संस्कृत नीति श्लोक “मूढैः प्रकल्पितं दैवं” यह स्पष्ट करता है कि दैव (Destiny) कोई वास्तविक शक्ति नहीं, बल्कि अज्ञानियों द्वारा गढ़ी गई एक भ्रामक धारणा है। जो लोग केवल भाग्य पर निर्भर रहते हैं, वे धीरे-धीरे पतन की ओर चले जाते हैं। इसके विपरीत, प्राज्ञ अर्थात् बुद्धिमान लोग अपने पौरुष (Effort / Hard Work) के बल पर जीवन में उच्च स्थान, सम्मान और उत्कृष्टता प्राप्त करते हैं।
यह लेख इस श्लोक का शब्दार्थ, व्याकरणात्मक विश्लेषण, भावार्थ, आधुनिक जीवन में प्रासंगिकता, शिक्षा-नेतृत्व-जीवन प्रबंधन से सम्बन्ध, संवादात्मक नीति कथा और निष्कर्ष सहित विस्तृत विवेचन प्रस्तुत करता है।
यदि आप Sanskrit Motivation Shlokas, Destiny vs Hard Work, Indian Philosophy on Success, Life Lessons from Sanskrit, या Self-Effort Philosophy जैसे विषयों में रुचि रखते हैं, तो यह लेख आपके लिए अत्यंत उपयोगी और प्रेरणादायक सिद्ध होगा।
दैव नहीं पुरुषार्थ | Destiny vs Effort in Sanskrit Niti Shloka Explained
![]() |
| दैव नहीं पुरुषार्थ | Destiny vs Effort in Sanskrit Niti Shloka Explained |
1️⃣ मूल श्लोक (संस्कृत)
2️⃣ English Transliteration (IAST)
3️⃣ शुद्ध हिन्दी अनुवाद
4️⃣ शब्दार्थ (Padārtha)
| शब्द | अर्थ |
|---|---|
| मूढैः | अज्ञानियों द्वारा |
| प्रकल्पितम् | कल्पित, गढ़ा हुआ |
| दैवम् | भाग्य, नियति |
| तत्पराः | उसी में आसक्त |
| ते | वे लोग |
| क्षयम् | पतन, विनाश |
| गताः | प्राप्त हुए |
| प्राज्ञाः | बुद्धिमान |
| तु | किन्तु |
| पौरुषेण | पुरुषार्थ/प्रयास से |
| पदम् | स्थान, पद |
| उत्तमताम् | श्रेष्ठता |
| गताः | प्राप्त हुए |
5️⃣ व्याकरणात्मक विश्लेषण (Grammatical Analysis)
- मूढैः – पुंलिङ्ग, तृतीया विभक्ति, बहुवचन
- प्रकल्पितम् – क्त-प्रत्ययान्त विशेषण, नपुंसकलिङ्ग
- दैवम् – नपुंसकलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
- तत्पराः – पुंलिङ्ग, प्रथमा बहुवचन
- क्षयम् – पुंलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
- प्राज्ञाः – पुंलिङ्ग, प्रथमा बहुवचन
- पौरुषेण – नपुंसकलिङ्ग, तृतीया विभक्ति
- पदम् – नपुंसकलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
- उत्तमताम् – स्त्रीलिङ्ग, द्वितीया विभक्ति
➡️ श्लोक में विरोधाभासात्मक तुलनात्मक संरचना (मूढ बनाम प्राज्ञ) और नीति-उपदेशात्मक शैली स्पष्ट है।
6️⃣ भावार्थ एवं तात्त्विक विवेचन
यह श्लोक स्पष्ट करता है कि—
- दैव (Destiny) कोई स्वतंत्र सत्ता नहीं, बल्कि आलस्य और पलायन को ढकने की मानसिक रचना है।
- जो व्यक्ति अपने कर्तव्य और प्रयास से विमुख होकर भाग्य का सहारा लेता है, उसका आत्मिक व भौतिक पतन सुनिश्चित है।
- इसके विपरीत, पुरुषार्थ—अर्थात् निरंतर श्रम, विवेक और अनुशासन—मनुष्य को उत्तमता तक पहुँचाता है।
यह वैदिक-संस्कृत परम्परा का मूल सिद्धान्त है—
दैव भी पुरुषार्थ के अधीन है।
7️⃣ आधुनिक सन्दर्भ (Contemporary Relevance)
🔹 शिक्षा में
🔹 करियर एवं व्यवसाय में
सफल उद्यमी भाग्य नहीं, रणनीति, परिश्रम और निरंतर सीख पर भरोसा करते हैं।
🔹 समाज और राष्ट्र-निर्माण में
राष्ट्र भी तब आगे बढ़ते हैं जब नागरिक कर्तव्यबोध से प्रेरित होते हैं, न कि भाग्यवाद से।
8️⃣ संवादात्मक नीति-कथा (Didactic Dialogue)
9️⃣ नीति-सूत्र (Key Takeaway)
भाग्यवाद पतन की ओर ले जाता है,पुरुषार्थ श्रेष्ठता की ओर।
🔟 निष्कर्ष
मूढैः प्रकल्पितं दैवं
Destiny vs Effort
Sanskrit Niti Shloka
पुरुषार्थ का महत्व
Sanskrit Shloka Meaning in Hindi

