Subhashitani: संस्कृत श्लोक "यो यत्र कुशलो कार्ये तं तत्र विनियोजयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण

Sooraj Krishna Shastri
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Subhashitani: संस्कृत श्लोक "यो यत्र कुशलो कार्ये तं तत्र विनियोजयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 

 प्रस्तुत किए गए इस सुभाषित का बहुत गहरा प्रबंधन-तत्त्व (Management Principle) है। आइए इसे विस्तार से देखें—


श्लोक

यो यत्र कुशलो कार्ये तं तत्र विनियोजयेत् ।
कर्मस्वधृष्टकर्मा यच्छास्त्रज्ञोऽपि विमुह्यति ॥


English Transliteration (IAST)

yo yatra kuśalo kārye taṃ tatra viniyojayet |
karmasv adṛṣṭakarmā yac chāstrajño’pi vimuhyati ||


हिन्दी अनुवाद

जिस व्यक्ति को जिस कार्य में कुशलता है, उसे उसी कार्य में लगाना चाहिए।
क्योंकि जो व्यक्ति उस कार्य में कुशल नहीं है, वह शास्त्रज्ञ (पढ़ा-लिखा) होने पर भी उसमें भ्रमित हो जाता है।

संस्कृत श्लोक "यो यत्र कुशलो कार्ये तं तत्र विनियोजयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण
संस्कृत श्लोक "यो यत्र कुशलो कार्ये तं तत्र विनियोजयेत्" का हिन्दी अनुवाद और विश्लेषण 



शब्दार्थ

  • यो — जो
  • यत्र — जहाँ, जिस कार्यक्षेत्र में
  • कुशलः — निपुण, दक्ष
  • कार्ये — कार्य में
  • तं तत्र विनियोजयेत् — उसे वहीं नियुक्त करना चाहिए (विनियोजयेत् = नियोजित करे)
  • कर्मसु — कार्यों में
  • अधृष्टकर्मा — अकुशल/अनुभवहीन व्यक्ति
  • यत् — क्योंकि
  • शास्त्रज्ञः अपि — शास्त्र जानने वाला, विद्वान भी
  • विमुह्यति — भ्रमित होता है

भावार्थ

👉 कार्य विभाजन का नियम है कि व्यक्ति को उसी कार्य में लगाना चाहिए, जिसमें वह दक्ष हो।
यदि किसी अकुशल व्यक्ति को किसी क्षेत्र में लगाया जाए, तो वह चाहे कितना ही बड़ा पंडित क्यों न हो, व्यावहारिक कार्य में असफल होगा।


आधुनिक सन्दर्भ

  • प्रबंधन (Management): यह सिद्धान्त आज के HR और Project Management का मूल है—Right Person at the Right Job.
  • संगठन (Organization): हर व्यक्ति की अलग-अलग दक्षता होती है; उचित कार्य-विभाजन से ही टीम सफल होती है।
  • शिक्षा (Education): केवल सैद्धांतिक ज्ञान पर्याप्त नहीं है; व्यवहारिक कौशल अनिवार्य है।
  • व्यक्तिगत जीवन: अपने मित्र/परिवार के कार्यों को उनकी योग्यता और रुचि के अनुसार बाँटना—यही सहयोग का सही रूप है।

नीति-कथा (उदाहरण)

राजा ने अपने विद्वान मंत्री को रसोई की जिम्मेदारी दी।
मंत्री शास्त्रों में निपुण था पर पकाने में अनाड़ी।
परिणाम—राजभोजन बिगड़ गया और सब नाराज़ हुए।
राजा ने समझा—“विद्या होने पर भी व्यावहारिक कौशल न हो तो कार्य बिगड़ जाता है।”
तभी से उसने नियम बनाया: “जो जिस कार्य में कुशल है, उसी में लगाया जाए।”


निष्कर्ष

यह सुभाषित हमें सिखाता है कि—
योग्य व्यक्ति को योग्य स्थान पर लगाना ही सफलता की कुंजी है।
✔ केवल सैद्धांतिक ज्ञान पर्याप्त नहीं, अनुभव और कौशल भी आवश्यक है।



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