कुम्भ-पर्व का माहात्म्य

Sooraj Krishna Shastri
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यह रहा कुंभ पर्व का माहात्म्य का एक भव्य चित्रण, जिसमें त्योहार का आध्यात्मिक और सांस्कृतिक माहौल जीवंत रूप से प्रदर्शित किया गया है। आशा है कि यह आपको पसंद आएगा।



कुम्भ-पर्व का माहात्म्य

भूमिका

भारतीय धर्म और संस्कृति में कुम्भ-पर्व का विशेष स्थान है। यह पर्व हर 12 वर्षों में हरिद्वार, प्रयागराज, उज्जैन और नासिक जैसे पवित्र स्थलों पर आयोजित होता है। कुम्भ-पर्व का मूल उद्देश्य आत्मा का शुद्धिकरण, पापों से मुक्ति और मोक्ष की प्राप्ति है। इस महापर्व की महिमा को हमारे धर्मशास्त्रों में व्यापक रूप से वर्णित किया गया है। स्कन्दपुराण और विष्णुपुराण जैसे ग्रंथों में इसे सर्वश्रेष्ठ तीर्थ और पुण्य फलदायक बताया गया है।


कुम्भ-पर्व का महत्व: धर्मशास्त्रों में वर्णित महिमा

स्कन्दपुराण में कुम्भ-पर्व का उल्लेख

"तान्येव यः पुमान् योगे सोऽमृतत्वाय कल्पते।
देवा नमन्ति तत्रस्थान् यथा रङ्का धनाधिपान् ॥"

इस श्लोक के अनुसार, कुम्भ-योग में जो व्यक्ति स्नान करता है, वह अमृतत्व अर्थात् मोक्ष की प्राप्ति करता है। देवता स्वयं ऐसे मनुष्यों को प्रणाम करते हैं, जैसे कोई दरिद्र व्यक्ति धनवान को करता है। यह दर्शाता है कि कुम्भ-स्नान के फल को देवताओं ने भी सर्वोच्च माना है।


हरिद्वार-स्नान की महिमा

हरिद्वार को गंगा नदी का प्रमुख तीर्थस्थल माना जाता है। स्कन्दपुराण में कहा गया है:

"कुम्भराशिं गते जीवे तथा मेषे गते रवौ।
हरिद्वारे कृतं स्नानं पुनरावृत्तिवर्जनम् ॥"

अर्थात्, जब बृहस्पति कुम्भ राशि में और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुम्भ-स्नान करने से मनुष्य पुनर्जन्म से मुक्त हो जाता है।


प्रयागराज-स्नान की महिमा

प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती का संगम है, जिसे त्रिवेणी कहा जाता है। यहाँ स्नान का महत्व शास्त्रों में विस्तार से वर्णित है:

"सहस्त्रं कार्तिके स्नानं माघे स्नानशतानि च।
वैशाखे नर्मदा कोटिः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ॥"

इस श्लोक का अर्थ है कि कार्तिक मास में गंगा में हजार बार स्नान करने, माघ मास में सौ बार स्नान करने और वैशाख में करोड़ बार नर्मदा स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है, वह केवल एक बार प्रयाग में कुम्भ-स्नान करने से प्राप्त होता है।


उज्जैन-स्नान की महिमा

उज्जैन में क्षिप्रा नदी के तट पर कुम्भ का आयोजन होता है। महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग की उपस्थिति के कारण यह स्थान मोक्ष-प्राप्ति के लिए विशेष माना जाता है।


नासिक-स्नान की महिमा

गोदावरी नदी के किनारे स्थित नासिक का कुम्भ-पर्व भी उतना ही महत्वपूर्ण है। यहां स्नान से व्यक्ति के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे दिव्य जीवन का आभास होता है।


विष्णुपुराण में कुम्भ-पर्व का महत्व

"अश्वमेधसहस्त्राणि वाजपेयशतानि च।
लक्षं प्रदक्षिणा भूमेः कुम्भस्नानेन तत्फलम् ॥"

विष्णुपुराण के इस श्लोक में कहा गया है कि हजार अश्वमेध यज्ञ, सौ वाजपेय यज्ञ और एक लाख बार पृथ्वी की प्रदक्षिणा करने का जो पुण्य प्राप्त होता है, वह कुम्भ-स्नान से प्राप्त होता है। यह कुम्भ पर्व का माहात्म्य दर्शाता है।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण से कुम्भ-पर्व

कुम्भ-पर्व केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह आत्मा और शरीर के शुद्धिकरण का पर्व है। तीर्थराज प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक में स्नान करके व्यक्ति सांसारिक बंधनों से मुक्त होकर मोक्ष के मार्ग पर अग्रसर होता है। कुम्भ-पर्व का माहात्म्य साधु-संतों के प्रवचन, सत्संग और मानवता के कल्याण के लिए किए जाने वाले कार्यों का संगम है।


निष्कर्ष

कुम्भ-पर्व का माहात्म्य भारतीय संस्कृति और धर्म का जीवंत प्रतीक है। यह आत्मा को पवित्र करने, पापों से मुक्ति दिलाने और मोक्ष प्राप्ति का मार्ग प्रशस्त करता है। शास्त्रों में वर्णित श्लोक स्पष्ट करते हैं कि कुम्भ-स्नान का महत्व अन्य सभी धार्मिक कर्मों से श्रेष्ठ है। यह पर्व न केवल आध्यात्मिक उत्थान का अवसर है, बल्कि यह समाज को एकजुटता और शांति का संदेश भी देता है। कुम्भ-पर्व का यह संदेश शाश्वत है और सदा मानवता को प्रेरणा देता रहेगा।


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