पुरुरवा की कथा, भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 14

Sooraj Krishna Shastri
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पुरुरवा की कथा, भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 14। यह चित्र राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की दिव्य प्रेम गाथा को दर्शाता है। चित्र में पुरुरवा को राजसी वस्त्रों में और उर्वशी को आभूषणों से सुसज्जित अप्सरा के रूप में दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में हरियाली से भरपूर जंगल, मंद प्रकाश, और एक शांत नदी का दृश्य उनकी कथा के रोमांटिक और दिव्य माहौल को प्रदर्शित करता है। यह दृश्य उनके प्रेम और भावनात्मक संबंध को खूबसूरती से दर्शाता है।
पुरुरवा की कथा, भागवत पुराण, नवम स्कंध, अध्याय 14।
यह चित्र राजा पुरुरवा और अप्सरा उर्वशी की दिव्य प्रेम गाथा को दर्शाता है। चित्र में पुरुरवा को राजसी वस्त्रों में और उर्वशी को आभूषणों से सुसज्जित अप्सरा के रूप में दर्शाया गया है। पृष्ठभूमि में हरियाली से भरपूर जंगल, मंद प्रकाश, और एक शांत नदी का दृश्य उनकी कथा के रोमांटिक और दिव्य माहौल को प्रदर्शित करता है। यह दृश्य उनके प्रेम और भावनात्मक संबंध को खूबसूरती से दर्शाता है।


भागवत पुराण के अनुसार पुरुरवा की कथा

 भागवत पुराण के नवम स्कंध, अध्याय 14 में पुरुरवा की कथा विस्तार से वर्णित है। यह कथा एक असाधारण प्रेम, विरह और मानव-देव संबंधों का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत करती है। पुरुरवा का जन्म चंद्रवंश में हुआ था, और उनका नाम इतिहास में उर्वशी के साथ उनके प्रेम और विरह के लिए अमर हो गया।


भागवत पुराण में पुरुरवा का वंश परिचय

पुरुरवा का जन्म चंद्रवंश में हुआ। यह वंश सोम (चंद्रदेव) से आरंभ हुआ।

  • चंद्रदेव के पुत्र बुध से चंद्रवंश की शुरुआत हुई।
  • बुध का विवाह इला से हुआ, और उनके पुत्र ही पूरुरवा थे।
  • पूरुरवा इस वंश के प्रथम प्रतापी राजा माने जाते हैं।

श्लोक:

बुधः समाख्यायते सोमसुतः प्रजापतेः।
तस्य पुत्रः पुरुरवाः प्रसिद्धः सत्यशीलवान्।।
(भागवत पुराण 9.14.1)

भावार्थ:
चंद्रदेव के पुत्र बुध से उत्पन्न पुरुरवा सत्य और धर्म का पालन करने वाले राजा थे।


पुरुरवा और उर्वशी का मिलन

  1. देवलोक की अप्सरा उर्वशी:
    उर्वशी, इंद्र के दरबार की सुंदर और दिव्य अप्सरा थीं। एक शाप के कारण उन्हें पृथ्वी पर आना पड़ा।

  2. पूरुरवा का सौंदर्य और गुण:
    पुरुरवा का स्वरूप और तेजस्विता अप्सरा उर्वशी को आकर्षित कर गई। उर्वशी ने पुरुरवा से विवाह करने की इच्छा व्यक्त की।

  3. विवाह की शर्तें:
    उर्वशी ने पुरुरवा के समक्ष कुछ शर्तें रखीं:

    • वह दो भेड़ों के साथ रहना चाहती थीं।
    • पूरुरवा कभी उनके सामने नग्न नहीं दिखेंगे।
    • यदि शर्तें टूटीं, तो उर्वशी उन्हें छोड़ देंगी।

श्लोक:

शर्तां ददौ उर्वशी तत्र राज्ञो।
नग्नं न पश्येद् सदा मे पतिः।
(भागवत पुराण 9.14.5)

भावार्थ:
उर्वशी ने पुरुरवा को शर्त दी कि वह उन्हें नग्न अवस्था में कभी न देखें।


शर्तों का टूटना और विरह

  1. देवताओं की चाल:
    इंद्र उर्वशी को वापस स्वर्ग लाना चाहते थे। उन्होंने पुरुरवा की परीक्षा के लिए एक योजना बनाई।

