प्रेममयी राधा जी के प्रसिद्ध 8 दोहे और छंद | Radha Bhakti aur Kripa Prapti ke liye prarthana
"प्रेममयी राधा जी के प्रसिद्ध दोहे और छंद पढ़ें, जिनमें Radha Bhakti का रस और Kripa Prapti का मार्ग छिपा है। श्री राधा नाम जप से जीवन की बाधाएँ दूर होती हैं और अनंत प्रेम की प्राप्ति होती है।"
🌸 प्रेममयी राधा जी के ८ प्रसिद्ध दोहे और छंद 🌸
📜 दोहा १
📜 दोहा २
📜 दोहा ३
📜 दोहा ४
📜 दोहा ५
📜 दोहा ६
📜 छंद ७
📜 छंद ८
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| प्रेममयी राधा जी के प्रसिद्ध 8 दोहे और छंद | Radha Bhakti aur Kripa Prapti ke liye prarthana |
प्रेममयी राधा जी के प्रसिद्ध 8 दोहे और छंद | Radha Bhakti aur Kripa Prapti ke liye prarthana भावार्थ
यह पदावली वास्तव में श्री राधा जी की महिमा का अद्भुत गुणगान है। इसमें भक्त का संपूर्ण समर्पण, प्रेम और दास्य भाव झलकता है। नीचे मैं इसे एक सुंदर लेखन-रूप में प्रस्तुत कर रहा हूँ, जिससे पाठक राधा रानी की महिमा का गान कर सकें।
श्री राधा जी की महिमा – भक्त का दास्य भाव
भक्त कहता है कि मेरे लिए इस संसार का कोई और सहारा नहीं है। मैं केवल श्री राधा रानी का दास हूँ और यही वर माँगता हूँ कि जन्म-जन्मांतर तक उनके पावन चरणों में मेरा निवास बना रहे।
जब सब द्वार असफल हो जाएँ, तब भक्त अंत में राधा जी के द्वार पर आता है, क्योंकि यही एकमात्र स्थान है जहाँ सच्चा आश्रय और अनंत करुणा प्राप्त होती है। वृषभानु नंदिनी राधिका की एक कृपा-दृष्टि भक्त के सारे जीवन को सफल कर देती है।
राधा नाम स्वयं सिद्ध मंत्र है। केवल इसका जप करने मात्र से जीवन की सभी बाधाएँ दूर हो जाती हैं और असंख्य जन्मों का दुःख मिट जाता है।
श्री राधा रानी ही जीवन की प्राण-शक्ति और आनंद-धाम हैं। वे ब्रजभूमि की स्वामिनी हैं और ललिता-सखी आदिक संग में सदैव आनंद-विहार करती हैं।
राधा – भक्त का जीवनाधार
भक्त का जीवन-दर्शन यह है कि माता राधा और पिता श्रीकृष्ण ही उसके सर्वस्व हैं। उनके चरणों में बार-बार प्रणाम करना ही जीवन का परम लक्ष्य है।
यहाँ भक्त केवल एक वरदान माँगता है—वृन्दावनधाम का वास और राधा रानी की सेवा। यही जीवन का परम पुरुषार्थ है।
🌼 राधा नाम की महिमा
भक्त मानता है कि राधा रानी का सौभाग्य असीम है। तीनों लोकों का उद्धार श्रीकृष्ण के हाथों है और वे स्वयं राधा जी की आज्ञा पर चलने वाले हैं। अतः राधा नाम का स्मरण ही जगत-जननी का साक्षात् आशीर्वाद है।
🌸 भक्ति की पराकाष्ठा
भक्त का हृदय केवल राधा नाम को ही अपनी सबसे बड़ी संपत्ति मानता है। संसार के वैभव, धन, अटारियों को छोड़कर वह ब्रज में एक साधारण कुटिया चाहता है, जहाँ ब्रजवासियों का टुकड़ा भोजन और यमुना जी की सेवा मिल सके। उसके लिए अन्य किसी वस्तु का मूल्य नहीं है, केवल अपनी ठकुरानी राधा रानी की सेवा ही परम ध्येय है।
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