- मुस्लिम आक्रमणकारियों और अंग्रेजों ने अछूत जातियों (दलितों) से अपना मल (विष्ठा) सिर पर उठवाया लेकिन दलित बुद्धिजीवियों ने इस अन्याय का गुस्सा बेवजह अपने परम हितैषी ब्राह्मणों पर उतारा
- कुछ हिंदू जातियाँ अछूत इसलिए हो गईं क्योंकि उनसे मुसलमान आक्रमणकारियों... बादशाहों... सुल्तानों... और उनके सिपेहसालारों ने अपना मैला (मल, विष्ठा) उठवाया ।
- मुस्लिम बादशाहों के हरम की औरतें पखाना किलों के अंदर ही किया करती थीं क्योंकि बाहर निकलने की बंदिश उन पर लगी हुई थी । यही वजह है कि उनके लिए किले के अंदर ही शौचालय बनाए गए थे ।
- इन शौचालयों से बेगमों और हरम की बाकी औरतों का मल (विष्ठा) जिन हिंदू जातियों से उठवाया गया वही बाद में अछूत जातियाँ बन गईं ।
- इसी तरह अंग्रेजों के कल्चर में भी घर के अंदर ही टॉयलेट बनाने की परंपरा थी । जिसकी वजह से अंग्रेज भी अपना और अपनी औरतों का मल अछूत जातियों से ही उठवाने लगे ।
- हिंदू समाज इन अछूत जातियों के साथ खड़े होकर इनको अंग्रेजों और मुस्लिम बादशाहों से बचाने में पूरी तरह असफल साबित हुआ क्योंकि उनके पास तब शक्ति नहीं थी ।
- लेकिन जैसे ही हिंदू समाज के पास शक्ति आई... हिंदू समाज ने फ़ौरन अछूत उद्धार का कार्यक्रम बहुत जोर शोर से चलाना शुरू किया । इस काम में सबसे आगे उनके परम हितैषी ब्राह्मण ही थे ।
- ब्राह्मण समाज में घरों के अंदर शौचालय बनाने की परंपरा पहले कभी थी ही नहीं । इस वक्त के आधुनिक समाज की बात को छोड़ दिया जाए । तो आप आज भी अपने बुजुर्ग दादा और दादी से बात कर लीजिए तो वो हमेशा घर के अंदर शौच बनाने के खिलाफ मिलेंगे । अत्यधिक पवित्रता बरतने की वजह से वृद्ध ब्राह्मण आज भी शौच के लिए घर के बाहर ही जाना पसंद करता है । (ये बात पुरानी पीढ़ी वालों के लिए है)
- ये बात सही है कि इतिहास में दलितों के साथ अन्याय हुआ लेकिन ये अन्याय उस वक्त के शासक वर्ग (मुस्लिम और अंग्रेज) के द्वारा ही किया गया ।
- पिछले एक हजार सालों में अगर पुणे के पेशवा को छोड़ दें तो ब्राह्मणों का राज्य तो कभी हिंदुस्तान में बहुत समय रहा ही नहीं है । इसलिए दलितों के द्वारा अपनी हर समस्या के लिए ब्राह्मणों को दोष देना ऐतितासिक रूप से गलत है ।
- बहुत थोड़े समय के लिए ही पेशवा का राज्य रहा... पेशवाओं का पूरा जीवन पहले मुस्लिम और बाद में अंग्रेज आक्रमणकारियों से संघर्ष में ही बीत गया । इस वजह से मु्स्लिमों के द्वारा हिंदू समाज पर थोपी गई सामाजिक कुरीतियाँ को हटाने के सामाजिक दायित्व का पेशवाओं को समय ही नहीं मिल पाया
- और इस तरह बहुत चालाकी से मुस्लिम और कम्युनिस्ट इतिहासकारों ने पहले से चली आ रही कुरीतियाँ के लिए पेशवाओं को ज़िम्मेदार ठहरा दिया और ब्राह्मणों को टार्गेट करने वाली दलित थ्योरियाँ लिखीं
- ये सब इसलिए किया गया ताकी हिंदू संस्कृति के ध्वज वाहक ब्राह्मणों को हिंदू समाज में ही अलग-थलग कर पूरी तरह कमजोर कर दिया जाए । और फिर हिंदू धर्म का ही अंत कर दिया जाए ।
- जबकि असलियत ये है कि जिसे दलित अपना मसीहा मानते हैं.. डॉ भीम राव अंबेडकर... उनकी प्रारंभिक शिक्षा दीक्षा एक ब्राह्मण के द्वारा ही हुई थी और उन्हीं ब्राह्मण ने अपना सरनेम अंबेडकर... भीम राव को दिया था । जबकि भीम राव महार जाति के थे और इस हिसाब से तो उनका नाम भीम महार होना चाहिए था । लेकिन एक ब्राह्मण के द्वारा दिए गए ब्राह्मण सरनेम को डॉ भीम राव जिंदगी भर सहेजे रहे ।
- इसलिए अब जागने की जरूरत है दलित भाइयों को अपने साथ हुए अन्याय के असली गुनहगारों पर अपना गुस्सा उतारना चाहिए ना कि निर्दोष ब्राह्मणों पर।
षडयन्त्रकारी
जनवरी 06, 2024
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