    • रात के समय, इंद्र ने उनके निवास स्थान से भेड़ों को चुरा लिया।
    • भेड़ों की आवाज सुनकर उर्वशी ने पुरुरवा से उन्हें बचाने का आग्रह किया।
  2. शर्त का उल्लंघन:

    • पुरुरवा भेड़ों को बचाने के लिए दौड़े।
    • इस दौरान, उर्वशी ने उन्हें नग्न देखा।
    • शर्त टूटने के कारण उर्वशी पुरुरवा को छोड़कर स्वर्ग लौट गईं।

श्लोक:

नग्नं दृष्ट्वा पतिं सत्या शर्ता भंगं तदा गतं।
उर्वशीं त्यक्तवान्राजा मूढः प्रेमविवशितः।।
(भागवत पुराण 9.14.10)

भावार्थ:
नग्न अवस्था में देखकर उर्वशी ने पुरुरवा को त्याग दिया।


पुरुरवा का विरह और तपस्या

  1. विरह की पीड़ा:
    उर्वशी के बिना पुरुरवा व्याकुल हो गए। उनका प्रेम उन्हें उर्वशी के बिना जीवन व्यर्थ प्रतीत होने लगा।

  2. तपस्या:

    • पुरुरवा ने उर्वशी को पाने के लिए घोर तपस्या की।
    • उनके प्रेम और भक्ति से प्रसन्न होकर उर्वशी ने उन्हें दर्शन दिए।
  3. क्षणिक पुनर्मिलन:
    उर्वशी ने पुरुरवा को बताया कि उनका साथ क्षणिक है और वे फिर से स्वर्ग लौट जाएंगी।

श्लोक:

तपसा पुरुरवाः प्रेम्णा प्राप्तवान्रत्नमप्सराः।
क्षणं संगं प्रदायासौ पुनः स्वर्गं गतं तदा।।
(भागवत पुराण 9.14.15)

भावार्थ:
पुरुरवा की तपस्या से प्रसन्न होकर उर्वशी ने उन्हें क्षणिक संग प्रदान किया और पुनः स्वर्ग लौट गईं।


पूरुरवा का यज्ञ और महान कार्य

  1. पुत्र प्राप्ति:
    उर्वशी के साथ उनके मिलन से पुरुरवा को कई पुत्र प्राप्त हुए।

  2. महान यज्ञ:
    पुरुरवा ने अपने जीवन को धर्म और यज्ञों के प्रति समर्पित कर दिया।

    • उन्होंने कई अश्वमेध यज्ञ किए।
    • उनके यज्ञों ने पृथ्वी पर धर्म और शांति की स्थापना की।

श्लोक:

यज्ञैः पुरुरवाः राजा धर्मं स्थापयते महीम्।
पुत्रान्संप्राप्य बहुशः स्वर्गलोकं गतोऽन्ततः।।
(भागवत पुराण 9.14.22)

भावार्थ:
पुरुरवा ने यज्ञों के माध्यम से धर्म की स्थापना की और अंत में स्वर्ग को प्राप्त हुए।


कथा का संदेश

  1. प्रेम और समर्पण:
    पुरुरवा और उर्वशी की कथा प्रेम में समर्पण और त्याग का संदेश देती है।

  2. शर्तों का महत्व:
    शर्तों का पालन न करने से संबंधों में टूटन आ सकती है।

  3. धर्म और यज्ञ का महत्व:
    पुरुरवा ने यज्ञों के माध्यम से धर्म की स्थापना की, जो यह दर्शाता है कि मानव जीवन का उद्देश्य धर्म की रक्षा है।


निष्कर्ष

पुरुरवा और उर्वशी की कथा प्रेम, विरह, और धर्म का अद्भुत उदाहरण है। यह कथा सिखाती है कि प्रेम में त्याग और समर्पण का महत्वपूर्ण स्थान है, और जीवन में धर्म का पालन ही सच्ची शांति का मार्ग है। भागवत पुराण में वर्णित यह कथा जीवन के गहरे अर्थों को समझने का मार्गदर्शन करती है।

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