"क्या रावण सच में ब्राह्मण और ज्ञानी था? जानिए श्रीमद्भगवद्गीता और रामायण के प्रमाणों के आधार पर रावण का वास्तविक स्वरूप। रावण का जन्म राक्षस योनि में हुआ, इसलिए वह वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) के अंतर्गत नहीं आता। गीता में स्पष्ट है कि वर्ण व्यवस्था केवल मनुष्यों के लिए है, राक्षसों के लिए नहीं। इसी कारण रावण ब्राह्मण नहीं था। इसी तरह, ज्ञानी वही है जो भगवान का भक्त होता है। परन्तु रावण भगवान से शत्रुता करता रहा, अतः वह ज्ञानी भी नहीं था। आजकल कुछ नास्तिक और आधुनिक विचारधारा के लोग रावण की प्रशंसा करते हैं, लेकिन शास्त्र प्रमाण बताते हैं कि रावण वास्तव में अधर्मी, आततायी और अज्ञानी था। धर्म सदा सत्य और अटल है, अधर्म कभी विजय प्राप्त नहीं कर सकता। इस लेख में पढ़ें — रावण के जन्म की कथा, वर्ण व्यवस्था का शास्त्रीय आधार, और ‘ज्ञानी’ की सही परिभाषा।"
Ravan Brahmin Nahi Tha Aur Gyani Bhi Nahi | जानिए असली सत्य Ramayan से
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Ravan Brahmin Nahi Tha Aur Gyani Bhi Nahi | जानिए असली सत्य Ramayan से |
कारण :
श्रीमद्भगवद्गीता प्रमाण
"क्षिप्रं हि मानुषे लोके" इस वाक्य में क्षिप्र विशेषण से भगवान् अन्य लोकों में भी कर्मफल की सिद्धि दिखलाते हैं पर मनुष्य-लोक में ही वर्ण-आश्रम आदि के कर्मों का अधिकार है, यह विशेषता है।
यद्यपि मायिक व्यवहार से मैं उस कर्म का कर्ता हूँ, तो भी वास्तव में मुझे अकर्ता ही जान तथा इसीलिए मुझे अव्यय और असंसारी ही समझ।
रावण का जन्म प्रसंग
राक्षसों के विनाश से दुःखी होकर सुमाली ने अपनी पुत्री कैकसी से कहा कि —
"पुत्री! राक्षस जाति के कल्याण के लिये मैं चाहता हूँ कि तुम परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा के पास जाकर उनसे पुत्र प्राप्त करो। वही पुत्र हम राक्षसों की देवताओं से रक्षा कर सकता है।"
पिता की आज्ञा पाकर कैकसी विश्रवा के पास गई। उस समय भयंकर आँधी चल रही थी। आकाश में मेघ गरज रहे थे। कैकसी का अभिप्राय जानकर विश्रवा ने कहा —
"भद्रे! तुम इस कु-बेला में आई हो। मैं तुम्हारी इच्छा तो पूरी कर दूँगा परन्तु इससे तुम्हारी सन्तान दुष्ट स्वभाव वाली और क्रूरकर्मा होगी।"
मुनि की बात सुन कर कैकसी उनके चरणों में गिर पड़ी और बोली —
"भगवन्! आप ब्रह्मवादी महात्मा हैं। आपसे मैं ऐसी दुराचारी सन्तान पाने की आशा नहीं करती। अतः आप मुझ पर कृपा करें।"
कैकसी के वचन सुन कर मुनि विश्रवा ने कहा —
"अच्छा, तो तुम्हारा सबसे छोटा पुत्र सदाचारी और धर्मात्मा होगा।"
इस प्रकार कैकसी के दस मुख वाले पुत्र का जन्म हुआ जिसका नाम दशग्रीव (रावण) रखा गया। उसके पश्चात् कुम्भकर्ण, शूर्पणखा और विभीषण के जन्म हुए। दशग्रीव और कुम्भकर्ण अत्यन्त दुष्ट थे, किन्तु विभीषण धर्मात्मा प्रकृति का था।
रावण वर्ण व्यवस्था में क्यों नहीं था?
रावण का जन्म मनुष्य योनि में नहीं हुआ था। माता कैकसी की योनि यानी राक्षस योनि रावण को प्राप्त थी। अतः रावण एक राक्षस था।
भगवान् स्पष्ट कह रहे हैं कि सत्व, रज, तम - इन तीन गुणों के विभाग से तथा कर्मों के विभाग से यह चारों वर्ण (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र) केवल मनुष्यों के लिए उत्पन्न किए गए हैं।
रावण परम पराक्रमी महर्षि विश्रवा का पुत्र अवश्य था किंतु राक्षस योनि में होने के कारण — मनुष्य योनि "नहीं" प्राप्त होने के कारण रावण वर्ण व्यवस्था के अंतर्गत नहीं था।
क्या रावण "ज्ञानी" था?
ज्ञानी के सम्बन्ध में अज्ञानियों को भ्रम है कि ज्ञानी भक्त नहीं होता। वास्तव में ज्ञानी को वियोग नहीं है क्योंकि परमात्मा का ज्ञान होते ही वियोग की संभावना मिट जाती है।
जब तक ज्ञान नहीं होगा, तब तक भक्ति भी उलटी दिशा में भटक सकती है। इसी से ज्ञानी की भक्ति विशिष्ट है।
अब, यदि रावण ज्ञानी था तो उसे भगवान् का भक्त अनिवार्यतः होना चाहिए था। लेकिन, उसे तो भगवान् से शत्रुता थी।
👉 अतः वह ज्ञानी नहीं था।
👉 अतः रावण अज्ञानी था।
आज का भ्रम
- "रावण ब्राह्मण था"
- "रावण ज्ञानी था"
- "रावण महात्मा था"
अब तो यहाँ तक कहा जाने लगा है कि —
"रावण इसलिए नहीं हारा क्योंकि वह अधर्मी और आततायी था, बल्कि इसलिए हारा क्योंकि उसके भाई ने उसका साथ नहीं दिया। यदि रावण के भाई ने उसका साथ दिया होता तो धर्म/सत्य पर अधर्म/असत्य की जीत होती।"
निष्कर्ष
भगवान् राम, जिनसे जीवों का नित्य संबंध है, उन्हें इन लोगों ने परे सरका दिया है और जिस आततायी रावण से जीवों का कोई संबंध नहीं है, उसके प्रति लोग मोहित हुए जा रहे हैं।
👉 अतः किसी भी तरह धर्म/सत्य पर अधर्म/असत्य की जीत संभव नहीं है।