एक बार एक अमीर सेठ के यहाँ एक नौकर काम करता था। अमीर सेठ अपने नौकर से तो बहुत खुश था, लेकिन जब भी कोई कटु अनुभव होता तो वह ईश्वर को अनाप शनाप कहता और बहुत कोसता था।
एक दिन वह अमीर सेठ ककड़ी खा रहा था। संयोग से वह ककड़ी कच्ची और कड़वी थी। सेठ ने वह ककड़ी अपने नौकर को दे दी। नौकर ने उसे बड़े चाव से खाया जैसे वह बहुत स्वादिष्ट हो।
अमीर सेठ ने पूछा – ककड़ी तो बहुत कड़वी थी। भला तुम ऐसे कैसे खा गये ?
नौकर बोला – आप मेरे मालिक है।रोज ही स्वादिष्ट भोजन देते है।अगर एक दिन कुछ बेस्वाद या कड़वा भी दे दिया तो उसे स्वीकार करने में भला क्या हर्ज है ?
अमीर सेठ अपनी भूल समझ गया।अगर ईश्वर ने इतनी सुख–सम्पदाएँ दी है,और कभी कोई कटु अनुदान या सामान्य मुसीबत दे भी दे तो उसकी सद्भावना पर संदेह करना ठीक नहीं,वह नौकर और कोई नहीं,प्रसिद्ध चिकित्सक हकीम लुकमान थे ।
असल में यदि हम समझ सकें तो जीवन में जो कुछ भी होता है,सब परमात्मा की दया ही है।परमात्मा जो करता है अच्छे के लिए ही करता है..!!
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