भक्ति Marg और Vandana : Shri Krishna Bhakti एवं Shrimad Bhagwat Sandesh
"भक्ति Marg को शास्त्रों में सबसे सरल और श्रेष्ठ माना गया है। Shrimad Bhagwat तथा Bhagavad Gita में स्पष्ट कहा गया है कि Vandana और Bhakti द्वारा साधारण जीव भी वही परम आनंद पा सकता है, जो Yogis और Gyanis Brahmanand में अनुभव करते हैं। Shri Krishna की वंदना करने से पाप-ताप का नाश होता है और हृदय में ईश्वर का सीधा संबंध स्थापित होता है। Radha-Krishna Bhakti से जीवन पवित्र, निर्भय और आनंदमय बनता है। जानिए कैसे Vandana केवल शरीर से नहीं बल्कि हृदय और आत्मा से करनी चाहिए।"
१. भक्ति-मार्ग की आचार्या – गोपियाँ
भक्ति-मार्ग की  आचार्य गोपियाँ  है।
उनका आदर्श मन और आँखों के सामने रखो।
ज्ञानमार्ग से, योगमार्ग से जिस ईश्वर  का  आनंद का अनुभव होता है, उसी आनंद का  अनुभव इस भक्ति से सहज प्राप्त होता है।
📖 श्रीमद्भागवत (१०.४७.६०):
याः प्राणनाथसम्भोग-सुखमात्मन एव च।
अत्यानन्दं समाप्नुवन् न त्यजन्ति स्म गोपिकाः॥
भावार्थ:
ज्ञानी योगियों को जो ब्रह्मानंद प्राप्त होता है वही इस साधारण जीवात्मा को भी प्राप्त हो – ऐसे  उद्देश्यय से श्रीभागवत की रचना की गई है।
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| भक्ति Marg और Vandana : Shri Krishna Bhakti एवं Shrimad Bhagwat Sandesh | 
२. भगवान का स्वरूप
इसमें तो भगवान  का स्वरुप बताया है।
भगवान कैसे है?
परमात्मा के स्वरुप का वर्णन करते  हुए  कहा गया है -
"दुःख मन का धर्म है, आत्मा का नहीं।
मनुष्य दुःख में ईश्वर का स्मरण करता है जिससे उसका परमात्मा के साथ अनुसंधान  होता है और उसे आनंद मिलता है।"
📖 भगवद्गीता (९.२२):
अनन्याश्चिन्तयन्तो मां ये जनाः पर्युपासते।
तेषां नित्याभियुक्तानां योगक्षेमं वहाम्यहम्॥
जीव का स्वभाव सुन्दर नहीं है। परमात्मा का शरीर तो हो सकता है कि कभी सुन्दर न भी हो –
कूर्मावतार, वराहा अवतार के शरीर सुन्दर नहीं थे,
परन्तु श्री परमात्मा का स्वभाव  सुन्दर, अतिशय सुन्दर है।
दुसरो के दुःख दूर करने का परमात्मा का स्वभाव  है, इसलिए तो भगवान वंदनीय है।
📖 श्रीमद्भागवत (१०.२.३३):
येऽन्येऽरविन्दाक्ष विमुक्तमानिनः
त्वय्यस्तभावादवशुद्धबुद्धयः।
आरुह्य कृच्छ्रेण परं पदं ततः
पतन्त्यधोऽनादृतयुष्मदङ्घ्रयः॥
३. भगवान की वंदना और लाभ
आध्यात्मिक, आधिदैविक तथा आधिभौतिक – तीनों  प्रकार के तापो  के नाश करने वाले भगवान  श्रीकृष्ण की हम वंदना करते है।
वंदना करने से क्या लाभ है?
👉 वंदना करने से पाप जलते हैं।
👉 श्रीराधाकृष्ण की वंदना करेंगे तो आपके सारे  पाप नष्ट होंगे।
परन्तु वंदना अकेले शरीर से नहीं, मन से भी करो।
अर्थात राधाकृष्ण को ह्रदय में पधराओ और उनको प्रेम से नमन करो।
📖 श्रीमद्भागवत (१२.३.५१):
कलेर्दोषनिधे राजन्नस्ति ह्येको महान् गुणः।
कीर्तनादेव कृष्णस्य मुक्तसंगः परं व्रजेत्॥
नमन प्रभु को बंधन में डालता हैं।
"दुःख में जो साथ दे वह ईश्वर है और सुख में जो साथ दे वह जीव हैं।"
ईश्वर सर्वदा दुःख में ही साथ देता हैं।
४. ईश्वर दुःख में ही साथी है
अतः ईश्वर वन्दनीय  हैं।
ईश्वर ने जिस-जिस को सहायता दी है उसको दुःख में ही सहायता दी है।
पांडव जब दुःख में थे तब श्रीकृष्णजी ने उनकी मदद की।
पर पांडव जब सिंहासन में बैठे तब श्रीकृष्ण भी वहाँ से चले गये।
📖 महाभारत (उद्योगपर्व):
यत्र योगेश्वरः कृष्णो यत्र पार्थो धनुर्धरः।
तत्र श्रीर्विजयो भूतिर्ध्रुवा नीतिर्मतिर्मम॥
ईश्वर जिसे भी मिले है, दुःख में ही मिले है।
"सुख का साथी जीव है और दुःख का साथी ईश्वर है" – इस बात का सतत मनन करो।
५. ईश्वर को पाने का प्रयत्न
मनुष्य धन पाने के लिए  प्रयत्न करता है (और दुःख सहन करता है)।
उससे भी कम प्रयत्न यदि ईश्वर के लिये  करे तो उसे ईश्वर अवश्य मिलेंगे।
कन्हैया तो बिना बुलाये गोपियों के घर जाता था।
परन्तु वह मेरे घर क्यों नहीं आता हैं?
