल पहुँचाया।

बाद में जब भाई का अच्छे कॉलेज में चयन हुआ, तो उसकी फीस भरने के लिए तुमने अपनी जान खपा दी।
पत्नी के गहने गिरवी रखे, साहूकार से कर्ज लिया, पर भाई की पढ़ाई कभी न रुकने दी।

फिर भाई को किडनी की बीमारी हुई। डॉक्टर ने किडनी निकालने को कहा, और तुमने बिना सोचे अपनी किडनी उसे दे दी—यह कहते हुए कि ‘तू तो बड़े काम करेगा, मुझे तो गाँव में रहना है।’

भाई हॉस्टल गया, तो त्योहार–पर्व पर लड्डू, कपड़े, खाना—सब साइकिल पर 25 किलोमीटर जाकर पहुँचाते रहे।

मास्टर्स के बाद उसकी शादी हुई, नौकरी लगी, और… फिर उसने आना-जाना बंद कर दिया।
वह कहने लगा—‘मैंने बीवी से वचन दिया है।’

अब वह चाहता है कि गाँव की आधी ज़मीन बेचकर उसे पैसा दे दो।"

मैंने चाय का घूंट लिया और पूछा—

"तो तुम चाहते हो कि उसके फ्लैट पर स्टे लगाकर उसे सबक सिखाओ?"

वह बोला—

"हाँ।"


वकील की सीख

मैंने शांत भाव से कहा—

"हम स्टे ले सकते हैं, हिस्सा भी मांग सकते हैं।
लेकिन बाबा, तुमने उसके लिए जो खून–पसीना बहाया, जो किडनी दी, जो जीवन लगाया—वह सब वापस नहीं मिलेगा।

फ्लैट की कीमत उसके सामने शून्य है। भाई की नीयत बदल गई, वह अपने रास्ते चला गया।
अब तुम भी उसी कृतघ्न राह पर मत चलो।

तुम दिलदार थे—दिलदार ही रहो।
कोर्ट–कचहरी में समय गंवाने की बजाय अपने बच्चों को पढ़ाओ–लिखाओ।"

वह कुछ क्षण चुप रहा, फिर कागज़ उठाए, आँखें पोंछते हुए बोला—

"चलता हूँ वकील साहब।"


कई वर्ष बाद…

काफी समय बीत गया।
एक दिन वह अचानक मेरे ऑफिस आया—सिर के बालों में सफेदी, चेहरे पर आत्मविश्वास, साथ में एक युवा लड़का।

"बैठने नहीं आया वकील साहब, मिठाई खिलाने आया हूँ। यह मेरा बेटा है—बैंगलोर में नौकरी करता है। वहाँ तीन मंजिला मकान बना लिया है, 12 एकड़ खेती भी खरीद ली है।"

उसकी आँखों में चमक थी—

"आपने मुझे उस समय समझाया था कि कोर्ट–कचहरी में मत पड़ो। गाँव के लोग भड़काते रहे, पर मैंने आपकी बात मानी। बच्चों को पढ़ाया–लिखाया।
कल भाई भी आया था, पाँव छूकर माफ़ी माँगी और कहा—‘गलत था मैं।’"

मेरे हाथ का पेड़ा हाथ में ही रह गया, आँखें भर आईं।


संदेश

गुस्सा अगर सही दिशा में मोड़ दिया जाए, तो वह विनाश नहीं, निर्माण करता है।

क्षणिक प्रतिशोध से बेहतर है दीर्घकालीन सम्मान और आत्मसंतोष।

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