“जानिए रावण और कुबेर की रोचक पौराणिक कथा। दोनों सहोदर भाई होते हुए भी एक असुर (रावण) और दूसरा देव (कुबेर) क्यों कहलाए? विष्णु पुराण और रामायण के अनुसार उनके जन्म, तपस्या, शाप और आचरण के रहस्यों को विस्तार से पढ़ें। यह लेख बताएगा कि कैसे अहंकार और शक्ति का दुरुपयोग रावण को राक्षस बना गया और संयमित जीवन ने कुबेर को धन के देवता बना दिया। विजयादशमी और रामायण के सन्दर्भ में यह कथा असत्य पर सत्य की विजय का शाश्वत संदेश देती है।”
Ravan aur Kuber ki Katha – क्यों कहलाए रावण असुर और कुबेर देव | Ravan Kuber Story in Hindi
1. वंश परंपरा और जन्म
- पुलत्स्य ऋषि : ब्रह्मा के मानसपुत्र, जिन्हें पुराणों का ज्ञान प्रसारित करने का कार्य सौंपा गया।
- विश्रवा ऋषि : पुलत्स्य के पुत्र।
- पत्नी इलबिड़ा से : कुबेर का जन्म।
- पत्नी कैकसी से : रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और शूर्पणखा का जन्म।
- पत्नी माया से : खर, दूषण और त्रिशिरा उत्पन्न हुए।
👉 इस प्रकार कुबेर और रावण सहोदर भाई हुए।
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Ravan aur Kuber ki Katha – क्यों कहलाए रावण असुर और कुबेर देव | Ravan Kuber Story in Hindi |
2. रावण का असुर कहलाना और कुबेर का देव बनना
- कुबेर ने तपस्या और योग से देवताओं की कृपा प्राप्त कर धनाध्यक्ष और अलकापुरी के अधिपति बने।
- रावण ने भी कठोर तपस्या से ब्रह्मा को प्रसन्न किया, किंतु वरदान पाकर शक्ति का दुरुपयोग किया और असुरी आचरण अपनाया।
- यही कारण है कि एक ही पिता से उत्पन्न होने के बावजूद,
- कुबेर सुर (देवगण में सम्मिलित) कहलाए।
- रावण असुर (राक्षसों का राजा) कहलाया।
3. जय-विजय का शाप और रावण का जन्म
- भगवान विष्णु के द्वारपाल जय और विजय ने सनकादिक ऋषियों को प्रवेश से रोका।
- ऋषियों ने क्रोधित होकर उन्हें शाप दिया – "तीन जन्म तक राक्षस योनि में रहना होगा और भगवान विष्णु के हाथों ही मृत्यु होगी।"
- तीन जन्म इस प्रकार हुए :
- हिरण्याक्ष और हिरण्यकशिपु
- रावण और कुंभकर्ण
- शिशुपाल और दंतवक्त्र
👉 इस शाप का दूसरा जन्म ही रावण और कुंभकर्ण के रूप में हुआ।
4. रावण की तपस्या और वरदान
- रावण ने ब्रह्मा की आराधना कर अत्यधिक तपस्या की।
- वरदान स्वरूप उसे यह शक्ति मिली कि दैत्य, दानव, यक्ष आदि उसे पराजित नहीं कर सकेंगे।
- परंतु इसमें ‘नर’ और ‘वानर’ को शामिल नहीं किया गया था।
- इसी कारण भगवान श्रीराम ने वानरों की सहायता से रावण का वध किया।
5. रावण का आचरण और उसका पतन
- रावण ज्ञानी, शास्त्रवेत्ता और शिवभक्त था, किंतु शक्ति और अहंकार ने उसे अधोगति की ओर धकेला।
- सीता-हरण करने पर भी उसने बल प्रयोग नहीं किया क्योंकि उसे रंभा का शाप याद था – बलात्कारी बनने पर उसका सिर कट जाएगा।
- सीता को अशोक वाटिका में रखकर उसने मर्यादा तोड़ी, परंतु कुछ सीमाएँ निभाईं।
- हनुमानजी को अपने समक्ष देखकर भी वह उनकी दिव्यता को पहचान न सका।
6. रावण का दार्शनिक दृष्टिकोण
- रावण यह जानता था कि यदि श्रीराम भगवान विष्णु के अवतार हैं तो उनके हाथों मृत्यु पाकर वह मोक्ष पाएगा।
- और यदि वे केवल मानव हैं तो उन्हें परास्त कर वह यश अर्जित करेगा।
- इस प्रकार वह अपने अंत को दार्शनिक दृष्टि से देख रहा था।
7. शिक्षा और संदेश
- रावण का जीवन इस सत्य को प्रमाणित करता है कि ज्ञान और शक्ति यदि अहंकार और दुरुपयोग से जुड़ें तो विनाश निश्चित है।
- कुबेर ने संयमित आचरण से देवत्व पाया, जबकि रावण ने असुरता को अपनाकर पतन पाया।
- विजयादशमी का पर्व इसी सत्य की उद्घोषणा है कि सत्य की सदैव असत्य पर विजय होती है।
✨ सारांश :
रावण और कुबेर दोनों सहोदर भाई थे।
- कुबेर – तप, संयम और धर्ममार्ग पर चलकर देवगण में प्रतिष्ठित हुए।
- रावण – शाप, अहंकार और असुरी आचरण के कारण राक्षस कहलाए और अंततः भगवान श्रीराम के हाथों मृत्यु को प्राप्त हुए।
🌸 स्रोत : विष्णु पुराण, रामायण, भागवत एवं अन्य पुराण कथाएँ