गढ़वा शिलालेख: राम पूजा के इतिहास में मील का पत्थर

Sooraj Krishna Shastri
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गढ़वा शिलालेख: राम पूजा के इतिहास में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील का पत्थर। यह चित्र गढ़वा शिलालेख और उसके ऐतिहासिक संदर्भ का एक दृश्यात्मक प्रदर्शन है, जिसमें 11वीं सदी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया गया है।
गढ़वा शिलालेख: राम पूजा के इतिहास में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील का पत्थर।
यह चित्र गढ़वा शिलालेख और उसके ऐतिहासिक संदर्भ का एक दृश्यात्मक प्रदर्शन है, जिसमें 11वीं सदी के धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व को दर्शाया गया है।



गढ़वा शिलालेख: राम पूजा के इतिहास में ऐतिहासिक और सांस्कृतिक मील का पत्थर

भूमिका

भारत का धार्मिक और सांस्कृतिक इतिहास अत्यंत समृद्ध है, जिसमें भक्ति आंदोलन, रामायण परंपरा और विष्णु-भक्ति जैसे कई आयाम शामिल हैं। हाल ही में प्रयागराज के गढ़वा किले में 11वीं सदी के "गढ़वा शिलालेख" की खोज ने राम पूजा के इतिहास में एक नई रोशनी डाली है। यह शिलालेख न केवल भारतीय धर्म और संस्कृति की प्राचीन परंपराओं का साक्षी है, बल्कि 11वीं सदी के राजनीतिक, सामाजिक और धार्मिक जीवन के गहन अध्ययन के लिए एक महत्वपूर्ण स्रोत भी है।

गढ़वा शिलालेख की खोज

श्री रुद्र विक्रम श्रीवास्तव द्वारा यह शिलालेख गढ़वा किले में खोजा गया। 11वीं सदी के इस शिलालेख का समय  चैत्र शुक्ल एकादशी, विक्रमी संवत 1152 (1095 ई.) है। शिलालेख की खोज और उस पर अध्ययन संस्कृत विद्वान श्री कुशाग्र अनिकेत और डॉ. शंकर राजाराम ने सावधानीपूर्वक किया। 16 पंक्तियों का यह शिलालेख नागरी लिपि में संस्कृत भाषा में उत्कीर्ण है।

शिलालेख में श्री राम, लक्ष्मण और सीता के वनगमन, उनकी स्मृति में बने आश्रम और बाद में स्थापित मठ का उल्लेख है। यह शिलालेख भारत में राम की पूजा और उनके अवतार सिद्धांत का सबसे प्राचीन प्रमाण है।


धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व

  1. राम-पूजा का सबसे प्राचीन साक्ष्य

    गढ़वा शिलालेख रामनवमी उत्सव और उससे जुड़े धार्मिक जुलूसों का पहला पुरातात्विक साक्ष्य प्रदान करता है। यह दर्शाता है कि 11वीं सदी में राम की पूजा व्यापक रूप से प्रचलित थी। इसमें "राघव-यात्रा" नामक एक भव्य समारोह का उल्लेख है, जो चैत्र मास में आयोजित होता था।

  2. अवतार सिद्धांत की पुष्टि

    शिलालेख स्पष्ट रूप से श्री राम को विष्णु का अवतार मानने के सिद्धांत को प्रस्तुत करता है। यह दर्शाता है कि 11वीं सदी तक राम को विष्णु के अवतार के रूप में पूजा जाना धार्मिक परंपरा का अभिन्न हिस्सा बन चुका था।

  3. भक्ति परंपरा का प्रारंभिक रूप

    शिलालेख में भक्ति कविताओं का उल्लेख मिलता है, जो यह प्रमाणित करता है कि राम की स्तुति में कविताओं की रचना भक्ति आंदोलन के प्रारंभ से पहले हो चुकी थी। यह राम-भक्ति परंपरा की जड़ों को 11वीं सदी से भी पहले की ओर इंगित करता है।

  4. रामायण का भौगोलिक संदर्भ

    शिलालेख में वर्णित स्थल श्री राम की वन यात्रा के मार्ग से मेल खाता है। यह इस बात का प्रमाण है कि रामायण की घटनाएँ न केवल धार्मिक ग्रंथों में जीवित रहीं, बल्कि समाज की सामूहिक स्मृति में भी संरक्षित रहीं।