ऐसा कभी विचार भी किया है?
ऐसा  निश्चय कीजिए कि –
"मैं  भी ऐसे  सत्कर्म करूँगा कि  कन्हैया घर भी आएगा।"
६. वंदना का अर्थ
श्रीभगवान के आगे हाथ जोड़ना, मस्तक नवाना – इसका क्या अर्थ है?
👉 "हाथ क्रियाशक्ति का प्रतीक है।"
हाथ जोड़ने का अर्थ है – "मैं अपने हाथों  से सत्कर्म करूँगा।"
👉 मस्तक नवाने  का अर्थ है – "मैं अपनी बुद्धि-शक्ति को हे नाथ, आप को अर्पित करता हूँ।"
👉 वंदना करने का अर्थ है – "अपनी क्रियाशक्ति और बुद्धि -शक्ति श्रीभगवान को अर्पित करनी चाहिए।"
७. वंदना से निर्भयता
श्री भगवान को वंदन करने से पाप-ताप  का नाश होता हैं।
निर्भय होना हो तो प्रेम से भगवान श्रीकृष्ण की वंदना करो।
भगवान  दया के सागर हैं।
केवल वाणी और शरीर से नहीं, परन्तु ह्रदय से वंदन करना चाहिए।
हृदय से वंदन करने से श्रीभगवान के साथ ब्रह्म सम्बन्ध होता हैं।
जब भी घर से बाहर निकलें, श्रीठाकुर जी की वंदना प्रेम से करके ही निकलें।
ईश्वर प्रेम चाहते हैं और प्रेम ही देते हैं।
८. जीव का स्वभाव और वंदना की आवश्यकता
वंदना करने से ईश्वर के साथ संबंध  होता है।
पर इस जीव का स्वभाव  ऐसा है कि  वह परमात्मा को  वंदन नहीं करता हैं।
घर में प्रवेश करते ही अगर पत्नी न हो तो अपने बालक से पूछता है कि – "तेरी माता कहाँ गई?"
परन्तु इसकी क्या आवश्यकता  है?
वह बाहर गई तो बैठकर राम-राम करें।
👉 बाहर से घर में आएं तो उस समय भी ईश्वर की वंदना करें।
👉 मार्ग में चलते हुए  भी वंदना करें।
यह जीव जो प्रेम से परमात्मा को प्रणाम करे तो उस पर श्रीपरमात्मा प्रसन्न होते हैं।
यह जीव चाहे और कुछ न करे, इतना तो करे कि बार-बार श्री परमात्मा को वंदन करे।
९. वंदना का भाव – कृतज्ञता
वंदना करें तो सद्भाव से करें।
प्रभु के मुझ पर अनंत उपकार हैं।
श्रीपरमात्मा ने हम पर कितने उपकार किए  हैं।
👉 बोलने और खाने को जीभ दी है।
👉 देखने के लिए  आँखे दी हैं।
👉 सुनने के लिये  कान दिया है।
👉 विचार करने के लिया मन दिया है।
👉 बुद्धि और विचारशक्ति भी परमात्मा ने ही दी हैं।
ईश्वर के उपकारों को याद करें और कहें –
"हे भगवान मैं आपका ऋणी हूँ।"
१०. समापन
मेरे पाप तो अनंत हैं, परन्तु हे नाथ! आपकी कृपायें भी अनंत हैं।
श्रीपरमात्मा की वंदना उत्तम भाव पूर्वक करें तो वह अवश्य सफल होती हैं।
विचार करें –
"नाथ, मैं तो योग्य नहीं हूँ। मैं तो पापी हूँ। फिर भी आपने मुझे सम्पत्ति और प्रतिष्ठा दी है।"
जीव योग्य नहीं है फिर भी प्रभु ने जीव को  अधिक दे रखा है।
"नाथ, आपके अनंत उपकार हैं।"
👉 वंदन करने से अभिमान का बोझ कम होता है।
👉 श्री ठाकुर जी का कोई बोझ नहीं है, कारण उनमें कोई अभिमान नहीं है।
📖 श्रीमद्भागवत का आरम्भ भी वंदना से किया गया है और वंदना से ही समाप्ति की गई है –
"नमामि हरि परम्।"
अकेले श्रीकृष्ण की वंदना नहीं की गई है, अपितु कहा –
“श्रीकृष्णाय, राधाकृष्णाय वयं नुमः”
श्रीजी का अर्थ है राधाजी।
श्रीराधाजी के साथ विराजमान श्रीठाकुरजी  की मैं  वंदना करता हूँ।
👉 पढ़ने और विचारने से अधिक  श्रेष्ठ  आचरण हैं।
👉 वेदो का अंत नहीं और पुराणो का पार नहीं है।
👉 मनुष्य जीवन लघु है और शास्त्र का कोई पार नहीं है।
👉 परन्तु उस एक को – अर्थात ईश्वर को – जान लेंगे तो सब कुछ जान जायेंगे।
कलियुग का मनुष्य कम समय में भी भगवान  को प्राप्त कर सकता है, यह श्रीभागवत में बताया गया है।