सामाजिक और राजनीतिक परिप्रेक्ष्य

  1. सामाजिक समूहों की सहभागिता

    गढ़वा शिलालेख 11वीं सदी के समाज में राम-पूजा के महत्व और व्यापकता को दर्शाता है। इसमें विभिन्न सामाजिक समूहों, जैसे चंदेल राजा, श्रीवास्तव प्रधानमंत्री, ब्राह्मण किलापाल, कवि और शास्त्री की भागीदारी का उल्लेख है। यह राम-पूजा को समाज के विभिन्न वर्गों के बीच समरसता और एकता का प्रतीक बनाता है।

  2. राजनीतिक संरचना का प्रमाण

    यह शिलालेख 11वीं सदी की राजनीतिक संरचना का एक अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसमें चंदेल राजवंश और उनके प्रशासनिक अधिकारियों की भूमिका स्पष्ट रूप से उल्लिखित है। इससे यह भी पता चलता है कि उस समय धार्मिक परंपराएँ और राजनीतिक शक्ति आपस में गहराई से जुड़ी हुई थीं।

  3. आर्थिक और सामाजिक तंत्र

    शिलालेख रामनवमी जैसे उत्सवों के आर्थिक पहलुओं को भी परोक्ष रूप से उजागर करता है। इन उत्सवों में जनसामान्य, प्रशासन और धार्मिक वर्ग की सामूहिक भागीदारी होती थी, जो समाज के सामूहिक सहयोग और आर्थिक तंत्र की ओर संकेत करता है।


भक्ति आंदोलन से संबंध

भक्ति आंदोलन परंपरागत रूप से 12वीं-13वीं सदी का माना जाता है, लेकिन गढ़वा शिलालेख यह प्रमाणित करता है कि उत्तर भारत में राम-भक्ति परंपरा पहले से ही स्थापित थी। यह खोज यह भी दर्शाती है कि भक्ति कविताओं और जुलूसों के माध्यम से भक्ति आंदोलन के बीज पहले ही बो दिए गए थे।


ऐतिहासिक और पुरातात्विक महत्व

  1. रामायण परंपरा का प्रमाण

    शिलालेख रामायण के भूगोल और कथा-प्रसंगों को ऐतिहासिक संदर्भ में प्रमाणित करता है। इसमें उल्लेखित स्थल, आश्रम और मठ रामायण की घटनाओं से मेल खाते हैं, जो यह दर्शाता है कि रामायण न केवल धार्मिक कथा थी, बल्कि यह ऐतिहासिक स्मृति में भी जीवित थी।

  2. शिलालेख का संरक्षण

    गढ़वा शिलालेख भारतीय पुरातत्व का एक बहुमूल्य धरोहर है। यह 11वीं सदी की नागरी लिपि और संस्कृत भाषा के उत्कृष्ट उपयोग का उदाहरण है। इसकी संरचना और उत्कीर्णन उस समय की शिल्पकला की उन्नत अवस्था को दर्शाता है।


निष्कर्ष

गढ़वा शिलालेख भारतीय इतिहास और धर्म के अध्ययन में एक नई दिशा प्रदान करता है। यह न केवल राम-पूजा की प्राचीन परंपराओं का प्रमाण है, बल्कि 11वीं सदी के समाज, धर्म और राजनीति के आपसी संबंधों को भी उजागर करता है। यह खोज राम भक्ति परंपरा के अध्ययन में एक क्रांतिकारी योगदान के रूप में उभरेगी।

गढ़वा शिलालेख की खोज न केवल पुरातात्विक महत्व रखती है, बल्कि यह सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक दृष्टिकोण से भी अभूतपूर्व है। यह भारतीय इतिहास के उन पहलुओं को सामने लाता है, जो अभी तक अज्ञात थे। रामायण परंपरा, भक्ति आंदोलन और अवतारवाद के विकास को समझने के लिए यह शिलालेख एक अमूल्य स्रोत सिद्ध होगा।

अतः, गढ़वा शिलालेख भारतीय सांस्कृतिक धरोहर का एक ऐसा स्तंभ है, जो इतिहास, धर्म और समाज को एक साथ जोड़ता है और राम-भक्ति परंपरा के विस्तृत इतिहास को और समृद्ध करता है।

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